वैसे तो ग़दीर की बात साल भर होती रहती है लेकिन18 ज़िल्हज की तारीख आते ही “ईद-ए-ग़दीर” की चर्चा कुछ ज्यादा होने लगती है । क्या है ग़दीर की हकीक़त ?

इस दिन रसूल (सल) अल्लाह का पैग़ाम लोगो तक पहुंचाने में जल्दी करते नज़र आए। अल्लाह का एक ऐसा हुक्म जिसे आवाम तक बिना किसी देरी के पहुंचाना था, और ऐसा करना दीन के मुकम्मल होने के लिए जरूरी था ।

रसूल (सल) ने वैसा ही किया।

गदीर में अल्लाह के जिस हुक्म को रसूल (सल) ने लोगों तक पहुंचाया उस पर एक छोटी सी जमात ने और मुसलमानों की 15 फीसदी आबादी आज भी अमल करती है । इस 15 फीसदी के बाद 5 फीसदी दूसरे मुसलमानों को गदीर के बारे में जानकारी है लेकिन ये 5 फीसदी लोग बाकी 80 फीसदी आबादी तक गदीर में अल्लाह और रसूल (सल) के हुक्म को लोगों तक पहुंचने से आज भी रोकते हैं ।

अपनी ज़िन्दगी में और ग़दीर में एलान-ए-विलायत के पहले रसूल (स) ने कई बार इमाम अली (अ) की अपने वली और जानशीन के तौर पर पहचान कराई । इस पहचान कराने की बड़ी वजह यह थी की लोगो को हक की पहचान हो सके और उनके रेहलत के बाद लोग इस हक को छोड़ कर बातिल को न अपना ले ।
लेकिन रसूल (सल) के बाद मुसलमानों की अक्सरीयत ने बातिल को ही अपनाया । और इसी वजह से सकीफा हुआ और फिर करबला हुई ।

ग़दीर में रसूल ए खुदा (सल) ने क्या ऐलान किया था और किस के हुक्म पर किया था?

अपने आखरी हज से वापस आते वक़्त रसूल ए खुदा (सल) पर एक वही नाजिल हुई :

يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ ۖ وَإِن لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُ ۚ وَاللَّـهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاسِ (5:67)

ऐ रसूल! जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल किया गया है पहुंचा दो और अगर तुमने ऐसा न किया तो (समझ लो कि) तुमने उसका कोई पैग़ाम ही नहीं पहुंचाया और (तुम डरो नहीं) ख़ुदा तुमको लोगों के शर से महफ़ूज़ रखेगा (5:67)

यानी उस वक्त ऐसे शर पसंद थे जिनको अली की मौलाईयत से इंकार था ।

यह आयत ग़दीर-ए-खुम नामी मुकाम पर नाजिल हुई और रसूल ए खुदा (सल) ने अपने सभी सहाबियों को उस जगह जमा कर के खुदा का दिया हुआ पैग़ाम उन तक पहुचाया कि :

“ जिस जिस का मैं मौला, उसके अली (अ) मौला ” । और कहा की ये पैग़ाम एक अमानत है और हर एक पर ज़िम्मेदारी है की ये पैग़ाम ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुंचाए।

एलान-ए-विलायत के साथ साथ तबलीग-ए-विलायत ग़दीर का सबसे बड़ा फ़रीज़ा है जिसका हुक्म अल्लाह ने अपने रसूल (सल) के ज़रिये मुसलमानों को दिया है ।

विलायत एक इलाही मनसब है जो अल्लाह की तरफ से अपने चुनिन्दा बन्दों को दिया जाता है, जिसकी बेना पर पैग़म्बर और आइम्मा (अ) अल्लाह के हुक्म और शरीअत को लागू करते है । ग़दीर के रोज़ रसूल ए खुदा (सल) ने इसी ज़िम्मेदारी को इमाम अली (अ) को सौपा था ।

पैग़ाम-ए-ग़दीर को दूसरों तक पहुचाने की जिम्मेदारी उन सब की है तो अली इब्न अबीतालिब (अ) को अपना मौला, रसूल (सल) का जानशीन और खलीफतहु बिला फस्ल मानते हैं ।

बेशक ईद-ए-ग़दीर हमारे लिए सभी ईदों में सबसे बड़ी ईद है । इस रोज़ दीन कामिल हुआ और अल्लाह ने अपनी नेमत हम पर तमाम कर दी थीं । अफसोस तो इस बात का है कि 85 फीसदी मुसलमान इस नेमत से फायदा नहीं उठा सके । और इसी वजह से आज वो दुनियां भर में ज़लील व रुसवा हो रहे हैं।


आइये हम अहद करे की ग़दीर के पैग़ाम को सही तरीके से समझेंगे और इसे दूसरों तक फैलाएगे ।