डॉक्टर मोहम्मद नजीब कासमी सम्भली

डॉक्टर मोहम्मद नजीब कासमी सम्भली

अल्कोहल एक Chemical Composition यानि एक फ़ार्मूला है, जो Hydroxyl (OH-) हाइड्रॉकसिल (ओएच-) से बनता है, जिसमें नशा होता है। क़ुरान व हदीस की रोशनी में तमाम मुसलिम उलमा का इत्तिफ़ाक़ (सहमति ) है कि शराब (जिसे अरबी में खमर और अंग्रेज़ी में Wine कहते हैं) का पीना हराम है चाहे वह कम ही मात्रा में क्यों न हो, पहले शराब आमतौर पर कुछ चीजों जैसे अंगूर को सड़ा कर बनाई जाती थी जिसको देसी शराब कहते हैं, अब नई टेक्नोलोजी से भी शराब तैयार होती है, जिसको अंग्रेज़ी शराब कहते हैं, लेकिन शरई आधार पर दोनों का एक ही हुक्म (आदेश) है कि हर वह चीज़ जो नशा पैदा करे उसका पीना या उसका कारोबार करना या ऐसी कंपनी का शेयर खरीदना या उसमे नौकरी करना जो शराब बनाती है सभी हराम (मना) है। कुछ लोग जो शराब पीने के आदी बन जाते हैं उन्हें थोड़ी मात्रा में शराब नशा नहीं करती, उनके बारे में उलमा हज़रात ने बताया कि अगर कोई आदमी पहली बार कोई चीज़ पिए और नशा हो तो वह शराब के हुक्म में है।

शराब पीने के कुछ फायदे हो सकते हैं, लेकिन कुल मिलाकर शराब पीने के नुकसान बहुत ज़्यादा हैं, जैसा कि हम अपनी आँखों से ऐसे लोगों के हालात देखते हैं जो शराब पीने के आदी बन जाते हैं। साथ ही जिस अल्लाह ने इंसानों व जिन्नातों और सारी दुनिया को पैदा किया है उसने शराब पीने से मना किया है, यानी शराब पीने में अल्लाह तआला की नाफ़रमानी है, जो इंसान को हलाक (बर्बाद) वाले सात गुनाहों में से एक है।

अब कुछ अंग्रेजी दवाओं में दवाओं की सुरक्षा या कुछ बिमारियों के इलाज के लिए अल्कोहल मिलाया जाता है, जैसे साँस की ज़्यादातर दवाओं में अल्कोहल होता है। होम्योपैथी की ज़्यादातर दवाओं में अल्कोहल का इस्तेमाल होता है, जो पीने वाली शराब से थोड़ा अलग होता है। इसी तरह परफ़्यूम में भी अल्कोहल का इस्तेमाल होता है, अब सवाल यह है कि ऐसी दवाएं या परफ़्यूम जिनमें अल्कोहल है तो क्या इसका इस्तेमाल करना जाइज़ (वैध) है या नहीं? उलमा हज़रात ने लिखा है कि अगर ऐसी दवाओं से बचना संभव है जिसमे अल्कोहल है, यानी उनका विकल्प बाजार में मौजूद है तो इस्तेमाल न करें, अन्यथा ऐसी दवाएं इस्तेमाल की जा सकती हैं जिनमे अल्कोहल मौजूद है, क्योंकि वे मिक़दार (मात्रा) में बहुत कम होता है और वह पीने वाले अल्कोहल कुछ अलग भी होता है, जैसा कि माहिरीन (विशेषज्ञों) से पता किया गया, तथा उसका पीना मक़सद नहीं होता, इसी तरह वह अल्कोहल वाली दवाएँ भी इस्तेमाल की जा सकती हैं जो बदन की सफाई आदि के लिए इस्तेमाल होती हैं, जैसे इंजेक्शन लगाने से पहले और बाद में, और खून निकालने से पहले या बाद में जो सेकंडो में उड़ जाता है। यही हुक्म सैनिटाइज़र पर लागू होता है।

होम्योपैथी की अक्सर दवाओं की हिफाज़त और उसकी रक्षा के लिए भी अल्कोहल का इस्तेमाल होता है, लेकिन वह मात्रा में बहुत ही कम होता है। होम्योपैथी की दवाएँ कुछ बूंदों से ही बनी होती है, जो चीनी, पानी और दूध से बने Pills पिल्स में डाली जाती है, उन कुछ बूंदों में बहुत ही कम मात्रा में वह अल्कोहल होता जो पीने वाले अल्कोहल से बहुत ज़्यादा हल्का होता है, इसीलिए उलमा ने कहा कि होम्योपैथी दवाएँ इस्तेमाल की जा सकती हैं।

रहा मामला परफ़्यूम इत्र का, तो परफ़्यूम के इस्तेमाल से बचना मुमकिन है, लिहाज़ा ऐसे परफ़्यूम के इस्तेमाल से बचना ही बहतर है जिनमें अल्कोहल मौजूद है, क्यूंकि बिना अल्कोहल वाले इत्र बड़ी मात्रा में आसानी से हर जगह मिल जाते हैं। हाँ उलमा ने लिखा है कि परफ़्यूम में इस्तेमाल होने वाले अल्कोहल जो Hydroxyl (OH-) हाइड्रॉकसिल से बनता है की हुरमत साफ़ तौर पर क़ुरान व हदीस में मौजूद नहीं है, उलमा का मानना है, तथा इनका इस्तेमाल बहुत आम हो गया है, जिसे “उमूम-ए-बलवा” कहा जाता है, लिहाज़ा अल्कोहल वाले परफ़्यूम का इस्तेमाल करना हराम तो नहीं है, लेकिन बचने में ही भलाई है।