तौक़ीर सिद्दीक़ी
चुनाव बाद तीनों विवादित कृषि कानूनों की वापसी होगी, ये मैं नहीं बल्कि भाजपा के नेता कह रहे हैं , इनमें पार्टी के सांसद भी शामिल हैं मंत्री भी और यहाँ तक कि राज्यपाल भी हैं. कानून वापसी की घोषणा पर अखिलेश यादव ने साफ़ तौर पर कहा था कि साफ नहीं है इनका दिल, चुनाव बाद फिर लाएंगे बिल। प्रियंका गाँधी ने भी यही बात कही थी कि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि चुनाव बाद यह तीनों कृषि कानून वापस नहीं लाये जायेंगे , और अब भाजपा की तरफ से जब खुले तौर से इस तरह के बयान आ रहे हैं कि चुनाव बाद कानूनों की वापसी होगी तो यह बात बिलकुल साफ़ हो जाती है काले कृषि कानून वापसी का फैसला किसान हित न होकर विशुद्ध राजनीतिक हित साधना है.
राजस्थान के गवर्नर कलराज मिश्र सार्वजनिक तौर पर कह रहे हैं कि ज़रुरत पड़ी तो यह कानून फिर वापस लाये जायेंगे, हालाँकि वह एक संवैधानिक पद पर हैं. भाजपा रवि किशन मीडिया को इंटरव्यू देकर कहते हैं कि कानून किसानों की भलाई के लिए थे, आज नहीं तो कल वापस आएंगे। यह बात भाजपा सांसद साक्षी महाराज भी कहते हैं कि कानून तो बनते बिगड़ते रहते हैं, आज हटा है तो कल फिर लागू हो जायेगा कानून। बिहार के कृषि मंत्री भी भविष्यवाणी करते है कि इन कानूनों की फिर वापसी होगी
दरअसल भाजपा लोगों को यह समझा रही है प्रधानमंत्री ने मुट्ठी भर किसानों के लिए बहुत बड़ा त्याग और तपस्या की है. और हालात को काबू में करने के लिए इतना बड़ा फैसला लिया गया है. शायद यह हतोत्साहित हो रहे भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश भरने की एक कोशिश है जो प्रधानमंत्री के इस फैसले से बहुत मायूस हैं. पिछले एक साल से वह जी जान से लोगों को यह बात समझने की कोशिश में लगे थे कि यह तीनों कृषि कानून किसानों की भलाई के लिए हैं और भाजपा किसानों की सबसे हितैषी पार्टी है लेकिन अचानक मोदी जी के बैकफुट पर आने से उनकी समझ में नहीं आ रहा कि अब वह लोगों को क्या समझाएं।
टीवी एंकरों की भी यही पीड़ा है. टाइम्स नाउ के एक एंकर ने तो बाकायदा सोशल मीडिया पर आकर प्रधानमंत्री की घोषणा पर सवाल उठा दिया, एंकर साहब का कहना था कि कानून वापसी को लेकर यह क्या वजह हुई कि आंदोलनकारी किसानों को कृषि कानूनों के फायदे समझा नहीं पाए, कल को यह भी कहा जा सकता है कि आर्टिकल 370 और CAA के बारे में लोगों समझा नहीं पाय इसलिए क़दम वापस खाँच रहे हैं. ऐसी ही पीड़ा उन सभी टीवी आंकड़ों की है जो जी जान से इन कानूनों के फायदे समझने में जुटे हुए थे बल्कि कई बार तो पैनलिस्ट से झगड़ा भी करने लगते थे.
फिलहाल तो मोदी गवर्नमेंट इन विवादित कानूनों को वापस लेने की जल्दबाज़ी में है, शायद एक दो दिन में ही कैबिनेट बुलाकर प्रधानमंत्री की घोषणा पर आधिकारिक रूप से मोहर भी लगा दी जाय. उधर किसान भी दूध के जले हुए हैं, इसलिए छाछ को फूंक फूंककर पीना चाहते हैं, किसानों प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद भी अपने आंदोलन को जारी रखने का एलान कर दिया है, अब वह MSP पर भी सरकार से आर पार की लड़ाई के मूड में दिखाई दे रहे हैं.
एक बात तो तय है कि किसान अच्छी तरह से जनता है कि प्रधानमंत्री की इस घोषणा के पीछे कहीं न कहीं कुछ खिचड़ी पाक ज़रूर रही है. यह सबकुछ वैसा नहीं है जैसा दिख रहा है और भाजपा नेताओं के बयानों से भी इसकी झलक साफ़ दिख रही है. सोशल मीडिया पर तो यह भी ट्रेंड चल रहा है कि चुनाव के बाद इससे सख्त कृषि कानून लाये जायेंगे। इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली के यह बिलकुल विपरीत है. लोगों को लगता है कि पीएम मोदी इस वक़्त घायल शेर की तरह हैं जो अपने पर हमला करने वालों को कभी नहीं छोड़ता। इसलिए इस बात में पूरा दम नज़र आ रहा कि बाकी राज्यों की छोड़िये मगर यूपी में अगर भाजपा की सत्ता में वापसी होती है तो यह कानून नई शक्ल में फिर वापस आएंगे।
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