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तीन दशक साल पुराने रोड रेज केस में पूर्व पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका देते हुए एक साल जेल की सजा सुनाई है. कोर्ट ने अपने 15 मई, 2018 के जुर्माने की सजा को बदल दिया है. जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने ये फैसला सुनाया है.

इसी साल 25 मार्च सुप्रीम कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू की सजा बढ़ाने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा था. सभी पक्षों की दलीलें सुनने को बाद फैसला सुरक्षित रखा था. सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि सिद्धू की सजा बढ़ाई जाए या नहीं. पीड़ित परिवार की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने साधारण चोट की बजाए गंभीर अपराध की सजा देने की याचिका पर सिद्धू को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. पीड़ित परिवार ने याचिका दाखिल कर रोड रेज केस में साधारण चोट नहीं बल्कि गंभीर अपराध के तहत सजा बढ़ाने की मांग की.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साधारण चोट का मामला बताते हुए सिर्फ ये तय करने का फैसला किया था कि क्या सिद्धू को जेल की सजा सुनाई जाए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान विशेष पीठ में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल के सामने पीड़ित परिवार यानी याचिकाकर्ता की ओर से सिद्धार्थ लूथरा ने कई पुराने मामलों में आए फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सड़क पर हुई हत्या और उसकी वजह पर कोई विवाद नहीं है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी साफ है कि हत्या में हमले की वजह से चोट आई थी, हार्ट अटैक नहीं, लिहाजा दोषी को दी गई सजा को और बढ़ाया जाए. सिद्धू की ओर से पी चिदंबरम ने याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने मामले को अलग दिशा दी है. ये मामला तो आईपीसी की धारा 323 के तहत आता है. घटना 1998 की है. कोर्ट इसमें दोषी को मामूली चोट पहुंचाने के जुर्म में एक हजार रुपये जुर्माने की सजा सुना चुका है.

जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा था कि पिछले फैसले जो उद्धृत किए गए हैं उनके मुताबिक भी ये सिर्फ मामूली चोट का मामला नहीं बल्कि एक खास श्रेणी में आता है. अब आपको उन दलीलों के साथ बचाव करना है. पूरे फैसले के बजाय आपको सजा की इन्हीं दलीलों पर अपना जवाब रखना है. मौजूदा स्थिति में हम सिर्फ इसी पर सुनवाई को फोकस रखना चाहते हैं. हम पेंडोरा बॉक्स नहीं खोलना चाहते.

चिदंबरम ने कहा कि इसका मतलब मामले के फैसले को फिर से खोलना होगा.

इससे पहले नवजोत सिंह सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था और अपने खिलाफ पुनर्विचार याचिका को खारिज करने की मांग की थी. सिद्धू ने अनुरोध किया कि उनको जेल की सजा ना दी जाए. फैसले पर पुनर्विचार के लिए कोई वैध आधार नहीं है. कोई हथियार बरामद नहीं हुआ, कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी. घटना को 3 दशक से अधिक समय बीत चुका है, पिछले 3 दशकों में उनका बेदाग राजनीतिक और खेल करियर रहा. सांसद के रूप में बेजोड़ रिकॉर्ड है.

उन्होंने लोगों के भले के लिए भी काम किया. जिन लोगों को आर्थिक मदद की जरूरत थी, उनकी मदद के लिए परोपकार के कार्य किए. वो कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं. उनको आगे सजा नहीं मिलनी चाहिए. अदालत ने 1000 रुपये जुर्माने की जो सजा दी थी, वही इसके लिए काफी है.

इससे पहले सिद्धू की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए सिद्धू को राहत दी थी क्योंकि 20 फरवरी को पंजाब में मतदान होना था.

15 मई, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को 1988 के रोड रेज मामले में मात्र 1,000 रुपये के जुर्माने के साथ छोड़ दिया था. इसमें पटियाला निवासी गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सिद्धू को स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दोषी ठहराया था और उन्हें 3 साल की जेल की सजा सुनाई थी, लेकिन SC ने उन्हें 30 साल से अधिक पुरानी घटना बताते हुए 1000 जुर्माने पर छोड़ दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि आरोपी और पीड़ित के बीच कोई पिछली दुश्मनी नहीं थी. आरोपी द्वारा किसी भी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया था,लेकिन सितंबर 2018 में 1988 की पटियाला में रोड रेज केस में नवजोत सिंह सिद्धू को झटका लगा था.