• राजेश सचान, संयोजक, युवा मंच

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की शुरुआत में ही हालात बेहद खराब हैं। उत्तर प्रदेश में तो हालात बेकाबू होते जा रहे हैं, संक्रमण के दूसरी लहर की शुरुआत में ही स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह चरमरा गई हैं, जबकि अभी संक्रमण के पीक आने के काफी पहले हैं। प्रदेश में पिछले 24 घण्टे में ही 22 हजार से ज्यादा संक्रमित मरीज मिले। कल तक प्रदेश में 129848 सक्रिय मरीज थे जिसमें से 66528 होम आइशोलेशन में थे, बावजूद इसके अमूमन हर जिले से कोविड बेड के फुल होने की रिपोर्ट है। बेड उपलब्ध नहीं होने के चलते इलाज के अभाव में कोविड संक्रमित गंभीर मरीजों के मरने की भी खबरें आ रही हैं। टेस्टिंग से लेकर अस्पताल और शमशान तक हर जगह अफरातफरी, अव्यवस्था और अराजकता का आलम है। कोविड मरीजों के लिए जीवन रक्षक रेमडेसि्विर सहित प्रमुख दवाओं और आक्सीजन की भारी कमी है।

राजधानी लखनऊ और इलाहाबाद में हालात नियंत्रण के बाहर होने जैसा प्रतीत हो रहा है। प्रदेश सरकार में कानून मंत्री ने इन हालातों की स्वीकारोक्ति उनके द्वारा प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को लिखे गए पत्र में की है जिसमें उन्होंने जिक्र किया है कि उनके प्रयासों के बाद भी एक कोरोना मरीज को एंबुलेंस मुहैया कराने में विफल रहे और उसकी मौत हो गई। उन्होंने स्वीकार किया कि प्रदेश में न समय पर जांच हो रही और न मरीज ही भर्ती हो पा रहे हैं। इसी तरह यश भारती और पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित लेखक प्रवीण भारती की एंबुलेंस नहीं मिलने और इलाज के अभाव में मृत्यु हो गई। लखनऊ में ही इ़टौजा के मनीष मिश्रा के पिता की कोविड रिपोर्ट पाजिटिव आने के बाद गंभीर हालत के बावजूद नान कोविड अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया और कोविड अस्पताल में बेड नहीं होने से इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई, उनकी मौत के बाद अस्पताल से बेड खाली होने की सूचना दी गई। सरकारी अस्पताल कोरोना की निगैटिव रिपोर्ट के बाद डिस्चार्ज कर दे रहे हैं भले ही मरीज गंभीर तौर बीमार हो। लेकिन ऐसे मरीजों को निगैटिव रिपोर्ट के बावजूद निजी अस्पताल भर्ती नहीं कर रहे हैं।

इलाहाबाद में एजी कर्मचारी अशोक यादव का सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा था, निगैटिव रिपोर्ट बता कर उन्हें जबरन डिस्चार्ज कर दिया गया, जबकि उनकी हालत गंभीर थी, निजी अस्पतालों ने उन्हें भर्ती करने से इनकार कर दिया और उनकी इलाज के अभाव में मौत हो गई। लखनऊ, इलाहाबाद समेत प्रदेश भर में इसी तरह की अनगिनत मामले हैं। जैसी बदहाली और भयावह स्थिति लखनऊ, इलाहाबाद जैसे प्रमुख शहरों में है कमोबेश उसी तरह के हालात की ओर प्रदेश के छोटे जनपद और ग्रामीण क्षेत्र अग्रसर हैं। प्रदेश सरकार की ऐसी कोई स्पष्ट और बाध्यकारी गाईड लाईंस नहीं है जो निजी अस्पतालों पर लागू हों, लिहाजा निजी अस्पताल मनमर्जीपूर्ण ढंग से इलाज कर रहे हैं और गरीबों की तो यहां इलाज कराना क्षमता के बाहर है। गरीबों के इलाज के बहुप्रचारित आयुष्मान बीमा योजनाओं की असलियत भी उजागर हो गई है। इस दौर में शायद ही आयुष्मान योजना के तहत कोई निजी अस्पताल ईलाज के लिए तैयार हो। टेस्टिंग की स्थिति यह है कि निजी पैथोलॉजी आम तौर पर टेस्टिंग नहीं कर रहे हैं और सरकारी पैथोलॉजी में 2-3 दिनों में मरीजों के टेस्टिंग का नंबर आ रहा है और इसके बाद 5-7 दिनों में रिपोर्ट आ रही है। इतनी ज्यादा अवधि में अगर कोई गंभीर रूप से बीमार होने है और कोविड लक्षण न भी हो तो भी इन मरीजों को न तो कोविड अस्पताल में भर्ती किया जाता है और नान कोविड अस्पतालों में। हालत यह है कि नान कोविड गंभीर मरीजों के इलाज में भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

