रजा मुराद, गीतकार समीर और अदबी हस्तियों के बीच छह को होगा नाटक ‘हब्बा खातून’ व सम्मान समारोह

लखनऊ:
प्रो.शारिब रुदौलवी की अध्यक्षता में अतहर नबी की हिन्दी और उर्दू दो भाषाओं में लिखी औपन्यासिक कृति ‘घरौंदा’ का लोकार्पण उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, गीतकार समीर व अभिनेता रजा मुराद ने प्रो.शारिब रुदौलवी की अध्यक्षता में होटल क्लार्क अवध में हुए समारोह में किया। इसी के साथ हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड समिति का दो दिवसीय स्वर्ण जयंती समारोह प्रारम्भ हो गया। इस अवसर पर गायिका पूजा गायतोण्डे की सूफी अंदाज भी गजलगोई ने सभी को लुभाया। समारोह के दूसरे दिन कल नौशाद संगीत डेवलपमेण्ट सोसायटी की ओर से कश्मीरी शायरा पर ‘हब्बा खातून’ नाटक का मंचन होगा और कलाकारों को सम्मानित किया जायेगा।

उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने पुस्तक के लिए रचनाकार को बधाई देते हुए कहा कि भाषायी सौहार्द की गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने वाले बुद्धिजीवी लेखक, कवि, विचारक होने के साथ एक अच्छे साहित्यिक संगठनकर्ता हैं और उन्होंने हिन्दी और उर्दू की गरिमा को बढ़ाने वाले आयोजनों से साहित्य परम्पराओं को पुष्ट किया है। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. रुदौलवी ने कहा कि अतहर नबी का उपन्यास ’घरौंदा’ एक सच्चा, सभ्य और भावनात्मक उपन्यास है जो हमें कहानी कहने की परंपरा से जोड़ता है। अपने तजुर्बों के बल पर उनकी प्रशासनिक क्षमता उन्हें अंजुमन इस्लाह उल मुस्लिमीन, इस्लामिया व मुमताज़ कालेज के नेतृत्व तक लायी है। उपन्यास में उन्होंने जिंदगी के अनुभवों को कई चरित्रों के माध्यम से साफगोई से उकेरा है। अभिनेता रजा मुराद ने श्री नबी को अपना करीबी दोस्त बताते हुए कहा कि पेशे से वकील होने के साथ उनकी अदबी दिलचस्पी ने उन्हें हिन्दी और उर्दू की साहित्यिक दुनिया में अलग पहचान दिलायी है। ये दिलचस्पी अब एक कामयाब किस्सागोई भरे सामाजिक उपन्यास के रूप में अब सबके सामने है। वीडियो संदेश में पूर्व मुख्य सचिव योगेंद्र नारायण, दुबई के डा.जुबैर, मुंबई के सलीम आरिफ आदि ने विचार दिए। गीतकार समीर अनजान ने कहा कि सादगी भरी तबीयत वाले अतहर हमेशा साहित्य और कला से जुड़ी हस्तियों को सम्मानित करते आ रहे हैं। विमोचित नावेल धरौंदा अब उनके अदबी व्यक्तित्व को सम्मानित करने वाली सफल कृति साबित होगी।

इससे पहले अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर हसन काजमी की निजामत में चले 50 साला कार्यक्रम में कमेटी की प्रमुख गतिविधियों की जानकारी रखते हुए उपन्यास के लेखक अतहर नबी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए भावुक अंदाज में कहा कि हमारी संस्था के 50 साल के सफर की चर्चा होना और मेरी छोटी सी कोशिश ’घरौंदा’ उपन्यास का गणमान्य साहित्यिक, सामाजिक, बौद्धिक व राजनीतिक हस्तियों के बीच जारी होना मेरे लिए बेहद खुशी का मौका है। घरौंदा उपन्यास मेरे जीवन और मेरे आस-पास के माहौल से उपजा है। अब पाठकों को तय करना है कि मैं कितना सफल रहा हूँ।

