लेख

सौ सीटों की शर्त

तौक़ीर सिद्दीक़ी

2017 में जब यूपी का यादव कुनबा बिखरा, चाचा और भतीजे में दूरियां बढ़ीं तो समाजवादी पार्टी का शीराज़ा भी बिखर गया और चुनाव में उसे बुरी तरह मात खानी पड़ी. तब से लेकर आज तक पांच बरस हो चुके हैं. चाचा और भतीजे के बीच दूरियां मिटाने की कोशिशें चल रही हैं मगर अभी तक कोई भी कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी. और अब, जब यह लगने लगा कि बस किसी भी दिन पुनर्मिलन हो सकता है तो बीच में सौ सीटों की शर्त रूकावट बनकर खड़ी हो गयी.

शर्तों के भी अलग अलग मायने होते हैं. कभी शर्त बात मनवाने के लिए होती है तो कभी शर्त का मतलब इंकार भी होता है. कभी शर्त को दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो कभी हवा में तीर की तरह शर्त उछाल दी जाती है कि निशाने पर लगी तो वाह-वाह वरना अफवाह।

अब एक शर्त चाचा शिवपाल ने भी लगा दी है, “सौ सीटों वाली”. सपा को प्रस्पा से गठबंधन करना है तो शर्त माने। एक तरफ अखिलेश पूरा सम्मान देने की बात कर रहे हैं तो चाचा शिवपाल शर्तें लगा रहे हैं वह भी ऐसी जो नामुमकिन हैं.

वैसे मुझे तो लगता है कि यह हताशा वाली शर्त है. शायद चाचा को यह लगने लगा है कि भतीजा इसी तरह सम्मान सम्मान का खेल खेलता रहेगा और उन्हें लटकाये रखेगा इसलिए अपना सम्मान बचाने के लिए शर्त का ऐसा दांव फेंको जिसमें चित भी मेरी पट भी मेरी और टय्याँ मेरे बाप वाली बात हो जाय। यानी अगर शर्त मान ली तो वाह वाह, नहीं मानी तो शर्त हमने ही लगाई थी उसने नहीं। यानि शर्त पूरी होने पर सम्मान और बढ़ जायेगा, नहीं पूरी हुई तो भी सम्मान बचा रहेगा।

देखा जाय तो भतीजे के लटकों झटकों से परेशान चाचा ने एक तरह से अपना अंतिम अस्त्र प्रयोग किया है, मौका भी उन्होंने नेता जी के जन्मदिन का चुना। सियासी गलियारों में उम्मीद भी बहुत थी कि चाचा-भतीजे का मिलान होगा और नेता जी को उनके जन्मदिन का बेहतरीन तोहफा मिलेगा, मगर ऐसा हो न सका और अब यह आलम है कि चाचा ने उस भतीजे के सामने सौ सीटों की ऐसी शर्त रखी जो सत्ता के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है, मुख्यमंत्री की कुर्सी उसे साफ़ नज़र आ रही है. सियासी हवा का रुख उसकी पार्टी की तरफ मुड़ता नज़र आ रहा है. जिसके दरवाज़े पर गठबंधन के लिए पार्टियों की लाईन लगी है.

भले ही चाचा ने सपा में अपनी पार्टी के विलय की बात तक झुक गए हों मगर क्या मौजूदा हालात में वह इस पोजीशन में हैं कि सौ सीटों की शर्त रख सकें। तो अब आप ही बताइये कि मैं इस शर्त को क्या नाम दूँ?

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