नई दिल्ली: आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन में काफी कुछ ढील दिये जाने के बावजूद कल-कारखानों में गतिविधियां उनकी क्षमता के अनुरूप शुरू नहीं हो पाई हैं. ऐसे में मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं बढ़ने से रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों के दाम बढ़ सकते हैं और खुदरा महंगाई 7 फीसदी से भी ऊपर जा सकती है. जून, 2020 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा महंगाई 6.09 फीसदी रही. हालांकि, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने साफ किया है कि ये आंकड़े बाजार से जुटाए गए सीमित आंकड़ों पर आधारित हैं.

कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन की वजह से व्यापक स्तर पर आंकड़े नहीं जुटाये जा जा सके. वहीं थोक महंगाई जून महीने में शून्य से 1.81 फीसदी नीचे रही लेकिन यह इससे एक महीने पहले की तुलना में तेजी से उछली है. मई में यह शून्य से 3.21 फीसदी नीचे थी.

बेंगलुरु के डॉ. बीआर अंबेडकर स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के कुलपति, प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति ने महंगाई के परिदृश्य के बारे में पूछे जाने पर कहा कि उन्हें लगता है, खुदरा मुहंगाई 7 से 7.5 फीसदी तक जा सकती है. हाल में सरकार ने जितने भी वित्तीय समर्थन के उपाय किये हैं, वे सभी मांग बढ़ाने वाले हैं. इन उपायों के अमल में आने से मांग बढ़ेगी. इस मांग को पूरा करने के लिए यदि उसके अनुरूप आपूर्ति नहीं बढ़ी तो महंगाई बढ़ सकती है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यदि कच्चे तेल के दाम बढ़े तो महंगाई का आंकड़ा 8 फीसदी तक भी जा सकता है. फल, सब्जी, ईंधन की लागत बढ़ सकती है.

इंस्टिट्यूट फॉर एडवांस्ड स्टडीज इन कम्पलेक्स चॉइसेज (आईएएससीसी) के प्रोफेसर और सह-संस्थापक अनिल कुमार सूद ने भी कुछ इसी तरह के विचार व्यक्त किए. सूद ने कहा कि महंगाई का आंकड़ा 7 फीसदी के आसपास रह सकता है. इसमें कमी की संभावनाएं कम ही हैं. कच्चे तेल का दाम बढ़ने से पेट्रोल, डीजल के दाम हाल में काफी बढ़े हैं. दाल, खाद्य तेल का आयात भी बढ़ रहा है. डॉलर के मुकाबले रुपये के गिरने से आयात महंगा होता है. दूरसंचार और परिवहन की लागत बढ़ी है. आपूर्ति श्रृंखला अभी पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटी है. कोरोना वायरस का प्रभाव बना हुआ है. हालांकि, लोग जागरूक हो रहे हैं, फिर भी इस पर अभी ध्यान देने की जरूरत है.

वहीं, पीएचडी वाणिज्य एवं उद्योग मंडल के अर्थशास्त्री एसपी शर्मा ने भी कहा कि कल-कारखानों में फिलहाल क्षमता इस्तेमाल 50 से 55 फीसदी के बीच ही हो रहा है. आपूर्ति श्रृंखला पूरी तरह से सामान्य नहीं है. हालांकि, कृषि क्षेत्र यानी खाद्यान्न के मामले में उत्पादन की समस्या नहीं होनी चाहिए. रबी में फसल अच्छी रही है खरीफ में भी अच्छी रहने की संभावना है. लेकिन कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण और कारखानों में पूरी क्षमता से काम नहीं हो पाने की स्थिति में आपूर्ति प्रभावित हो सकती है.

कच्चे तेल के दाम अगर 50 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचते हैं तो उसका भी लागत पर असर पड़ सकता है. आयात महंगा होगा, माल भाड़ा बढ़ सकता है. प्रवासी मजदूरों का भी मुद्दा है. कुशल मजदूरों की कमी से गतिविधियां पूरी क्षमता से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष के दौरान 5 फीसदी तक कमी आने का अनुमान लगाया जा रहा है.

घरेलू रेटिंग एजेंसी इक्रा ने तो चालू वित्त वर्ष के दौरान देश के जीडीपी में 9.5 फीसदी की बड़ी गिरावट आने का अनुमान व्यक्त किया है. उसका कहना है कि कोरोना वायरस का प्रभाव बढ़ने के साथ ही कई राज्यों में लॉकडाउन बढ़ाया जा रहा है. इससे आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. पहली तिमाही में जीडीपी में 25 फीसदी की बड़ी गिरावट आने का अनुमान है. दूसरी ओर, तीसरी तिमाही में भी क्रमश: 12 फीसदी और ढाई फीसदी तक गिरावट आने का अनुमान है, यानी गतिविधियां कमजोर रहेंगी. यही वजह है कि अब तक महंगाई दर जो कि छह प्रतिशत के आसपास रही है, आने वाले दिनों में बढ़ सकती है.