तौक़ीर सिद्दीक़ी

टीम इंडिया ने धोनी की कप्तानी में 2013 में अंतिम बार किसी ICC टूर्नामेंट का ख़िताब जीता था, यह ख़िताब था चैंपियंस ट्रॉफी का, उसके बाद से लंदन के ओवल मैदान पर ऑस्ट्रेलिया के हाथों आज मिली हार को मिलाकर भारतीय टीम आठ बार ICC के नॉकआउट मैचों में मुंह की खा चुकी है, अब तो ऐसा लगता है कि ICC मुकाबलों के नॉक आउट मैचों में हारना टीम इंडिया की नियति बन गयी है. इस बात के लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाय. टीम के कप्तान बदले जा चुके हैं , कोच बदले जा चुके हैं, बोर्ड में बदलाव हो चुका है मगर सब बातें बे नतीजा साबित हो रही हैं, कोई भी बदलाव ICC का खिताब नहीं दिला पा रहा है.

तो क्या इसके लिए हम अपने क्रिकेट शेड्यूल को ज़िम्मेदार मानें, या ज़रूरत से ज़्यादा सफ़ेद बाल क्रिकेट को दोषी ठहराया जाय. हम आईपीएल खेलकर सीधा वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल खेलने पहुँच गए, टीम में लगभग सभी खिलाड़ी आईपीएल खेल रहे थे, इसमें कई तो आईपीएल के शेर भी शामिल थे मगर नतीजा क्या हुआ, ये सभी शेर इंग्लैंड में ऑस्ट्रेलिया के आगे ढेर हो गए. भारतीय गेंदबाज़ों में साफ़ तौर पर झलक रहा था कि एक दिन में चार ओवर की गेंदबाज़ी और टेस्ट मैच में 24 ओवर की गेंदबाज़ी में कितना फर्क होता है. कुछ गेंदबाज़ों ने 100-100 रन लुटाकर अगर कुछ विकेट हासिल भी कर लिए तो कौन सा तीर मार लिया। भारतीय बल्लेबाज़ों में साफ़ तौर पर आईपीएल का खुमार नज़र आया. उनकी बल्लेबाज़ी से कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि वो टेस्ट क्रिकेट खेल रहे हैं, वो भी वर्ल्ड चैंपियनशिप का फाइनल. पुजारा जो आईपीएल नहीं खेले वो भी दोनों ही पारियों में ऐसे आउट हुए जैसे कोई नौसिखिया बल्लेबाज़ आउट होता है. विराट कोहली तो कप्तानी छोड़ने के बाद कह ही चुके हैं कि वो अब मज़े के लिए क्रिकेट खेल रहे हैं. रोहित शर्मा की इन्कन्सीस्टेंसी का दौर पिछले कई सालों से बदस्तूर जारी है. मिडिल आर्डर की हालत वैसे भी खस्ता है तभी तो टीम से बाहर हो चुके अजिंक्य रहाणे को बुलाना पड़ा, हालाँकि अजिंक्य ने अच्छी बल्लेबाज़ी की लेकिन वो मैच जिताने के लिए काफी नहीं थी.

कहा जा रहा भारत का सपना टूट गया, लेकिन ऐसा नहीं है, सपना एक बार टूटता है, दो बार टूटता है लेकिन जब लगातार आठ बार टूटे तो वो सपना नहीं होता। अब तो ये कहा जा सकता है कि टीम इंडिया नॉक आउट फोबिया का शिकार हो गयी है. हम पूरे साल लगातार मैच जीतते हैं, ICC की रैंकिंग में नंबर एक या दो नंबर की टीम रहते हैं लेकिन जब असली परीक्षा की घड़ी आती है तो बुरी तरह नर्वस हो जाते हैं। सवाल ये उठता है कि आखिर ये दौर कितना लम्बा चलेगा, हम कितने और नॉक आउट मुकाबले हारेंगे। भारत में इसी साल ICC का ODI वर्ल्ड कप होने वाला है, सवाल उठता है कि क्या ये सिलसिला वहां भी जारी रहेगा?

ICC के मुकाबलों में हार हर दर हार से अब तो भारतीय क्रिकेट प्रशंसक भी काफी निराश हो चुके हैं, यकीनन ODI वर्ल्ड कप का मेज़बान होने के नाते टीम इंडिया पर एक्स्ट्रा दबाव भी होगा, WTC के फाइनल में मिली हार उस दबाव को और बढ़ाएगी, ऐसे में इस दबाव से टीम इंडिया कैसे बाहर निकलेगी, ये बड़ा सवाल है। माना कि घरेलू पिचों पर टीम इंडिया को एडवांटेज होगा, इस बात की पूरी सम्भावना है कि भारत के सभी मैच स्पिन फ्रेंडली ट्रैक पर होंगे, लेकिन विरोधी टीमें भी उसी तैयारी के साथ भारत आएँगी। ऑस्ट्रेलिया का पिछला दौरा इसकी मिसाल है, ये शायद पहला मौका था जब ऑस्ट्रेलिया की टीम में तीन स्पिनर खेले थे और भारत को उसी की ज़मीन पर टेस्ट मैचों में कड़ी टक्कर भी दी थी. लेकिन वो बाईलेटरल सीरीज़ की बात थी और बात यहाँ ICC मुकाबलों की हो रही है, तो सवाल वही है कि नॉक आउट फोबिया का शिकार भारतीय टीम इससे कैसे बाहर आएगी।