यौमे वफात 31 दिसम्बर पर खुसुसी मजमून

आरिफ़ नगरामी

सरजमीने हिन्द इस बात पर जितना फख्र व नाज करे कम है उसने ऐसे गैय्यूर उमला, व दाअयाने इस्लाम, जलीलुल मरतबत दानिशवर, बुलंदपाया, मुसलह, इस्लामी तफक्कुर के निशाने इफ्तेखार, इस्लामी आफाकियत के नकीब, और वसीहतर इस्लामी अखूवत के अमीन और मरदाने हक आगाह को जन्म दिया। जिन्होने तारीख का धारा बदल दिया और जिन्होंने जुरअते रिन्दाना से काम लेकर जाबिर व शफ्फाक और जालिम व सरकश हुक्मरानों का मुकाबला करके तारीख साज कारनामा अन्जाम दिया।

तकरीबन आठ साल सौ तक मुस्लिम उमरा व सलातीन ने हिन्दुस्तान पर हुक्मरानी की लेकिन दीने इस्लाम की खिदमत का एजाज उन्हंे नसीफ नहीं हुआ। तकदीर में यह सआदत खल्लाके अजल ने उन दाअयाने हक, उमलाए इस्लाम और मुस्लेहीन उम्मत के नसीब में रकम कर दी थी। जिन्होंने हर चहार एतराफ से होने वाली साजिशों और हर जेहत से खड़ी की जाने वाली रूकावटों का न सिर्फ यह कि सामना किया बल्कि मुसलमानों के दिलों में तूफानी चेलेन्जों से निमटने का शऊर और जज्बा भी बेदार किया।

हिन्दुस्तानी मुसलमानों की तारीख मुसलसल आजमाइशों की कहानी है। मुसलमनाने हिन्द ऐसे कठिन दौर से गुजरे जब कुफ्र व शिर्क और जलालत व गुमराही का तूफान उन्हें सफहे हस्ती से मिटा देने वाला था ऐसे आलम में अल्लाह ताला ने उलमा और बकिरदार सालेह दाअय्याने हक को इस तूफान के मुकाबले में सीसा पिलाई हुई दीवार बनाकर खड़ा कर दिया। उलमाए किराम ने मुसलमानों के उखड़ते और डगमगाते हुए कमद जमाने में रात-दिन एक कर दिया उलमा ने मुसलमाने हिन्द के दिलों को इस्लाम की मोहब्बत और मिल्लत के दर्द से सरशार कर दिया। उनके दिलों में इस्लामी गैरत व हमय्यत का जजबा बरपा किया। उन्हें दरपेश मसाएल व मसाएब के हल के लिए कुरआन व सुन्नत से रूजू करने का दर्स दिया। उन्हंे बताया कि हिन्दुस्तान में उनकी बका और उनके तशख्खुस को दरपेश जुमला आजमाइशों का वाहिद हल इस्लाम में ही है और उन्हंे इस रौशन हकीकत से आगाह किया कि अजमते रफता और शानदार पुरवकार, माजी की बहाली किताब इलाही से वाबिस्तगी और सुन्नत मुबारका के अहया के बगैर मुमकिन नही है।

इस रौशन पैगाम और पाकिजा तहरीक की अलम बरदार और काफिला सालार हस्तियों में नुमाया तरीन नाम मुफक्करे इस्लाम हजरत मौलाना सै0 अबुल हसन अली हसनी नदवी अली मियां का है। उनकी रहलत से दुनियाए इस्लाम बीसवीं सदी की उस अजीम हस्ती से महरूम हो गयी। जो खुसूसन बर्रे सगीर और उमूमन पूरी दुनिया के लिए दीनी बसीरत और इस्लामी तफक्कुर का निशान इम्तेयाज थें। मौलाना अली मियां ने मआशरे में इस्लाम का मकाम व मर्तबा बहाल करने और दीन के नाम पर पूरी मुस्लिम दुनिया में सियासी बदउनवानी को जेर करने के लिए जबान व कलम से बड़ा जेहाद किया।

