दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी मोदी सरकार द्वारा विपक्ष की जा रही राजनीतिक घेरेबंदी की ही एक कड़ी है। लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद केजरीवाल की गिरफ्तारी चुनाव प्रचार से रोकने की भी कोशिश है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करना है। इसलिए इस गिरफ्तारी की कड़ी निंदा आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यसमिति करती है। दरअसल असंवैधानिक इलेक्टोरल बॉन्ड मसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश से मोदी सरकार बुरी तरह घिर गई है। अब यह दिन के उजाले की तरह साफ हो गया है कि ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई का इस्तेमाल कर इलेक्ट्रोरल बांड में मोदी सरकार ने कानूनी फिरौती वसूली है। इसलिए अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी इलेक्टोरल बॉन्ड लूट से ध्यान हटाने की भी कोशिश है।

आईपीएफ यह मानता है कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को अलग-थलग देखने की प्रवृत्ति गलत है। यह मोदी सरकार द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों और असहमति की आवाज को कुचलने की जारी नीति का ही भाग है। सभी लोग जानते हैं कि भीमा कोरेगांव में यूएपीए के फर्जी मुकदमें कायम करके डॉक्टर अंबेडकर के परिवार के आनंद तेलतुंबडे, वरिष्ठ पत्रकार गौतम नौवलखा व सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज समेत कई को गिरफ्तार करके जेल में बंद किया गया जिसमें से कुछ की मृत्यु तक जेल में हो गई। अभी हाल ही में न्यूज क्लिक के संस्थापक प्रवीर पुरकायस्था को यूएपीए जैसे काले कानून में अनावश्यक रूप से जेल में बंद किया गया है। विडंबना यह है कि इस दमन पर विपक्ष का कारगर विरोध नहीं दिखता है। यहां तक कि जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार है वहां भी तानाशाही का फंदा फैला हुआ है और नागरिक समाज के लोगों व लोकतांत्रिक व्यक्तियों पर हमले हो रहे हैं। इसलिए विपक्ष को भी देश को आश्वस्त करना चाहिए कि जहां उसकी सरकारें हैं वहां वह दमन नहीं करेगी। यदि वह यूएपीए व पीएमएलए जैसे काले कानून को खत्म नहीं कर सकती तो कम से कम इनका उपयोग नहीं करेगी। साथ ही सभी विपक्षी दलों और लोकतांत्रिक शक्तियों को लोकसभा के चुनाव में यूएपीए और पीएमएलए जैसे काले कानूनों के खात्मे की भी मांग करनी चाहिए।