लखनऊ समेत सभी जिलों में ओपीडी सेवाओं पर रोक लगा दी गई है। सबसे ज्यादा कठिनाइयों का सामना गरीब मरीज कर रहे हैं जो आम तौर पर सरकारी अस्पतालों पर इलाज के लिए निर्भर रहते हैं और मंहगे निजी अस्पताल उनकी पहुंच से बाहर हैं। स्थिति की भयावहता के चलते ही हाईकोर्ट ने प्रदेश की गम्भीर होती स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर पारित आदेश में टिप्पणी में कहा कि उत्तर प्रदेश में कोविड संक्रमण के एक साल बीतने के बाद भी सुविधाएं नहीं हैं और नाईट कर्फ्यू आदि के उपाय नाकाफी हैं। हाईकोर्ट ने कोरोना नियत्रंण के लिए ट्रैकिंग, टेस्टिंग व ट्रीटमेंट का सुझाव देते हुए मौजूदा हालात में गंभीर चिंता व्यक्त की है। दरअसल कोरोना नियंत्रण के नाम पर योगी सरकार ने हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर न्यूनतम ध्यान देने के बजाय सिर्फ बयानबाजी व आंकडे़बाजी के प्रोपेगैंडा पर जोर रहा है और हालात इतने खराब होने के बावजूद अभी भी मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय से ट्वीट किया जा रहा है कि प्रदेश में कहीं पर भी आक्सीजन, वेंटिलेटर और दवाओं की कमी नहीं है। विगत साल इसी दरम्यान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा एक लाख से ज्यादा कोविड बेड तैयार करने के रिकॉर्ड का दावा किया था। उस वक्त बताया गया था कि प्रदेश के एल-3 के 25 अस्पतालों में 12090 बेड हैं जिनमें सभी बेड में वेंटिलेटर की सुविधा उपलब्ध है, इसके अलावा एल-2 के 75 अस्पतालों में 16212 बेड हैं जिसमें आक्सीजन की सुविधा है। आखिर इन दावों का क्या हुआ, आज क्यों एक साल पहले कोविड के लिए तैयार किये गए एल-3 व एल-2 अस्पतालों में भी वेंटिलेटर व आक्सीजन की कमी है इसका कोई भी जवाब मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश सरकार के पास नहीं है।


दरअसल उसी वक्त सवाल उठाया गया था कि जैसे तैसे एक लाख कोविड बेड तैयार करना पर्याप्त नहीं है बल्कि सच्चाई यही थी कोविड बेड के साथ जरूरी न्यूनतम इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव था। जो पहले से ही सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध था उसके अलावा हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आम तौर पर कुछ भी नहीं किया गया था। गौरतलब है कि गत वर्ष बद इंतजामी व बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के मुद्दे पर दाखिल आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की जनहित याचिका में माननीय हाईकोर्ट के आदेश पर ओपीडी, आईपीडी खोलने और कोविड-नानकोविड सभी प्रकार के मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने का राज्य सरकार को निर्देश दिया था। गत वर्ष भी प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं किस तरह चरमरा गई थीं, यह किसी से छिपा नहीं है। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद योगी सरकार ने संक्रमण की किसी नई लहर से निपटने के लिए नोटिस लेने लायक कुछ भी नहीं किया। जबकि संक्रमण की दूसरी लहर के बारे में देश-विदेश के विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी देते हुए इससे निपटने के लिए पुख्ता उपाय करने का परामर्श दिया था। लेकिन इस सब से सीख लेने और मुकम्मल इंतजाम करने के बजाय उत्तर प्रदेश सरकार अपनी उपलब्धियों का महिमामंडन और शेखी बघारने में लगी रही। और इस बार जो वक्त 6-7 महीने का मिला था उसे बर्बाद कर दिया। अगर इस वक्त का उपयोग हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में किया जाता, भले ही कैजुअल ढ़ंग से ही सही लेकिन ब्लाक से लेकर जिला स्तर तक इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जाता, समुचित संख्या में बेड, आक्सीजन, वेंटिलेटर से लेकर जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता के लिए तैयारी की गई होती, हेल्थ वर्कर्स की भर्ती की गई होती, निजी अस्पतालों को भी किफायती दर से इलाज के लिए करार किया गया होता तो मौजूदा विकट हालात जो प्रदेश में पैदा हुए हैं उससे बचा जा सकता था। आज जैसा मंजर है उससे यहां राज्य के राज्य विहीन होने का आभास हो रहा है। दरअसल यह योगी सरकार की दायित्वों के निर्वहन के प्रति संवेदनहीनता की चरम पराकाष्ठा है।

उत्तर प्रदेश में हालात बेहद नाजुक हैं। युवा आपदा के शुरुआत से ही लगातार प्रदेश व केंद्र सरकार से आपदा से निपटने के लिये लगातार समुचित कदम उठाने की मांग करता रहा है और इसके लिए आवाज उठाते रहे हैं। लेकिन प्रदेश व केंद्र सरकार द्वारा अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया गया। जिससे मौजूदा विकट परिस्थिति पैदा हुई है। इसलिए बेहद जरूरी है कि सरकार तत्काल पहलकदमी ले।
राजेश सचान, संयोजक युवा मंच
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