लखनऊ:
आंध्र प्रदेश की कोनेरू हम्पी और डी हरिका के बाद चेन्न्ई की वैशाली रमेशबाबू के भारत की तीसरी महिला शतरंज ग्रैंडमास्टर बनने से उभरती हुई महिला शतरंज खिलाड़ी खासी रोमांचित है। वहीं वैशाली की इस उपलब्धि ने लखनऊ की महिला शतरंज खिलाड़ियों में खासा जोश भर दिया है।

इसमें लखनऊ की दो टॉप रेटेड युवा महिला खिलाड़ियों जुसफिका लिलियम लोबो और ऐमन अख्तर का जोश भी हाई है। इन दोनों ने कहा कि यह साबित करता है कि महिलाएं पुरुषों की तरह ही सोच सकती है। यह हमारे लिए गौरव का पल है कि हमारी पीढ़ी का कोई व्यक्ति शीर्ष पर जा रहा है। अब हम भी उत्साहित है कि हम भी शतरंज की बिसात पर अपना लोहा मनवा सकते हैं।

हाल ही में चेस क्लब ब्लैक एंड व्हाइट (सीसीबीडब्ल्यू) के माध्यम से “प्रोटेक्ट योर क्वीन” अभियान शुरू करने वाली 14 साल की प्रिशा गर्ग का कहना है कि वैशाली की उपलब्धि हमारे पूरे समाज के लिए एक शानदार पल है।

उन्होंने कहा कि मेरा अभियान लड़कियों के प्रति लड़को के आचरण के खिलाफ है। यह शतरंज में अक्सर देखा गया है कि जब लड़के लड़कियों से हार जाते है तो नाराज हो जाते है। हम लड़को को विचारशील बना रहे है न कि उन्हें तिरस्कृत कर रहे है।

फिडे इंटरनेशनल आर्बिटर और “18×64 लाइफ लेसन्स, चेस क्लास विद भगवद गीता श्लोक” के लेखक नवीन कार्तिकेयन अभी लखनऊ में सीसीबीडब्ल्यू के लिए टूर्नामेंट आयोजित करा रहे हैं। नवीन के अनुसार वैशाली की इस ऐतिहासिक उपलब्धि से पता चलता है कि खिलाड़ी की कड़ी मेहनत और एक अच्छी खेल संस्कृति से क्या सोपान हासिल किये जा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि हम महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए टूर्नामेंट से जुड़े विशिष्ट नियम लागू कर रहे हैं। उदाहरण के लिए महिला खिलाड़ियों की टेबल पर कोई भीड़ नहीं होगी और बिना अनुमति के उनकी कोई तस्वीर नहीं खींच सकेगा।

पूर्व महिला राज्य शतरंज चैंपियन और शहर की एकमात्र पेशेवर महिला शतरंज कोच, शिल्पा मेहरा के ने बताया कि वैशाली की उपलब्धि के चलते उत्तर भारत में अधिक माता-पिताओं का रूझान अपनी बेटियों को शतरंज खिलाने की ओर होगा। शिल्पा के अनुसार मुझे याद है कि 25 साल पहले जब मैं जिला चैंपियनशिप में गयी थी तो वहां 50 पुरुष खिलाड़ियों से भरे एक कमरे में मैं अकेले थी।

हालांकि अपनी शतरंज मॉम और सहायक पुरुष मित्रों के सहयोग से मैन इस चुनौती को पार किया। यहां यह भी बताना चाहूंगी कि हमारे क्लब ने हमारे कई खिलाड़ियों की माताओं को शतरंज खेलने के लिए प्रेरित किया है। अब वैशाली हमारी पोस्टर गर्ल है।

सीसीबीडब्ल्यू के निदेशक, पूर्व राज्य चैंपियन, लखनऊ नगर निगम के खेल अधिकारी, डॉ. जुनैद अहमद के अनुसार हम लड़कियों को शतरंज अपनाने को प्रेरित करने के लिए टूर्नामेंटों की श्रृंखला आयोजित कर रहे हैं। एक खेल के रूप में शतरंज में कड़ी मेहनत होती है और टूर्नामेंटों में उम्दा पुरुष खिलाड़ी भी दबाव में बिखर जाते है। ऐसी पीढ़ी के लिए वैशाली एक उदाहरण है।

हाल ही में लखनऊ में हुए 60 प्लस सीसीबीडब्ल्यू शतरंज टूर्नामेंट में हिस्सा ले चुकी दो महिलाओं में से एक 80 साल की इंद्राणी बसु (लखनऊ के युवा स्टेट चैंपियन समीर की दादी) बताती है कि मैने उसे शतरंज से जोड़ा और अब वो मुझे खुद शतरंज में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा है। उन्होंने कहा कि उम्र सिर्फ एक संख्या है। मुझे इस टूर्नामेंट में बहुत मजा आया और मुझे फिर से एक युवा की तरह महसूस हुआ।

वरिष्ठ खिलाड़ी और लखनऊ के जाने-माने कोच आरिफ़ अली के अनुसार इसकी शुरुआत पुरुषों से होती है। अगर हम अपने परिवार में महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा और अवसरों लिए समर्थन देते है बिना इसकी परवाह करते हुए कि लोग क्या कहेंगे।

आईटी कॉलेज में इतिहास की प्रोफेसर डॉ अमिता डेविड कहती हैं कि जब भी तनावग्रस्त होती हूं तो शतरंज की ओर रुख करती हूं और इससे मुझे निर्णय लेने में स्पष्टता पाने में मदद मिलती है। शतरंज सभी उम्र और वर्ग के लिए एक महान शैक्षिक उपकरण है। यहां यह भी बताते चले कि उनकी मां और लखनऊ की प्रसिद्ध शिक्षाविद् विद्या डेविड 70 साल की उम्र में फिडे वर्ल्ड टीम इवेंट में खेलने के लिए आइल ऑफ मैन (यूके) भी गईं थी।