ज़ीनत शम्स
कोरोना ने रमज़ान के इस पवित्र महीने में इस बार लोगों को घरों में ही इबादत करने पर मजबूर कर दिया है| पहली बार आज की पीढ़ी के मुसलमानों ने इस तरह का रमज़ान देखा होगा जब मस्जिदें सुनसान हैं बाज़ार वीरान हैं, रमज़ान की रौनकें ग़ायब हैं | बेशक यह क़हरे इलाही है जो एक महामारी के रूप में पूरी दुनिया में फैली हुई है| घरों में क़ैद लोगों के पास इस वक़्त करने को ज़्यादा कुछ नहीं लेकिन आगे क्या बेहतर कर सकते हैं इसके बारे में सोचने का बहुत वक़्त है| तो बेहतर है कि इस वक़्त का फायदा उठाया जाय और कुछ नया करने का , कुछ सकारात्मक करने का, कुछ सोच बदलने का, कुछ ढंग बदलने का संकल्प लिया जाय |
जैसा कि सभी को मालूम है कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को थाम दिया है, हमारा देश भी थम गया है| रोज़गार बंद हैं, कारखाने बंद हैं, कार्यालय बंद हैं और इन सबके बंद होने से लोगों की आय भी बंद है| लॉकडाउन के कारण बेरोज़गारी बढ़ रही है| एक सर्वे के अनुसार अप्रैल महीने में बेरोज़गारी में लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई| रिपोर्ट के अनुसार कुछ राज्यों में यह आंकड़ा पचास प्रतिशत तक है यानी हर दूसरा व्यक्ति बेरोज़गार ! सरकार को इस महामारी से निपटने के लिए लॉकडाउन के अलावा कोई और रास्ता सूझता ही नहीं| अभी तीसरा लॉकडाउन चल रहा है और देश में कोरोना के मामले जिस तेज़ी से बढ़ रहे हैं उनसे तो यही लग रहा है कि कम से कम एक लॉकडाउन का एलान तो और होगा और पूरी सम्भावना है कि ईद भी लॉकडाउन में ही मनानी पड़ेगी|
तो ऐसे हालात में जब पूरी दुनिया की तरह देश में भी मंदी का माहौल हो तो समाज के हर तबके की तरह मुस्लिम समुदाय की भी ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है| तो क्यों न मुस्लिम समुदाय अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए आने वाले दिनों के लिए कुछ अलग तरह की तैयारी करे|
समाज के सभी लोग अगर मिलकर काम करेंगे तो बहुत जल्द बदलाव नज़र आएगा| कोरोना ने अवसर दिया है हमें अपने समाज को नई दिशा देने का | मुस्लिम समाज के हर वर्ग को अपने स्तर पर यह लड़ाई लड़नी होगी जिससे हमारा समाज आगे बढ़ेगा और जब कोई समाज आगे बढ़ता है तो देश की उन्नति में भागीदार बनता है| तो चलिए इस बार ईद को नया आयाम दें —
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