इस धरती पर जब से मानव का जन्म हुआ, तब से श्रम का महत्व रहा है। आदिकाल में श्रम न करने वाला जीवित नहीं रह पाता था और अब भी श्रम न करने वाला स्वस्थ नहीं रह पाता है। बदलाव सिर्फ इतना आया है कि पहले शारीरिक श्रम ही प्रधान था लेकिन अब मानसिक श्रम उससे कहीं आगे निकल गया है। यही कारण रहा कि शारीरिक श्रम करने वाले जिन्हें हम मजदूर कहते हैं, वे लगातार शोषण का शिकार होते रहे हैं। इस शोषण से मुक्ति पाने के संघर्ष की कहानी ही अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के मनाने में छिपी है। आज भी बड़ी संख्या उन असंगठित श्रमिकों की है जिन्हंे उनके परिश्रम का उचित भुगतान नहीं मिलता, उनके परिश्रम का कोई समय तय नहीं है। ऐसी स्थितियां 1886 में आयी थीं जब मजदूरों को संघर्ष पर उतरना पड़ा था। इसके बाद दुनिया भर में मजदूरों ही स्थिति पर विचार होने लगा। देश में कई योजनाएं मजदूरों के हित में लागू की गयी हैं। असंगठित श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन कराया गया है। कई राज्यों में मजदूरों के स्वास्थ्य, शिक्षा और उनके लिए आवास देने की योजनाएं चल रही हैं। इसके बावजूद अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

ंतथाकथित मजदूर नेता और मजदूर दिवस पर मुख्य अतिथि बनकर आने वाले राजनेता मजदूरों के हित में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन देश में असंगठित रूप से कितने ही मजदूर हैं, इसकी संख्या भी उन्हें नहीं पता होती। केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों ने उनके हित में योजनाएं जरूर घोषित कर रखी हैं लेकिन उनका कार्यान्वयन कौन कर रहा है, इसको देखना मुनासिब नहीं समझा जाता। मजदूरों को उनके संस्थानों में न तो पर्याप्त वेतन मिलता है और न स्वास्थ्य आदि की सुविधाएं। कितने ही तो संस्थान बंद हो गये और वहां काम करने वालों को उनका पैसा नहीं मिल पाया। हर साल मजदूर दिवस पर ऐसे मामले उठाये जाते हैं लेकिन बाद में उनके बारे में कोई नहीं सोचता। मजदूर यूनियनें राजनीति के चक्कर में फंस चुकी हैं और मजदूरों को भी उन पर यकीन नहीं रह गया। इसीलिए मजदूर फुटपाथ पर सोकर भी संतोष की नींद सो लेता है।

विश्व भर में मजदूर दिवस ‘1 मई’ के दिन मनाया जाता है। किसी भी देश की तरक्की उस देश के किसानों तथा कामगारों (मजदूर/कारीगर) पर निर्भर होती है। एक मकान को खड़ा करने और सहारा देने के लिये जिस तरह मजबूत ‘नीव’ महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ठीक वैसे ही किसी समाज, देश, उद्योग, संस्था, व्यवसाय को खड़ा करने के लिये कामगारों (कर्मचारियों) की विशेष भूमिका होती है। इतिहास के पन्ने पलटने पर मजदूर दिवस मनाने की प्रथा शुरू होने का कारण जानने को मिलता है। 1886 में 4 मई के दिन शिकागो शहर के हेमार्केट चैक पर मजदूरों का जमावड़ा लगा हुआ था। मजदूरों ने उस समय आम हड़ताल की हुई थी। हड़ताल का मुख्य कारण मजदूरों से बेहिसाब काम कराना था। मजदूर चाहते थे कि उनसे दिन भर में आठ घंटे से अधिक काम न कराया जाए। मौके पर कोई अप्रिय घटना न हो जाये इसलिये वहाँ पर स्थानीय पुलिस भी मौजूद थी। तभी अचानक किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा भीड़ पर एक बम फेंका गया। इस घटना से वहाँ मौजूद शिकागो पुलिस ने मजदूरों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिये एक्शन लिया और भीड़ पर फायरिंग शुरू कर दी। इस घटना में कुछ प्रदर्शनकारियों की मौत हो गयी। मजदूर वर्ग की समस्या से जुड़ी इस घटना ने समग्र विश्व का ध्यान अपनी और खींचा था। इसके बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया गया कि हेमार्केट नरसंहार में मारे गये निर्दोष लोगों की याद में 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों व श्रमिकों का अवकाश रहेगा।

