अशोक बांबी

प्रदेश मे दो व्यक्ति क्रिकेट के लिए निस्वार्थ भाव से अभूतपुर काम कर रहे हैं एक है अलीगढ़ के फसाहत अली और दूसरे हैं आगरा के के के शर्मा। आप दोनों की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। आज अलीगढ़ व आगरा से जो भी खिलाड़ी उभर कर सामने आ रहे हैं उनमे आप दोनों का बहुत बड़ा योगदान है।

रिंकू सिंह जिसने अपने पहले ही अंतरराष्ट्रीय मैच में कमाल कर दिया बधाई का पात्र है। लेकिन मैं एक साथ बात करना चाहूंगा रिंकू सिंह के परफॉर्मेंस व तरक्की में उसकी मेहनत व लगन, उसके कोच व उसके मां-बाप का बहुत बड़ा हाथ है ना कि यूपीसीए का। आपको याद हो या ना हो यूपीसीए में रिंकू सिंह के साथ भी सौतेला व्यवहार किया गया है। जबरदस्त प्रदर्शन के बावजूद भी अक्सर नम्बर 6 पर बल्लेबाजी कराई गई जबकि लगातार फेल होने के पश्चात कप्तान करन शर्मा 3 व 4 पर बल्लेबाजी करते थे कयोकि उन्हें अकरम का सरक्षण प्राप्त है। कोई बड़ी बात नहीं होगी यदि करण शर्मा सात मैचों में केवल 62 रन बनाने के पश्चात भी इस वर्ष भी यूपी टीम में बने रहे।

मैं यूपी टीम में बाहरी खिलाड़ियों का विरोध इसलिए करता हूं क्योंकि प्रदेश की 25 करोड़ जनसंख्या व लाखों खिलाड़ियों के होने के कारण 11 की टीम में चांस पाना बहुत मुश्किल है । हम अपने योग्य खिलाडियों को जब मौका नही दे पा रहे तो फिर बाहरी खिलाडियों को पैसे लेकर व पैसे देकर क्यों खिलाये। आज यूपी के खिलाडी क्यों अन्य प्रदेशो से खेल रहे है क्योंकि नवोदित व उदयमान खिलाडियों को मालूम है कि उनको प्रदेश की टीम से खेलने का मौका नहीं मिलेगा।

जहां हम लोग इस बात की मांग कर रहे हैं कि प्रदेश में 4 टीमों का गठन होना चाहिए वहां एक ही टीम में बाहरी खिलाड़ियों को खिलाना न केवल उदीयमान बल्कि हर खिलाड़ी के प्रति घोर अन्याय है।