एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट

मायावती उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बनी। सामान्यतया यह अपेक्षा की जाती है कि इस दौरान उसने दलित हित में बहुत कुछ किया होगा परंतु जमीनी सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है जैसाकि निम्नलिखित कुछ उदाहरणों से स्पष्ट है:-

  1. मायावती ने अपने शासन काल में कांशीराम द्वारा बामसेफ के माध्यम से बनवाई गई फिल्म “तीसरी आज़ादी” दिखाने पर उत्तर प्रदेश में 2007 में प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि इसके विरुद्ध सर्वजन के कुछ लोगों ने आपत्ति की थी। यह प्रतिबंध आज भी जारी है।
  2. मायावती ने उत्तर प्रदेश में पेरियार की पुस्तक “सच्ची रामायण’ की बिक्री पर 2007 में प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि इस पर सर्वजन के कुछ लोगों ने आपत्ति की थी।
  3. मायावती ने उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक स्थल अथवा निजी जमीन पर भी जिलाधिकारी की अनुमति के बिना डा. अंबेडकर की मूर्ति लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया था जो आज भी लागू है।
  4. मायावती ने एक दलित अधिकारी (हरीश चंद्र) द्वारा मायावती के अनुमोदन से स्पोर्ट्स कालेज में दाखिले में एससी के लिए आरक्षण किए जाने पर रोक लगा दी थी क्योंकि इस पर सर्वजन लोगों ने यह कह कर आपत्ति की थी कि इससे से खेलों के स्तर में गिरावट आ जाएगी। यह उल्लेखनीय है कि यह आरक्षण किसी टीम में नहीं बल्कि स्पोर्ट्स कालेज में प्रवेश के लिए ही था। मायावती ने यह भी कहा था कि उक्त अधिकारी ने मुझ से धोखे से दस्तखत करवा लिए थे।
  5. मायावती ने उसी दलित अधिकारी द्वारा मायावती के अनुमोदन से ही किसी दलित को किसी भी जमीन (ग्राम समाज सहित) पर झोंपड़ी अथवा मकान बना कर रहने पर बेदखल न करने बल्कि उक्त भूमि उसके नाम कर देने का शासनदेश जारी कर दिया था। इस पर सर्वजन के कुछ लोगों ने यह कह कर आपत्ति की कि इससे दलितों को किसी की भी जमीन पर कब्जा करने का अधिकार मिल जाएगा तो मायावती ने उक्त आदेश को यह कह कर रद्द कर दिया कि उक्त अधिकारी ने मुझ से गलत आदेश जारी करवा दिया था और हरीश चंद्र को राजस्व सचिव के पद से हटा दिया था।
  6. 1996 में कांशी राम ने लखनऊ में “पेरियार मेला” लगाने तथा परिवर्तन चौक पर पेरियार की मूर्ति लगाने की घोषणा की थी परंतु जब भाजपा ने इस का विरोध कर दिया तो न तो पेरियार मेला लगा और न ही आज तक लखनऊ में पेरियार की मूर्ति तो क्या एक पोस्टर तक भी नहीं लग पाया।
  7. मायावती का उत्तर प्रदेश के दलितों पर सबसे बड़ा कुठाराघात एससी/एसटी एक्ट को दलितों पर अत्याचार के मामले में लागू करने पर 2001 में यह कह कर कि इसका दुरुपयोग हो रहा है, रोक लगाना था। उस समय उक्त एक्ट में अत्याचार के 21 अपराध थे। मायावती द्वारा जारी शासनदेश में इसे 19 मामलों में लागू न करके केवल दो मामलों में ही लागू किया जाना था: एक हत्या और दूसरा बलात्कार। बलात्कार के मामले में भी यह शर्त थी कि पहले वह डाक्टरी मुआयने द्वारा प्रमाणित होना चाहिए। यह सर्व विदित है कि दलित औरतों के बलात्कार के मामले में डाक्टरी में कितनी हेराफेरी की जाती है। पुलिस इसमें जानबूझ कर देरी करती है ताकि साक्ष्य नष्ट हो जाए। इससे दलितों को दोहरी मार झेलनी पड़ी। एक तो दलितों पर अत्याचार करने वालों को सखत सजा से छूट मिल गई और वे बेधड़क हो कर दलितों पर अत्याचार करते रहे। दूसरे अत्याचार के मामले में इस एक्ट के अंतर्गत दलितों को मिलने वाला मुआवजा भी बंद हो गया। जिस दलित विरोधी कृत्य करने की किसी भी गैर दलित मुख्यमंत्री की हिम्मत नहीं हुई थी मायावती ने उसे धड़ल्ले से कर दिया। यह भी उल्लेखनीय है कि एससी/एसटी एक्ट केन्द्रीय एक्ट है और किसी राज्य सरकार को इसमें कोई भी परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है पर फिर भी मायावती ने पूरी हेंकड़ी के साथ इस पर रोक लगा दी। यह भी उल्लेखनीय है कि किसी पर झूठ मुकदमा करने वाले के विरुद्ध धारा 182 के अन्तर्गर कार्रवाही करने का पहले से ही प्रावधान है।

