मोहम्मद आरिफ नगरामी

इबादत का महीना रमजान आ गया है। रमजान माह में नेक बंदों पर अल्लाह की रहमतें नाजिल होती हैं। रमजान के पाक महीने में अल्लाह बंदों के लिए जन्नत के दरवाजे खोल देता है। रमजान में अकीदतमंद खुद को अल्लाह के लिए समर्पित कर देता है।

इबादत की खासियत‘- इबादत का खासा यह है कि अल्लाह तआला के साथ इंसान का रिश्ता जोड़ती है। उसके साथ एक ताल्लुक कायम करती है जिसके नतीजे में इंसान को हर वक्त अल्लाह तआला का कुर्ब हासिल होता है।

दुनियावी कामों की खासियतः- दूसरी तरफ दुनियावी कामों की खासियत यह है कि अगरचे इंसान इनको सही दायरे में रहकर करे मगर फिर भी यह दुनियावी काम द्दीरे-द्दीरे इंसान को मासियत की तरफ ले जाते हैं और रूहनियत से दूर कर देते हैं। अब जब ग्यारह महीने उसी दुनियावी कामों में गुजर गए और इसमें माद्दियत का गलबा रहा और रूपये पैसे हासिल करने और ज्यादा से ज्यादा जमा करने का गलबा रहा तो इसके नतीजे में इंसान पर माद्दियत गालिब आ गई और इबादतों के जरिये जो रिश्ता अल्लाह तआला के साथ कायम होना था वह रिश्ता कमजोर हो गया। उसके अन्दर कमजोरी आ गई और जो कुर्ब हासिल होना था वह हासिल न हो सका।

रहमत का खास महीनाः- चूंकि अल्लाह तआला तो इंसान के खालिक हैं वह जानते थे कि यह इंसान जब दुनिया के काम-धंधे में लगेगा तो हमंें भूल जाएगा और फिर हमारी इबादत की तरफ उसका उतना लगाव नहीं होगा जितना दुनियावी कामों के अन्दर उसको लगाव होगा तो अल्लाह तआला ने उस इंसान से फरमाया कि हम तुम्हे एक मौका और देते हैं और हर साल तुम्हे एक महीना देते हैं ताकि जब तुम्हारे ग्यारह महीने इन दुनियावी काम द्दंद्दों में गुजर जाएं और रूपये पैसे के चक्कर में उलझे हुए गुजर जाएं तो अब हम तुम्हें रहमत का एक खास महीना अता करते हैं। इस एक महीने के अंदर तुम हमारे पास आ जाओ ताकि ग्यारह महीनों के दौरान तुम्हारी रूहानियत में जो कमी वाके हो गई है और हमारे साथ ताल्लुक और कुर्ब में जो कमी वाके हो गई है इस मुबारक महीने में तुम उस कमी को पूरा कर लो, और इस मकसद के लिए भी हम तुम्हें यह हिदायत का महीना अता करते हैं कि तुम्हारे दिलों पर जो जंग लग गया है उसको दूर कर लो और हमसे जो दूर चले गए हो अब करीब आ जाओ और जो गफलत तुम्हारे अन्दर पैदा हो गई है उसको दूर करके अपने दिलों को जिक्र से आबाद कर लो। इस मकसद के लिए अल्लाह तआला ने रमजान का महीना अता फरमाया। इन मकासिद के हासिल करने के लिए और अल्लाह तआला का कुर्ब हासिल करने के लिए रोजा अहम तरीन उंसुर है। रोजा के अलावा और जो इबादात इस महीने में मशरूअ की गई है वह भी सब अल्लाह तआला के कुर्ब के लिए अहम अनासिर है। अल्लाह तआला का मकसद यह है कि दूर भागे हुए इंसान को इस महीने के जरिये अपना कुर्ब अता फरमा दें।

