तौक़ीर सिद्दीक़ी

टी 20 विश्व कप में भारत की एक और दिल तोड़ने वाली हार. समझ में नहीं आता कि बात कहाँ से शुरू करूँ। क्या इसे कोहली का नसीब समझूँ जो अभी तक किसी भी ICC टूर्नामेंट में खिताबी जीत से महरूम हैं, उनके अतिआत्मविश्वास को दोष दूँ, सही मौकों पर ग़लत टीम सिलेक्शन पर इलज़ामतराशी करूँ या पाकिस्तान से मिली हार का सदमा कहूँ। कल न्यूज़ीलैण्ड के मैच से पहले जब प्रेस ब्रीफिंग में कोहली बड़ी बड़ी विराट बातें कर रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि सबकुछ ठीक, पाकिस्तान से मिली 10 विकेट से हार एक संयोग है मगर जब न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ भी ठीक पाकिस्तान जैसा नतीजा सामने आया, बल्कि कुछ मायनों में उससे भी बुरा तो साफ़ हो गया कि टीम इंडिया डिमोरलाइज है और बहुत दबाव में है.

दबाव तो अंतिम 11 की घोषणा से ही ज़ाहिर हो गया था. माना कि सूर्यकुमार फिट नहीं थे और ईशान किशन को टीम में शामिल किया गया मगर दुबई के मैदान पर आश्विन को टीम से एकबार फिर बाहर रखना कोई समझदारी वाला फैसला नहीं था, पता नहीं विराट की आश्विन से कुछ पर्सनल प्रॉब्लम है या कुछ और पर यह तो सच है कि आश्विन को वहां भी मौके नहीं मिल रहे हैं जहाँ उसे हर हाल में मिलने चाहिए। हर कप्तान के कुछ फेवरिट खिलाड़ी होते हैं मगर जब वह फेवरिज़्म कप्तान की ज़िद बन जाय तो नुक्सान टीम को ही भुगतना पड़ता है, ऐसा लगता है जैसे हार्दिक पांड्या कप्तान कोहली की ज़िद हैं.

चलिए टीम सेलेक्शन खैर कोई इतनी बड़ी बात नहीं क्योंकि टीम इंडिया में जितने भी खिलाड़ी हैं सब अपने आप में बेहतरीन हैं और खुद को साबित भी कर चुके हैं मगर कोहली ने जिस तरह बैटिंग आर्डर में परिवर्तन किया वह फैसला हर क्रिकेट पंडित की समझ से बाहर रहा. ऐसा लगा जैसे कोई पैनिक बटन दब गया हो. रोहित शर्मा जैसे बल्लेबाज़ को जिसने अपना जितना भी बेस्ट दिया है एक ओपनर के रूप में दिया है उसके ऊपर एक नए चेहरे ईशान किशन को मौका देना और फिर खुद को नंबर तीन से नंबर चार पर शिफ्ट करना यह साबित करता है कि कोहली में कॉन्फिडेंस की कमी थी.

आप विराट के बचाव में कह सकते हैं कि इस तरह का फैसला पूरा टीम मैनेजमेंट लेता है मगर शायद विराट की पर्स्नालिटी पर यह तर्क सही नहीं बैठता, विराट के बारे में मशहूर कि वह टीम के सारे फैसले खुद लेता है, रवि शास्त्री तो बस यस मैन हैं, इसलिए किसी और को दोष नहीं दिया जा सकता।

और सबसे बड़ी बात यह कि इन सारे चेंजेज़ से टीम को फायदे की जगह नुक्सान ही हुआ, परफॉर्मन्स में सुधार की जगह और बिखराव दिखा, बल्लेबाज़ों ने पहले मैच से ज़्यादा घटिया प्रदर्शन किया। और फिर जब स्कोर बोर्ड पर सिर्फ 110 रन लगे हों तो गेंदबाज़ों के पास भी ज़्यादा कुछ करने को नहीं रह जाता। हालाँकि उनकी परफॉर्मन्स भी उनके मेआर से काफी घटिया रही और इसका सबूत आंकड़े हैं. दो मैचों में सिर्फ दो विकेट! शायद अबतक का सबसे घटिया परफॉरमेंस ।

लगातार दो मैच जाना कोई हैरानी की बात नहीं है, दुनिया की जितनी बड़ी टीमें हैं सभी के साथ कभी न कभी ऐसा हो चूका है, हैरानी है हार के तरीके पर. एक वर्ल्ड क्लास टीम जो आलमी कप जीतने की हॉट फेवरिट थी आज उसका सेमी फाइनल में पहुंचना दूसरी टीमों पर डिपेंड हो गया. एक असंभव सा समीकरण, कि हम अपने बाकी सभी मैच जीतें, फलां टीम फलां को हरा दे, फलां टीम फलां टीम के खाफ बड़ी जीत दर्ज कर ले. यह सब दिल को बहलाने वाली बातें हैं जिनकी ज़रुरत टीम इंडिया को कभी नहीं रही. तकनीकी रूप से हम भले ही अभी विश्व कप में मौजूद दिख रहे हों मगर सभी जानते हैं कि कहानी ख़त्म हो चुकी है. वैसे तो क्रिकेट में कभी भी कुछ भी हो सकता है मगर होना बहुत मुश्किल नज़र आ रहा.

हमारा अगला मैच अफ़ग़ानिस्तान से है, जिसे हराना अब पहले जैसा आसान नहीं। उसके पास वर्ल्ड क्लास स्पिनर हैं जिनको अगर एक अच्छा टोटल मिल जाय तो उसको वह आसानी से डिफेंड कर सकने में सक्षम हैं। यह मैच भी विराट सेना के काफी महत्वपूर्ण और दबाव वाला होगा क्योंकि टीम इंडिया इस मैच को अपना सम्मान बचाने के रूप में खेलेगी जिसका टीम पर अतिरिक्त दबाव होगा।

बहरहाल भारत के दो लगातार मैच हार जाने और सेमीफाइनल में पहुँचने की उम्मीदें लगभग ख़त्म हो जाने से विश्व कप की रौनक तो कम हो गयी है, न्यूज़ीलैण्ड से मैच से पहले लोग इंडिया-पाकिस्तान फाइनल की बात कर रहे थे जो अब बहुत मुश्किल दिख रहा है.