मो. आरिफ़ नगरामी

हमने हमारे बचपन मेें बहुंत सी कहानियां और बहुत से किस्से ओर सी कहावतें सुनीं थीं। कई अल्लाह वालों से मलाकात हुयी थी। जिन्हेांने दुनिया में रहने के गुर के साथ साथ यह भी बताया कि बेटा अल्लाह के सिवा किसी से भी न डरना क्योंकि अल्लाह तआला की मरजी के बेगैर न तो कोई फायदा पहुंचा सकता है और न ही ऊपर वाले की मरजी के बेगैर तुमको नुकसान पहुंचा सकता है। बहुत से सफर किये जिनमें सफरे हज और शहरे रसूल का सफर हमारी जिन्दिगी का कीमती असासा है। मुझको याद है कि हम फैमिली के साथ जद्दा से अहराम बांध कर मक्का मुकर्रमा, फिर मिना, फिर अरफात के मैदान और मुजदल्फा में लब बैक अल्लाहुम्मा लबबैक का नारा बलंद करते हुये अल्लाह तआला की किब्रियाई बयान करते हुये अल्लाह की खुशनवूदी के लिये सफरे हज पर गये थे। हम को मदीना पाक का वह सफर भी याद है जो हमारी जिन्दिगी का सबसे अहेम और यादगार सफर था। मदीनतुर्रसूल हमारे रसूल सल0 अल्लाह तआला के महबूब का पाक और नूरानी शहर है। मदीना तैयबा वह अजीम ओर पाक शहर है जिसका नाम सुन कर और जिसका ख्याल आते ही दुनिया के हर मुसलमान की आखें अश्कबार हो जाती है। जद्दा से शहरे रसूल का फासला 402 किमी0 है। बस के जरिये जब इस मुबारक सफर का आगाज हुआ तो दिल की एक अजीब कैफियर जिसको तहरीर में लाना मुशकिल ही नहीं नामुमकिन है। रास्ते भर आखों से आंसू अकीदत और मोहोब्बत बन कर निकलते रहे। लबों पर दुरूद शरीफ था। रास्ते भर न खाने की फिक्र थी और न पीने का होश था। बस एक ही तमन्ना थी जल्द अज जल्द अपने महबूब की चैखट पर पहुंच जायें। जब हमारी बस मदीना मुनव्वरा की सरहद में दाखिल हुयी तो अचानक दबी हुयी सिसकिया चीखों में बदल गयीं। मालूम नहीं कौन सा जज्बा था। बस के मुसाफिर हैरान थे कि इस आशिके रसूल को क्या हो गया है? और फिर जब उस इन्सान के रौजा पर पहुंचने का शर्फ हासिल हुआ जिसके लिये अल्लाह तआला का फरमान है कि ऐ लोगों सलाम और दुरूद का नजराना भेजो। मोहम्मदे अरबी सल0 पर जिस तरह हम और फरिश्ते भेजते है तो न पूछिये दिल की क्या कैफियत होती है। रौजये रसूल पर ना मुंह से अल्फाज निकल रहे थे, ना कुछ कहा जा रहा था बल्कि अश्कों की न रूकने वाली झडी लगी हुयी थीं। यकीन ही नहंी हो रहा था कि हम रौजये रसूल पर हाजिरी की सआदत हासिल कर रहे है। खैर कारईन हजरात बचपन में जो कहावतें सुनी थी उनमें एक कहावत यह भी थी कि जंग और मोहोब्बत में सब कुछ जायेज है। जब हमने यह होश सम्भाला तो ऐसा महसूस ही नहीं बल्कि यकीन हो गया कि हिन्दुस्तानी सियासत में सब कुछ जायेज है। एक जमाना था कि हिन्दुस्तानी सियासतदां नजरियात की बुनियाद पर सियासत किया करते थे। जिस पार्टी में भी थे उसके नजरियात को कुबूल करके ही मुल्क की सियासत का हिस्सा बनते थे। चॅूकि वह जाती और खानदानी मफाद से बलंद होकर सियासत करते थे इसलिये न तो उनकी नजर बदलती थी और न ही नजरिया। मगर आज ऐसा दौर है कि रात में कोई किसी पार्टी में होता है और सुबह को दूसरी पार्टी में । रात में जिसकी कसीदाख्वानी करता है सुबह को उसी की बुराई में लगा होता है। ‘‘आया राम गया राम।‘‘ हमारे सियासी सिस्टम की एक अटूट रिवायत बन गयी है। वाजे रहे कि आया राम गया राम की इस्तेलाह मुल्क की सियासत में उस वक्त वजूद में आयी। जब रियासत हरियाणा के मेम्बर असेम्बली गया लाल ने 1967 में होने वाली रियासती असेम्बली के इन्तेखाबात के बाद 15 दिनों के अन्दर तीन बार पार्टी तब्दील की। उसने आखिर में एक पार्टी ज्वाइन करने के महज 9 घंटे के बाद दूसरी पार्टी जो ज्वाईन कर ली। और उस वक्त से अक्सर इसी तरह का मुशाहिदा होता रहा । और जिससे इस तरह का तअस्सुर पैदा हुआ कि हिन्दुस्तानी सियासतदानों में वााकई कोई वसूल नहीं है। और फ्रेन्च सियासतदां तेलरान की तरह सिर्फ उधर देखते है जिस तरफ सियासी हवा चल रही हो। और वह इसी के मुताबिक अपनी सियासी वफादारी को तब्दील करते है। लेकिन अब बात तो आया राम गया राम से बढ कर बिका नेता टूटा नेता तक पहुंच गयी है। अब जो मोटी गड्डी दिखाये या कुर्सी के चार पाये, बस वही मन को भाये। पैसे या कुर्सी की लालच में अपनी वफादारी तब्दील करने की ताजातरीन मिसाल कांग्रेस के कदीम लीडर जितिन प्रसाद ने पेश की है। जो 2001 से कांग्र्रेस पार्टी के सरगर्म रूक्न थे और 2009 के अन्तेखाबात में कांगेस के टिकट पर मेम्बर पार्लियमेंट मुन्तखब हुये । वह कांगेस की मरकजी सरकार मेें वजीर भी रहे। लेकिन 2014 और 2019 के इस पार्लियमानी एलेक्शन में कांग्रेस की जबर्दस्त शिकश्त हुई कांग्रेस की शिकस्त के बाद उन्होने ज्योति राजे सिधिंया के नक्शे कदम पर चलते हुये जून 2021 मेें बीजेपी में शूमूलियत अख्तियार कर ली। जो मरकज मेें 2014 से एक्तेदार में है।