अब कुर्ब हासिल कर लोः- इसलिए इरशाद फरमाया ऐ ईमान वालों! तुम पर रोजे फर्ज किए गए जिस तरह तुमसे पहले लोगों पर फर्ज किए गए थे ताकि तुम्हारे अन्दर तकवा पैदा हो। ग्यारह महीनों तक तुम जिन कामों में मुब्तला रहे हो उन कामों ने तुम्हारे तकवा की खासियत को कमजोर कर दिया। अब रोजे के जरिये इस तकवा की खासियत को दोबारा ताकतवर बना लो। इसलिए बात सिर्फ इस हद तक खत्म नहीं होती कि रोजा रख लिया और तरावीह पढ़ ली बल्कि पूरे रमजान को इस काम के लिए खास करता है कि ग्यारह महीने हम लोग अपनी अस्ल मकसदे जिन्दगी से और इबादत से दूर चले गये थे उस दूरी को खत्म करना है और अल्लाह तआला का कुर्ब हासिल करना है। इसका तरीका यह है कि रमजान के महीने को पहले ही से ज्यादा से ज्यादा इबादत के लिए फारिग किया जाए। इसलिए कि दूसरे काम द्दंद्दे तो गयारह महीने तक चलते रहेंगे लेकिन इस महीने के अन्दर इन कामों को जितना मुख्तसर से मुख्तसर कर सकते हो, कर लो और इस महीने को खालिस इबादत के कामों में लगा दो।

रमजान का इस्तकबालः- मौलाना मुफ्ती मोहम्मद शफीअ फरमाया करते थे कि रमजान का इस्तकबाल और इसकी तैयारी यह है कि इंसान पहले से यह सोचे कि मैं अपने रोजमर्रा के कामों में से मसलन तिजारत, मुलाजमत, जराअत वगैरह के कामों में से किन-किन कामों को छोड़ सकता हूं उनको छोड़ दे और फिर इन कामों से जो वक्त फारिग हो उसको इबादत में लगा दें।
रमजान में सालाना छुट्टियां क्योंः- हमारे दीनी मदरसों मंे लम्बे अर्से से यह रिवाज और तरीका चला आ रहा है कि सालाना छुट्टियां हमेशा रमजानुल मुबारक के महीने में की जाती हैं। पन्द्रह शाबान को तालीमी साल खत्म हो जाता है और पन्द्रह शाबान से लेकर पन्द्रह शव्वाल तक दो महीने की सालाना छुट्टियां हो जाती हैं। शव्वाल से नया तालीमी साल शुरू होता है। यह हमारे बुजुर्गों का जारी किया हुआ तरीका है। इस तरीके पर लोग एतराज करते हुए कहते हैं कि देखो! यह मौलवी रमजान में लोगों को इस बात का सबक देते हैं कि आदमी रमजान के महीने में बेकार हो कर बैठ जाए। हालांकि सहाबा ने तो रमजानुल मुबारक में जेहाद किया और दूसरे काम किए। खूब समझ लें कि अगर जेहाद का मौका आ जाए तो बेशक आदमी जेहाद भी करे। इसलिए गजवा-ए-बदर और फतेह मक्का रमजानुल मुबारक में हुए। लेकिन जब साल के किसी महीने में छुट्टी करनी ही है तो इसके लिए रमजान के महीने का इंतखाब इसलिए किया ताकि इस महीने को ज्यादा से ज्यादा अल्लाह तआला की सीद्दे इबादत के लिए फारिग कर सके।

अगरचे दीनी मदरसों में पूरे साल जो काम होते हैं वह भी सबके सब इबादत हैं मसलन कुरआन की तालीम, हदीस की तालीम, फिकह की तालीम वगैरह मगर यह सब इनडायरेक्ट इबादत है लेकिन रमजान मंे अल्लाह तआला यह चाहते हैं कि इस महीने को मेरी सीद्दे इबादत के लिए फारिग कर लो। इसलिए हमारे बुजुर्गों ने यह तरीका अख्तियार किया कि जब छुट्टी करनी है तो बजाए गर्मियों में छुट्टी करने के रमजान में छुट्टी करो ताकि रमजान का ज्यादा से ज्यादा वक्त अल्लाह तआला की सीद्दे इबादत में लगाया जा सके। इसलिए रमजानुल मुबारक में छुट्टी करने का अस्ल मंशा यह है।

