दिल्ली:
उत्तराखंड के जोशीमठ में विकास की विनाशलीला भयावह होती जा रही है, भू धंसाव की वजह से मकानों की दरारें चौड़ी होती जा रही हैं. सैकड़ों परिवार बेघर होने के कगार पर है। अपने घरों से लोगों को बेघर होना पड़ रहा है। यहाँ के निवासियों का कहना है कि सरकार की गलत नीतियों की वजह से लोगों को आज इस परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

इस बीच इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (IIRS) की एक रिपोर्ट सामने आई है जो बताती है कि यह आपदा अचानक नहीं आई। पिछले दो साल से जोशीमठ और इसके आसपास के इलाकों में प्रति वर्ष 6.5 सेमी या 2.5 इंच की दर से जमीन धंस रही है। आईआईआरएस ने अध्ययन के लिए सैटेलाइट से मिले क्षेत्र के डेटा का इस्तेमाल किया है।

इस स्टडी के अनुसार कई इलाके बेहद संवेदनशील हैं। यह स्टडी जुलाई 2020 से मार्च 2022 के बीच सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों के आधार पर की गई है। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि जोशीमठ और इसके आसपास के इलाके धीरे-धीरे धंस रहे हैं। सैटेलाइट तस्वीरें ये भी बताती हैं कि यह भूधंसाव केवल जोशीमठ तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह पूरी घाटी में फैला हुआ है।

अभी तक 700 से ज्यादा घरों में दरारें देखी गई हैं, 86 घरों को असुरक्षित चिह्नित किया गया है। इसके अलावा, 100 से ज्यादा परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा चुका है। नाराज लोगों ने जोशीमठ के धंसाव के लिए NTPC की तपोवन-विष्णुगाड़ 520 मेगावाट जल विद्युत परियोजना की टनल को कारण बताया है। लोगों का आरोप है कि इस टनल से प्राकृतिक जलस्रोत को जमीन के अंदर नुकसान हुआ है, जिससे पूरा पहाड़ धंसने लगा है।