प्रदेश के पूर्व कार्यवाहक मुख्यमंत्री डॉ.अम्मार रिज़वी का कहना था कि वकील अतहर उर्दू दुनिया के अंतरराष्ट्रीय पटल पर मोहसिने उर्दू’ के रूप में जाने जाते हैं। कमलेश्वर ने कहा कि उर्दू को अगर भाषाओं का ताजमहल भी कहा जाये तो हैं तो वास्तव में अतहर नबी उसकी एक प्रकाशमान मीनार हैं। उनका नाम राष्ट्रीय एकता, सहिष्णुता, भाईचारे और देशभक्ति का संदेश फैलाने में हिस्सेदार है। उन्होंने उर्दू व अच्छे साहित्य को प्रोत्साहन देने का काम समर्पित भावना से किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो.इर्तिज़ा करीम ने कहा कि अतहर नबी साहब अपार प्रतिभा के धनी हैं और अपने आप में एक संपूर्ण संस्था है। उन्होंने साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को इस तरह मज़बूती से प्रोत्साहित किया कि वे स्वयं में एक मिसाल है। हिंदी-उर्दू साहित्य अवार्ड के तत्वावधान में अतहर नबी द्वारा संयोजित कार्यक्रम, सेमिनार और मुशायरों की धमक विदेशों तक गूंजती रही है। अतहर नबी में भी उतनी ही कशिश है। आयोजनों में वे जिन प्रबुद्ध और महान कलाकारों, लेखकों, कवियों और बुद्धिजीवियों को एक साथ लाये उनमें इफ़्तिख़ार आरिफ़, अशफ़ाक़ हुसैन, जावेद दानिश, आग़ा सोहैल, आरिफ नक़वी, अहमद फ़राज़, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, फहमीदा रियाज़ जैसी अनेक विदेशों की हस्तियां भी शामिल रही हैं तो संगीतकार नौशाद और अभिनेता दिलीपकुमार जैसी हस्तियां भी उनके बुलावे पर यहां खिंची चली आई हैं। अपने संदेश में जामिया मिलिया के प्रो.काजी उबैदुर्रहमान हाशमी ने उन्हें प्रतिष्ठित परिवार का सदस्य और हिंदी-उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी की रूहे रवां बताते हुए कहा कि वे आधी सदी से वे पूरी क्षमता के साथ कार्य कर रहे हैं। मैं पिछले तीन दशकों से उनके साहित्यिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनकर स्वयं को सम्मानित महसूस करता आ रहा हूं। समारोह में अलीगढ़ के प्रो.सगीर अफ़राहीम सहित अन्य वक्ताओं ने भी विचार रखे। वक्ताओं का स्वागत सैयद बिलाल नूरानी, जियाउल्लाह सिद्दीकी, डॉ. यासिर जमाल, सोहेल काकोरवी, रफी अहमद आदि ने गुलदस्ता व शॉल भेंट कर किया।

दूसरे चरण में उस्ताद मासूम सैयद खान, आगरा घराने के पंडित एससी.आर भट्ट, राजा उपसानी व सुनीति गांगुली की शिष्या और प्रसिद्ध बालीवुड सूफी गायिका पूजा गायतोण्डे ने अपनी सुरीली जादुई आवाज़ से दर्शकों का दिल जीत लिया। उन्होंने श्रोताओं की फरमाइश पर जो ग़ज़लें व गीत प्रस्तुत किये उनमें ’आज जाने की ज़िद न करो’, ’ये जो हल्का हल्का सुरूर है’, ’मन कुंतो मौला’, पंजिश दिल को’, ’न जानूं मैं कौन’, ’वही तो है जो निज़ामे हस्ती’, ’तुम अपना रंजो ग़म अपनी परेशानी’ और मस्त कलंदर आदि कलाम मुख्य रूप से शामिल रहे।