बहरहाल रमजानुल मुबारक में छुट्टी करना जिनके अख्तियार में हो वह हजरात तो छुट्टी कर लें और जिन हजरात के अख्तियार में न हो वह कम से कम अपने अवकात को इस तरह तैयार करें कि इसका ज्यादा से ज्यादा वक्त अल्लाह तआला की सीद्दे इबादत में गुजर जाए और हकीकत में रमजान का मकसूद भी यही है।
मौलाना मुफ्ती मोहम्मद शफीअ ने एक बार फरमाया कि देखो कुरआने करीम की सूरत अलम नश्रह में अल्लाह तआला ने नबी करीम (सल0) से खिताब करते हुए इरशाद फरमाया-जब आप (दूसरे कामों से जिनमें आप मशगूल हैं) फारिग हो जाएं तो अल्लाह तआला की इबादत में लगें। किस काम के करने में लगे? नमाज पढ़ने में, अल्लाह के सामने खड़े होने में, अल्लाह के सामने सजदा करने में और अपने रब की तरफ रगबत का इजहार करने में। मेरे वालिद फरमाया करते थे कि तुम जरा सोचो तो सही कि यह खिताब किस जात से हो रहा है? यह खिताब नबी करीम (सल0) से हो रहा है और आपसे यह कहा जा रहा है कि जब आप फारिग हो जाए तो यह देखों कि नबी करीम (सल0) किन कामों में लगे हुए थे जिनसे फरागत के बाद छुकने का हुक्म दिया जा रहा है? क्या नबी करीम (सल0) दुनियावी कामों में लगे हुए थे? नहीं, बल्कि आपका तो एक-एक काम इबादत ही था। या तो आप का काम तालीम देना था या तब्लीग करना था या जेहाद करना था या तरबियत और तजकिया था तो आप का तो अल्लाह के दीन की खिदमत के अलावा कोई काम नहीं था लेकिन इसके बावजूद आप से कहा जा रहा है कि जब आप इन कामों से फारिग हो जाएं यानी तालीम के काम से और तब्लीग के काम से और जेहाद के काम से फारिग हो जाएं तो अब आप हमारे सामने खड़े होकर थकिए। इसलिए इसी हुक्म की तामील में आप (सल0) सारी सारी रात नमाज के अन्दर इस तरह खड़े होते कि आपके पांव पर वरम आ जाता था। इससे मालूम हुआ कि जिन कामों में आप (सल0) मशगूल थे वह इनडायरेक्ट इबादत थी और जिस इबादत की तरफ इस आयत में आपको बुलाया जा रहा था वह सीद्दे इबादत थी।

मौलवी का शैतान भी मौलवी- मौलाना मोहम्मद शफीअ फरमाया करते थे कि मौलवी का शैतान भी मौलवी होता है। यानी शैतान मौलवियों को अमली अंदाज से द्दोका देता है। इसलिए मौलवी का शैतान मौलवी से कहता है कि यह जो कहा जा रहा है कि तुम ग्यारह महीने तक दुनियावी कामों में लगे रहे यह उन लोगों से कहा जा रहा है जो तिजारत और कारोबार में लगे रहे और मईशत के कामों में और दुनियावी द्दंद्दे मंे और मुलाजमतों में लगे रहे लेकिन तुम तो गयारह महीने तक दीन की खिदमत में लगे रहे, तुम तो तालीम देते रहे, तब्दलीग करते रहे, वाज करते रहे, तस्नीफ और फतवा के कामों में लगे रहे और यह सब दीन के काम हैं। हकीकत में यह शैतान का द्दोका होता है। इसलिए कि ग्यारह महीने तक तुम जिन इबादात में मशगूल थे वह इबादत इन डायरेक्ट थी और अब रमजानुल मुबारक सीद्दे इबादत का महीना है यानी वह इबादत करनी है जो सीद्दे इबादत के काम हैं।

चालीस मकामाते कुर्ब हासिल कर लेंः- अब आप अपना एक निजामे अवकात और टाइम टेबल बनाएं कि किस तरह यह महीना गुजारना है। इसलिए जितने कामों को छोड़ सकते हैं उनको छोड़ दो और रोजा तो रखना ही है और तरावीह भी इंशाअल्लाह अदा करनी ही है। इन तरावीह के बारे में डाक्टर अब्दुल हयी बड़े मजे की बात फरमाया करते थे कि यह तरावीह बड़ी अजीब चीज है कि इसके जरिये अल्लाह तआला ने हर इंसान को रोजाना आम दिनों के मुकाबले में ज्यादा मकामाते कुर्ब अता फरमाए है। इसलिए कि तरावीह की बीस रिकातें हैं जिनमें चालीस सजदे किए जाते हैं और हर सजदा अल्लाह तआला के कुर्ब का आला तरीन मकाम है कि इससे ज्यादा आला मकाम कोई और नहीं हो सकता। जब इंसान अल्लाह तआला के सामने सजदा करता है और अपनी पेशानी जमीन पर टेकता है और जबान पर ‘सुब्हान रब्बीअल आला’ के अल्फाज होते हैं तो यह कुर्ब खुदाबंदी का वह आला तरीन मकाम होता है जो किसी और सूरत में नसीब नहीं हो सकता।