इसी के बाद मजदूर दिवस (पहली मई) को कई देशों में अवकाश रहता है। मजदूर विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन भी करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन द्वारा इस दिन एक सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। देश के मजदूर वर्ग की उन्नति और प्रगति के लिये कई बार इस दिवस पर सरकार द्वारा मजदूर वर्ग को विशेष सहायता और भेंट भी अर्पण की जाती है। इस प्रकार की सहायता मुफ्त या कम दाम में राशन, कपड़े, शिक्षा, सस्ते ब्याज पर पक्के मकान के लिए लोन, नौकरियाँ या फिर किसी अन्य स्वरूप में प्रदान की जाती है। मजदूर दिवस पर टीवी, अखबार, और रेडियो जैसे प्रसार माध्यम द्वारा मजदूर जागृति प्रोग्राम प्रसारित किये जाते हैं और बड़े-बड़े नेता इस दिवस पर मजदूर वर्ग के कल्याण के लिये कई महत्वपूर्ण घोषणाएं भी करते हैं। इस प्रकार मजदूर दिवस की शुरुआत हुए सवा सौ साल से अधिक समय बीत चुका है। पहले की अपेक्षा न अब उस तरह की दिक्कतें हैं और न ही मजदूर दिवस मनाने के लिए बड़ी-बड़ी और सशक्त मजदूर यूनियन ही बची हैं। इसलिए कुछ लोगों का मत है कि अब इस पर्व का कोई महत्त्व नहीं है, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अगर इस दिन की शुरुआत नहीं होती तो आज जिन अधिकारों का हम इतनी आसानी से इस्तेमाल करते हैं उनके बारे में सोच भी नहीं पाते और शायद आज भी कार्यालयों और फैक्ट्रियों में काम-काज की परिस्थितियां ठीक नहीं होतीं। अगर मजदूर दिवस के दिन एक-जुट होकर वर्कर्स एकता नहीं दिखाते तो शायद आज भी हम हफ्ते के सातों दिन काम कर रहे होते और लाखों करोड़ों बच्चे भी बाल-श्रम का दंश झेल रहे होते, और गर्भवती महिलाएं भी अवकाश पाने के लिए संघर्ष कर रही होतीं। अतः हमें मजदूर दिवस के योगदान को भुलाना नहीं चाहिए और इस दिवस को हर्ष और उल्लास के साथ मनाना चाहिए।

आज की तेज दौड़ती जिन्दगी में इंसान ऑफिस छोड़ देता है लेकिन काम नहीं छोड़ पाता। लाखों लोग घर पर आकर भी लैपटॉप और कंप्यूटर पर घंटों काम करते हैं। मजदूर वर्ग किसी भी समाज का अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग होता है उन्हे सर्वथा सम्मान देना सभी का कर्तव्य है। अगर किसी जगह पर मजदूरों के साथ अन्याय हो रहा हो या उन पर अत्याचार हो रहा हो तो उस बात को सार्वजनिक करना और उस अनीति के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा मजदूर दिवस देता है। मजदूरों की अब कई श्रेणियां हो चुकी हैं। देश की बड़ी और कमाऊ सार्वजनिक इकाइयों के कर्मचारी भी अपने को मजदूर कहते हैं लेकिन उनके वेतन काफी ज्यादा हैं। इसके विपरीत निजी संस्थानों में काम करने वाले वेतन भी कम पाते हैं और सुविधाएं भी नहीं मिलतीं, उनके लिए सोचने का अवसर भी मजदूर दिवस देता है।