हजरत मौलाना अली मियां जिनका कल 31 दिसम्बर को यौमे वफात है कि शख्सियत हमारे लिए एक रौशन मीनार की हैसियत रखती है जो रहनुमाई का मियार भी है वह सिदको-सफा के पैकर और सब्र व ताब के आईनादार आलिम थे। मौलाना मरहूम की दीनी व इल्मी खिदमात का एतराफ अरब व अजम दोनों ने किया है। वह एक मुफक्किर, दानिशवर और दुरवेश सिफत आलमें दीन थे हक गोई और जुर्रत पसंदी उनका शेवा था एत्तेहाद व एतेदाल उनका मिश्न था उनकी बसीरत अफजों कारनामे हमारी जिन्दगी के लिए मशअले राह है। मुफक्किरे इस्लाम मौलाना अली मियां इल्म व फजल, जोहद, व तकवा, और एखलास में मुमताज मकाम रखते थे, हुस्न एखलाक, नर्म मिजाजी और रहम दिली उनकी जिन्दगी का नुमाया पहलू था, हक पर साबित कदम रने वाले, दायाना किरकार आलिमाना वकार जैसे आला सिफात के मालिक थे।

हजरत मौ. अली मियां बहुत बड़े मुसन्निफ, उर्दू और अरबी के साहिबे असलूब अदीब, मुकर्रिर और खतीब थे। आलमे अरब में बर्रे सगीर की मुसलमानों की पहचान थे। किसी कांफ्रेंस या महफिल में उनका वजूद उसकी कामयाबी की जमानत समझी जाती थी इन तमाम बातों से हटकर वो निहायत खलीक, मुतवाजे और मुनकसीरूल मिजाज इंसान थे। अल्लामा इकबाल का आलमे अरब में सही तआरूफ उन्हीं की किताब रवाये इकबाल से हुआ वो अपने उस्ताद अल्लामा सै. सुलेमान नदवी के बारे में लिखते हैं। ‘‘सैय्यद साहब की जिंदगी का सबसे नुमाया और मुमताज पहलू उलमा में उनकी जामेइयत और उनके उलूम मजामीन का तनव्वो है उनकी जात और उनकी इल्मी जिंदगी में कदीम व जदीद की वाकफियत अदबी जौक मोअर्रिक की हकीकत पसंदी, संजीदगी, उदबा, इंसा परदाजो की सुगुफ्तगी इस तरह जमा हो गयी थी वो साजो नाजिर जमा होती है ।’’ मौ. अली मियां मजकूरा अल्फाज अपने उस्ताद अल्लामा सै. सुलेमान नदवी के बारे में कहे थे मेरा ख्याल है कि ये तमाम बातें खुद मौ. अली मियां शख्सियत पर सादिक आती है उनकी किताबों का असलूब निहायत दिलकश, जिरा व तान से पाक और इल्मी हलावत से भरपूर होता था कहीं भी किसी लोज की गुंजाइश नहीं होती है एक तरफ वो तसव्वुफ के बहुत बड़े दायी थे और ये ऐतीकाद रखते थे तसव्वुफ तजकिए नफ्ज और जाइले आमाल से पाकी और एख्लाके हमीबा की तामीर का बहुत बड़ा जरिया है। मौ. अली मियां की जिंदगी दुनियावी आलाइश से पाक थी उनके अंदर दुनिया से इस्तेगना और उसकी बेसबाती नजर आती है। बहुत ही मामूली लिबास जेबतन करते थे। जो सिर्फ एक मामूली कपड़े का कुर्ता पैजामा और शेरवानी पर मुस्तमिल होता था फैसल अवार्ड के लिए जब उनको सऊदी अरब की राजधानी रियाज बुलाया गया तो उनकी जगह उनके नुमाइंदे ने इनाम हासिल करने के बाद ये एलान किया कि इनाम की रकम अफगान मुजाहिदीन और मदारिसे तहफिजुल कुरान के लिए वक्फ है मौ. की जिंदगी में रमजानुल मुबारक के आखिरी अशरे में एक मखसूस हवाई जहाज से हजरत मौलाना लखनऊ से दुबई लाया गया। ताकि इस्लाम के खिदमत के सिलसिले में अमारत का सबसे बड़ा इनाम उनको दिया जाए। मौ. एक मुबारक गनीमत मौका समझते हुए इनाम की तरफ बगैर किसी इल्तिफाक से एक दाई और मुबल्लिग की जिम्मेदारी निभायी। सुल्तान बरोनाई का वफ्द लखनऊ जाने के लिए हिंदुस्तान पहुंचा ताकि मौ. को अपने मुल्क के सबसे बडे़ इनाम से नवाजे ये वफ्द सेक्योरिटी के पेश नजर लखनऊ नहीं पहुंच पाया इसलिए मौलाना के अहलेखाना ने देहली पहुंच कर इनाम वसूल किया और वहीं यह एलान कर दिया कि इनाम की रकम हिंदुस्तानी मदारिसे इसलामिया के लिए वक्फ है।