इलाहाबाद: जेईई-नीट एवं यूनिवर्सिटी-कालेज सहित सभी परीक्षाओं को स्थगित करने की छात्रों की मांग का युवा मंच ने समर्थन किया है। युवा मंच संयोजक राजेश सचान ने कहा कि हालात सामान्य होने अथवा वैक्सीन आने के बाद इन परीक्षाओं को आयोजित कराया जाना चाहिए, इसके अलावा यूनिवर्सिटी-कालेज में सभी छात्रों को बिना परीक्षा किया जाये प्रमोट करने की मांग भी उचित है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा छात्रों के हितों के नाम पर इन परीक्षाओं के आयोजन को उचित ठहराने का तर्क बेबुनियाद व आधारहीन है।


अभी देश में संक्रमण के हालात बदतर ही हो रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ तक भारत में और ज्यादा हालात खराब होने की चेतावनी दे रहे हैं। अपेक्षाकृत कम जांच के बावजूद 34 लाख के ऊपर संक्रमितों की संख्या पहुंच चुकी है और भारत दुनिया में संक्रमित श्रेणी में तीसरे नम्बर पर आ गया है. अभी यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि हम संक्रमण के मामले में पीक पर पहुंचे हैं कि अभी पीक आना बाकी है। भले ही सरकार यह तर्क दे कि इन परीक्षाओं को आयोजित कराने से संक्रमण का कोई खतरा नहीं है और पर्याप्त तैयारियां हैं, यह जमीनी हकीकत के एकदम विपरीत है। उत्तर प्रदेश की बीएड प्रवेश परीक्षा में सोशल डिस्टेंशिंग की कैसे धज्जियां उड़ी इसे देखा जा चुका है। बीएड व बीईओ परीक्षाओं के आयोजन भी उत्तर प्रदेश में तेजी से संक्रमण में ईजाफा होने की एक प्रमुख वजह होने से इंकार नहीं किया जा सकता है।


जेईई-नीट परीक्षाओं में 24 लाख से छात्र-छात्राओं का सैकड़ों-हजारों किमी दूर परीक्षा केंद्रों में पहुंचना और ठहरने का इंतजाम आदि में भारी कठिनाइयों का सामना करना होगा। बिहार, तेलंगाना जैसे राज्य भीषण बाढ़ का सामना कर रहे हैं. बड़े पैमाने पर छात्रों को निजी वाहनों का इस्तेमाल के लिए बाध्य होना पड़ेगा जोकि बेहद खर्चीला होगा।


दरअसल सरकार की प्रमुख चिंता शिक्षण संस्थाओं में छात्रों के दाखिला सुनिश्चित कराने में है। दरअसल अगर सत्र और विलंब हुआ तो मौजूदा सत्र के बजाय नये सत्र में प्रवेश लेना छात्रों की पसंद होगी जिससे निजी शिक्षण संस्थाओं में जहां बेइंतहा फीस है वहां बड़े पैमाने पर सीटें खाली रह सकती हैं। छात्रों का देशव्यापी विरोध हो रहा है, 6 राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पेटीशन में गई हैं, क ई राज्यों बाढ़ग्रस्त हैं, ऐसे में सरकार के पास इन परीक्षाओं के आयोजन का कोई वाजिब तर्क नहीं है। दरअसल कारपोरेट पूंजी और शिक्षा व कोचिंग माफियाओं द्वारा संचालित निजी शिक्षण संस्थाओं के हितों के मद्देनजर ही लाखों छात्रों की जान जोखिम में डालकर इन परीक्षाओं के आयोजन के लिए केंद्र सरकार आमादा है।


लाकडाऊन घोषित करने से लेकर अनलॉक दौर में सरकार द्वारा लगातार चाहें मजदूरों बेसहारा छोड़ देने का मामला हो अथवा स्वास्थ्य सेवाओं की लचर इंतजाम हो, भयावह बेकारी का सवाल हो, सरकार का रवैया बेहद गैरजिम्मेदाराना और जनविरोधी रहा है। संक्रमण के तेजी से फैलने की यह प्रमुख वजहें रही हैं। ठोस काम के बजाय प्रोपैगेंडा ज्यादा हो रहा है। जिस तरह लाकडाऊन के बाद बिना किसी इंतजाम के मजदूरों के पलायन के बाद संक्रमण देश भर में तेजी से फैल गया, उसी तरह इन परीक्षाओं के आयोजन की जिद से देश में संक्रमण की नई लहर से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए जब अभी कक्षाओं के संचालन की संभावनाएं नहीं है, न्यायालय वर्चुअल संचालित हैं, यातायात सीमित है और तमाम प्रतिबंध लगे हुए हैं, आंशिक लाकडाऊन चल रहा है। ऐसे में परीक्षाओं का आयोजन पूरी तरह से अनुचित है।