एक मोमिन की मेराज- यही मकामे कुर्ब आप (सल0) मेराज के मौके पर लाए थे जब मेराज के मौके पर आप को इतना ऊँचा मकाम बख्शा गया तो आप (सल0) ने सोचा कि मैं अपनी उम्मत के लिए क्या तोहफा लेकर जाऊँ तो अल्लाह तआला ने फरमाया कि उम्मत के लिए यह ‘सजदा’ ले जाओ। इनमें से हर सजदा मोमिन की मेराज है। फरमाया कि जिस वक्त कोई मोमिन बंदा अपनी पेशानी अल्लाह तआला की बारगाह में जमीन पर रख देगा तो उसको मेराज हासिल हो जाएगा। लिहाजा यह सजदा मकामे कुर्ब है।

सजदा में कुर्बे खुदाबंदी- सूरत इकरा में अल्लाह तआला ने कितना प्यारा जुमला इरशाद फरमाया – यह आयत सजदा है। लिहाजा तमाम हजरात सजदा भी कर लें। फरमाया कि सजदा करो और हमारे पास आ जाओ। मालूम हुआ कि हर सजदा अल्लाह पाक के साथ कुर्ब का एक खास मरतबा रखता है और रमजान के महीने में अल्लाह तआला ने हमें चालीस सजदे और अता फरमा दिए। जिसका मतलब यह है कि चालीस मकामाते कुर्ब हर बंदे को रोजाना अता किए जा रहे हैं। यह इसलिए दिए कि ग्यारह महीने तक तुम जिन कामों में लगे रहे उन कामों की वजह से हमारे और तुम्हारे बीच कुछ दूरी पैदा हो गई है। इस दूरी को खत्म करने के लिए रोजाना चालीस मकामाते कुर्ब देकर हम तुम्हे करीब कर रहे है और वह है ‘तरावीह’। लिहाजा तरावीह को मामूली मत समझो।

तिलावते कुरआन की कसरत करेंः- रोजा तो रखना ही है और तरावीह पढ़नी ही है। इसके अलावा भी जितना वक्त हो सके इबादत में गुजारे मसलन तिलावते कुरआन का खास एहतमाम करो क्योंकि इस रमजान के महीने को कुरआन से खास मुनासिबत है। इसलिए इसमें ज्यादा से ज्यादा तिलावत करो। हजरत इमाम अबू हनीफा रमजानुल मुबारक में रोजाना एक कुरआन दिन में खत्म करते थे और एक कुरआन रात में खत्म किया करते थे और एक कुरआन तरावीह में खत्म फरमाते थे। इस तरह पूरे रमजान में इकसठ कुरआन खत्म किया करते थे। बड़े बुजुर्गो के मामूलात में तिलावते कुरआन दाखिल रही है। इसलिए हम भी रमजानुल मुबारक में आम दिनों की मिकदार के मुकाबले में तिलावत की मिकदार को ज्यादा करें।

नवाफिल की कसरत करेंः- दूसरे दिनों में जिन नवाफिल को पढ़ने की तौफीक नहीं होती उनकी रमजान में पढ़ने की कोशिश करें। मसलन तहज्जुद की नमाज पढ़ने की आम दिनों में तौफीक नहीं होती लेकिन रमजान में रात के आखिरी हिस्से में सेहरी खाने के लिए तो उठना ही है। थोड़ी देर पहले उठ जाएं और उसी वक्त तहज्जुद की नमाज पढ़ लें। इसके अलावा इशराक की नवाफिल, चाश्त की नवाफिल आम दिनों में अगर नहीं पढ़ी जाती तो कम से कम रमजान में तो पढ़ लें।
सदकात की कसरत करें- रमजानुल मुबारक मंे जकात के अलावा नफिली सदकात भी ज्यादा से ज्यादा देने की कोशिश करें। हदीस शरीफ में आता है कि नबी करीम (सल0) की सखावत का दरिया वैसे तो सारे साल ही बहता रहता था लेकिन रमजान में आप की सखावत ऐसी होती थी जैसे झोंके मारती हुई हवाएं चलती हैं तो आप के पास जो आया उसको नवाज दिया। लिहाजा हम भी रमजान में सदकात की कसरत करें।