दूसरी मिसाल मुकुल राय की दी जा सकती है जिन्होने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्र्रेस मेें उस वक्त शमूलियत अख्तियार की जब पार्टी की तशकील 1998 मेें मगरिबी बंगाल में हुयी थी। और 2014 के पार्लियमानी इन्तेखाब में बीजेपी की फतेह के बाद मुकुल राय ने टी0एम0सी0 को छोड दिया। और 2017 में बीजेपी में शुमूलियत अख्तियार करली। बाद में मुकुल राय को बीजेपी का कौमी नायब सदर बना दिया गया। लेकिन जब टीएमसी मगरिबी बंगाल के रियासती एसेम्बली इन्तेखाबात 2021 में पेशनगोईयों के खिलाफ भारी अकसरियत से जीत गयीं तो उन्होंने दोबारा टीएमसी में वापसी कर ली है। जिसका खैरमकदम खुद टीएमसी की सरबराह ओर मगरिबी बंगाल की वजीरे आला ममता बनर्जी ने किया। इस तरह के वाकेआत से हिन्दुस्तानी सियासत की पूरी तारीख भरी हुयी है। तारीख के सफात पर यह बात भी नक्श है कि कशमीर में बीजेपी ने महबूबा मुफती की इस पार्टी से मिल कर हुकूमत को तशकील दिया। जिसको माजी में बीजेपी शक की निगह से देखा करती थी। ओर उसको दहशतगर्द तन्जीम के नाम से पुकारती थी। महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना में हमेशा से छत्तीस का आंकडा रहा मगर जब एक्तेदार पर कब्जा करने का वक्त आया तो शिवसेना ने अपने तीन साला पुराने हरीफ जमाअत बीजेपी का ख्याल न करते हुये हमेशा कांग्रेस को बुरा भला कहने वाली शिवसेना ने कांग्रेस के साथ मिल कर महाराष्ट्र में हुकूमत बना ली। उत्तर प्रदेश की साबिक वजीरे आला मायावती को जब जब एक्तेदार में आने का मौका मिला तो उन्हेांने तमाम वसूल और जाब्तों को छोड कर बीजेपी से हाथ मिलाकर उत्तर प्रदेश की वजीरे आला बन गयी। इसके लिये उन्होंने कभी लाल जी टण्डन के घर पहुंच कर राखी बांध कर उनको भाई बनाना पडा मगर एक्तेदार हासिल करने के लिये यह बहुत मामूली काम था जो मायावती ने किया।

मौजूदा आयाराम गया राम सियासत की बिल्कुल ताजा मिसाल लोक जनशक्ति पार्टी में बगावत की हैं जहां आंजेहानी राम बिलास पासवान की मौेत के महज 8 महीनों के बाद उनकी लोक जनशक्ति पार्टी में तकसीम हो गयी। क्या खबर थी कि राम विलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पासवान राम बिलास पासवान के जानशीन चिराग पासवान को दीवार से लगा देंगेें। मगर यह हो गया है और यह सब मौजूदा दौर की गंदी और लालची सियासत का नतीजा है। वक्ती लालच की एक्तेदार की, कुर्सी की लालच से मुल्क तबाही की तरफ जा रहा है। बहुत ही अहेम है कि हमारे मुल्क के लीडरान इस तरफ ध्यान दें ओर सियासत करने का कुछ वसूल बनायें। हमारे नयी नस्ल के लिये जम्हूरियत के सुनहरे वसूलों ओर जाब्तों को बेहतर बनाने की कोशिश करना चाहिये। ताकि हमारा मुल्क जब नयी नस्ल के हाथों में आये तो वह इस मुल्क में जम्हूरियत को फरोग देने का काम करें।