तौक़ीर सिद्दीक़ी
किसी मैच में मैन ऑफ़ दि मैच का मेआर क्या होना चाहिए, यही कि मैच में सबसे प्रभावी प्रदर्शन, और जिसने अपने प्रदर्शन से मैच में प्रभाव छोड़ा हो उसे ही यह सम्मान मिलना चाहिए। बेशक ज़्यादातर मौकों पर ऐसा ही होता है कि प्रभावी प्रदर्शन करने वाले खिलाडी की टीम ही मैच को भी जीतती है लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता। टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में ऐसा अनेकों बार हुआ जब हारने वाली टीम के किसी खिलाड़ी को मैन ऑफ़ दि मैच चुना गया.
मुंबई टेस्ट में वैसे तो बहुत से खिलाडियों ने शानदार प्रदर्शन किया, मयंक अग्रवाल ने 150 और 62 रनों की पारियां खेलीं, अश्विन ने शानदार गेंदबाज़ी की और आठ विकेट चटकाए मगर एक खिलाड़ी ऐसा भी था जिसने इस मैच में वह कारनामा कर दिखाया जो 134 वर्षों के टेस्ट इतिहास में इससे पहले सिर्फ दो खिलाडियों ने कर दिखाया था. जी हाँ, न्यूज़ीलैण्ड के बांये हत्थे लेग स्पिनर एजाज़ यूनुस पटेल। जिन्होंने भारत की पहली पारी में सभी दस विकेट हासिल कर ऐसा विलक्षण कारनामा कर दिखाया जो अब से पहले इंग्लैंड के जिम लेकर और भारत के अनिल कुंबले ही कर पाए थे, यहीं नहीं, दूसरी पारी में एजाज़ पटेल ने चार और विकेट चटकाकर मैच में मजमूई तौर पर 14 विकेट हासिल किये जो कि एक और माइलस्टोन था, क्योंकि इससे पहले भारत के खिलाफ कोई भी गेंदबाज़ मैच में 14 विकेट हासिल नहीं कर सका था.
तो एक मैच में इतने ताऱीखसाज़ कारनामे अंजाम देने के बाद क्या वह मैन ऑफ़ दि मैच के हक़दार नहीं थे? इस सम्मान के लिए एजाज़ को और कैसा परफॉरमेंस करना चाहिए। बकौल कुंबले एजाज़ के पारी में दस विकेट की अहमियत कहीं ज़्यादा है क्योंकि एजाज़ पटेल ने यह कारनामा मैच की पहली पारी में अंजाम दिया जबकि उन्होंने और जिम लेकर ने मैच की दूसरी पारी में इस संगेमील को उबूर किया। पहली पारी की बनिस्बत दूसरी पारी में पिच एक स्पिनर को कहीं ज़्यादा मदद करती है. कुंबले की यह बात बताती है कि एजाज़ पटेल के दस विकेट की ज़्यादा अहमियत है, हाँ! यह बात अलग है कि उनकी टीम जीत नहीं हासिल कर सकी, लेकिन इसमें एजाज़ पटेल का क्या कुसूर है. उन्होंने तो अपना काम अच्छी तरह अंजाम दिया, अब बल्लेबाज़ ही सरेंडर कर दें तो वह क्या करें।
मैं यह नहीं कहता कि मयंक अग्रवाल का प्रदर्शन मैन ऑफ़ दि मैच के लायक नहीं है, बेशक है, मगर मेरी नज़र में इस सम्मान पर एजाज़ पटेल का उनसे ज़्यादा हक़ बनता है. यहाँ पर अपनी बात साबित करने के लिए मैं एक विश्लेषण करना चाहूंगा। आम तौर पर टेस्ट मैचों में पारी में पांच विकेट हासिल करने को शतक के बराबर माना जाता है तो दस विकेट हासिल करने का मतलब डबल सेंचुरी, चार विकेट और हासिल करने का मतलब 80 रन और. मतलब एजाज़ पटेल के 14 विकटों को अगर रनों में कन्वर्ट करें तो 280 रन हुए. मयंक अग्रवाल ने दोनों पारियों में कुल 216 रन बनाये। इस फॉर्मूले में भी एजाज़ पटेल मयंक अग्रवाल से भारी पड़ते हैं और वैसे भी पारी में दस विकेट की बराबर तिहरे शतक से भी नहीं की जा सकती।
और वैसे भी हम लोग तो अतिथि देवो भवः का पालन करते हैं, कम से कम इसी बात को ही ध्यान में रखना चाहिए था। क्योंकि जीत ही सबकुछ नहीं होती
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