मायावती के उक्त दलित विरोधी गैर कानूनी कृत्य के विरुद्ध कुछ दलित संगठनों ने इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती देकर रद्द करवाया था। परंतु मायावती ने इसके बाद जो शासनदेश जारी किया उसमें अपने पूर्व शासनदेश को रद्द करते हुए यह भी लिख दिया कि इस एक्ट का किसी भी दशा में दुरुपयोग नहीं होना चाहिए जिसका मतलब पुलिस वाले बहुत अच्छी तरह से समझते हैं।

  1. मायावती के शासनकाल में दलितों पर अत्याचार के मामले यह कह कर दर्ज नहीं किए जाते थे कि इससे मायावती सरकार की बदनामी होगी। इसका खामियाजा दलितों को भुगतना पड़ता था। इसकी सबसे अच्छी उदाहरण अमेठी में ठाकुर लोगों द्वारा दलितों के 18 घर जलाए जाने की है। इसके बारे में मुझे बसपा के विधायक ने ही बताया था। उसने बताया था कि जब वह दलितों के घर जलाए जाने पर पुलिस द्वारा केस दर्ज न करने के मामले को लेकर मायावती से मिला तो मायावती ने उसे यह कह कर डांट दिया कि इससे सरकार की बदनामी होगी।
  2. 2007 में फैजाबाद (बीकापुर) बसपा के विधायक आनंद सेन पर फैजाबाद की विधि स्नातक दलित छात्रा शशि के अपहरण और हत्या का आरोप लगा था परंतु मायावती के संरक्षण के कारण वह बिल्कुल बरी हो गया था।
  3. 2011 में बसपा के विधायक पुरुषोतम द्विवेदी पर एक नाबालिग पिछड़ी जाति की लड़की ने अपहरण एवं बलात्कार का आरोप लगाया था परंतु कोई कार्रवाही नहीं हुई। इसके विपरीत बलात्कार की शिकार लड़की के विरुद्ध मोबाइल चोरी का आरोप लगा कर जेल भेज दिया गया। जब मायावती सरकार के इस पक्षपात के विरुद्ध भारी हंगामा हुआ तो मामले की विवेचना सीबीसीआइडी को दी गई और विधायक की गिरफ़्तारी हुई तथा वह जेल भेजा गया। अंतत: उसे न्यायालय से सजा हुई।
  4. यह सर्वविदित है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भोजन के अधिकार के अंतर्गत सभी सरकारी प्राइमरी तथा मिडल स्तर के विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था चल रही है जिसे पकाने हेतु दलित रसोइयों की नियुक्ति प्राथमिकता के आधार पर करने के आदेश हैं। इस आदेश के अंतर्गत कुछ दलित रसोइयों की नियुक्तियाँ उत्तर प्रदेश में की गई थीं। 2007 में जब मायावती भारी बहुमत से उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं तो लखनऊ के सरोजनी नगर ब्लाक के एक गाँव के स्कूल में एक दलित रसोइये द्वारा पकाए गए भोजन का बहिष्कार किया गया जिसकी खबर समाचार पत्रों में भी छपी। मायावती सरकार ने भोजन का बहिष्कार करने वाले छात्रों/अभिभावकों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाही करने की बजाए दलित रसोइये को ही नौकरी से निकाल दिया। हम लोगों ने अंबेडकर महासभा की तरफ से दलित रसोइये को बहाल कराने की बहुत कोशिश की परंतु कोई सफलता नहीं मिली। इतना ही नहीं मायावती सरकार ने दलित रसोइयों की भर्ती करने वाला शासनदेश ही रद्द कर दिया।

उपरोक्त कुछ उदाहरणों से स्पष्ट है कि मायावती कितनी दलित हितैषी रही है।