अल्लाह के जिक्र की कसरत करेंः- इसके अलावा चलते फिरते उठते-बैठते अल्लाह तआला का जिक्र कसरत से करें, हाथों से काम करते रहे और जबान पर अल्लाह तआला का जिक्र जारी रहे। इसके अलावा दरूद शरीफ और इस्तिगफार की कसरत करें और इनके अलावा जिक्र भी जबान पर आ जाए बस चलते फिरते उठते बैठते अल्लाह तआला का जिक्र करते रहें।

गुनाहों से बचने का एहतमाम करेंः- रमजानुल मुबारक में खास तौर पर गुनाहों से बचें और इससे बचने की फिक्र करें। यह तय कर लें कि रमजान के महीने में यह आंख गलत जगह पर नहीं उठेगी। इंशा अल्लाह यह तय कर लें कि रमजान में इस जबान से गलत बात नहीं निकलेगी। इंशा अल्लाह झूट गीबत या किसी की दिल आजारी का कोई कलमा नहीं निकलेगा। रमजानुल मुबारक के महीने में इस जबान पर ताला डाल लो। यह क्या बात हुई कि रोजा रख कर हलाल चीजों के खाने से तो परहेज कर लिया लेकिन रमजान में मुर्दा भाई का गोश्त खा रहे हो। इसलिए कि गीबत करने को कुरआन ने मुर्दा भाई के गोश्त खाने के बराबर करार दिया है। लिहाजा गीबत से बचने का एहतमाम करें। झूट से बचने का एहतमाम करें और फुजूल कामों से, फुजूल मजलिसों से और फुजूल बातों से बचने का एहतमाम करें। इस तरह यह रमजान का महीना गुजारा जाए।

दुआ की कसरत करेंः- इसके अलावा इस महीने में अल्लाह तआला के हुजूर दुआ की खूब कसरत करें। रहमत के दरवाजे खुले हुए हैं, रहमत की घटाएं झूम झूम कर बरस रही हैं, मगफिरत के बहाने ढूंढे जा रहे हैं। अल्लाह तआला की तरफ से आवाज दी जा रही है कि है कोई मुझसे मांगने वाला जिसकी दुआ मैं कुबूल करूें। लिहाजा सुबह का वक्त हो या शाम का वक्त हो या रात का वक्त हो, हर वक्त मांगो। वह तो यह फरमा रहे हैं कि इफ्तार के वक्त मांग लो, हम कुबूल कर लेंगे। रात को मांग लो, हम कुबूल कर लेंगे। रोजा की हालत में मांग लो, हम कुबूल कर लेंगे। आखिर रात में मांग लो हम कुबूल कर लेंगे। अल्लाह तआला ने एलान फरमा दिया है कि हर वक्त तुम्हारी दुआएं कुबूल करने के लिए दरवाजे खुले हुए है इसलिए खूब मांगो। हमारे हजरत डाक्टर साहब फरमाया करते थे कि यह मांगने का महीना है। इसलिए उनका मामूल यह था कि रमजानुल मुबारक में अस्र की नमाज के बाद मगरिब तक मस्जिद में ही बैठ जाते थे और उस वक्त कुछ तिलावत कर ली, कुछ तस्बीहात और मनाजात मकबूल पढ़ ली और इसके बाद बाकी सारा वक्त इफ्तार तक दुआएं में गुजारते थे और खूब दुआएं किया करते थे। इसलिए जितना हो सके अल्लाह तआला से खूब दुआएं करने का एहतमाम करो। अपने लिए अपने नाते रिश्तेदार के लिए अपने मुताल्लिकीन के लिए अपने मुल्क व मिल्लत के लिए आलमे इस्लाम के लिए दुआएं मांगो। अल्लाह तआला जरूर कुबूल फरमाएंगे। अल्लाह तआला हम सबको अपनी रहमत से इन बातों पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए और इस रमजान की कद्र करने की तौफीक अता फरमाए और इसके अवकात को सही तौर पर खर्च करने की तौफीक अता फरमाए-आमीन।