मोहम्मद आरिफ नगरामी

अल्लाह का बड़ा एहसान है कि उसने हमें इंसान बनाया और फिर हमें ईमान अता किया। इंसान बनाकर परदिगार ने हमें दीगर मखलूकात से मुमताज किया और अहम व आला मकाम से नवाजा। अल्लाह तआला ने इस दुनिया में इस कदर मखलूकात को पैदा किया है कि उन्हें शुमार करना मुश्किल है। आज जब कि साइंस हैरतअंगेज तरक्की कर ली है और आज के लोगों ने रिसर्च व तहकीक के मैदान को बड़ी हद तक बढा लिया है मगर इसके बावजूद अभी भी इंसान की तहकीक व रिसर्च अल्लाह की मखलूकात की गिनती करने से कासिर है यानी इंसान को अल्लाह की मखलूकात की सही तादाद के बारे में इल्म नहीं। इतनी ज्यादा मखलूकात में जिस मखलूक को सबसे आला मकाम दिया गया है उसकी अजमत का क्या ठिकाना हो सकता है इस तौर पर इंसान की अहमियत व अजमत का अंदाजा लगाया जा सकता है। अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया- और जब तेरे रब ने फरिश्तों से कहा कि मैं जमीन में एक नायाब बनाने वाला हूं तो फरिश्ते कहने लगे क्या आप जमीन में ऐसी मखलूक को पैदा करने वाले हैं जो आपस में खूंरेजी करे और हम तो आप की तकदीस बयान करते हैं, अल्लाह तआला ने फरमाया -यकीनन मैं ज्यादा जानने वाला हूं जो तुम नहीं जानते।(सूरा बकरा)

कुरआने करीम की इन आयतों से इंसान के आला तरीन मकाम का पता चलता है। अल्लाह तआला ने इंसान को इतना अजीम मकाम देकर यूं ही नहीं छोड़ दिया बल्कि उसके लिए एक मकसद भी मुतअय्यन कर दिया कि इंसान की तखलीक बेवजह नहीं बल्कि इसके पीछे एक अजीम मकसद कारफरमा है। उस अमीम मकसद के बारे में अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया-मैं ने जिन्नात व इंसान को अपनी इबादत के लिए पैदा किया है। (अल कुरआन)

इबादत को इंसान का मकसद मुतअय्यन करके अल्लाह तआला ने इबादत का पूरा एक निजाम पेश किया ताकि इंसान अपने मकसद की तरफ मुकम्मल तौर पर आगे बढे और वह अपने माबूदे हकीकी की पूरे तौर से इबादत करे। दिन भर में पांच वक्त की नमाजें, रमजान के रोजे, साल भर में साहबे निसाब होने पर जकात की अदाएगी और इस्तताअत की सूरत में जिंदगी में एक बार हजे बैतुल्लाह की अदाएगी फर्ज की गई। गौर करने का मकाम है कि इन चारों अहम इबादात में इबादत के तमाम पहलुओं का अहाता कर लिया।

दिन भर में पांच वक्त की नमाजों से जिस्मानी इबादत का मकसद हासिल हुआ, पूरे रमजान के रोजों से रूहानी मकसद हासिल हुआ, जकात की अदाएगी से माली एतबार से इबादत का फरीजा अंजाम दिया गया और हजे बैतुल्लाह से जिस्मानी, रूहानी, और माली हर तरह की एक साथ इबादत का फरीजा अंजाम पाया। गोया कि इबादत के लिहाज से इंसानी जिंदगी का अहाता कर लिया गया ताकि इंसान हर मुमकिन अपने मकसद को हासिल करने वाला रहे और वह किसी भी वक्त या किसी भी एतबार से अपने मकसदे हकीकी को न भूले।

इबादत की अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस्लाम के पांच बुनियादी अरकान मंें से पहले रूक्न का ताल्लुक अकीदा-ए- तौहीद व रिसालत से है बाकी चार अरकान इबादत से मुताल्लिक हैं। इन अरकान को इस्लाम के बुनियादी सुतून कहा गया है यानी अगर कोई शख्स उनमें से किसी से भी गाफिल होता है और उसको तर्क करता है तो गोया वह इस्लाम के बुनियादी सुतून को गिराता है।

जकात की फर्जियत कुरआने करीम से साबित है। कुरआन में जकात की अदाएगी के बारे में कई मकामात पर ताकीद की गई है। मसलन एक जगह फरमाया गया- उसने पहले ही से तुम्हारा नाम मुस्लिम रखा था और इसी काम के पेशेनजर ताकि रसूल तुम पर गवाह बनें और तुम लोगों पर गवाह बनो पस नमाज कायम करो और जकात अदा करो और अल्लाह से ताल्लुक मजबूत रखो।(सूरा हज)

इस आयत में नमाज की अकामत, जकात की अदाएगी और अल्लाह से मजबूत ताल्लुक की ताकीद की गई है। इसके अलावा भी कुरआन में कई मकामात पर जकात की अदाएगी का हुक्म किया गया है। आम तौर से जहां नमाज के कयाम के सिलसिले में इरशाद फरमाया गया है, वहीं जकात की अदाएगी के बारे में भी ताकीद की गई है। कुरआन की बहुत सी आयतों में जिस तफसील क साथ जकात का जिक्र किया गया है उससे मालूम होता है कि जकात इंतिहाई अहम इबादत है।

जकात देने वाले पर अल्लाह का कितना बड़ा करम होगा इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अल्लाह तआला जकात देने वाले शख्स को जहन्नुम की आग से महफूज रखेंगे। अल्लाह फरमाता है- और जहन्नुम की आग से वह आदमी दूर रखा जाएगा जो अल्लाह से बहुत ज्यादा डरने वाला है जो दूसरे को महज इसलिए अपना माल देता है कि(उसका दिल बुख्ल व हिर्स से)पाक हो जाए।(अल लैल-187)

इस आयत से मालूम होता है कि जकात का एक अहम मकसद नफ्स की पाकी भी है। जकात का एक अहम फायदा यह है कि इसके जरिए अल्लाह का तकर्रूब भी हासिल होता है। इरशादे बारी है- और उन्हें देहातियों में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अल्लाह और यौमे आखिर पर ईमान रखते हैं और जो कुछ(राहे खुदा में)खर्च करते हैं उसे अल्लाह के तकर्रूब और रसूल की तरफ से रहमत की दुआएं लेने का जरिया बनाते हैं, सुन रखो कि यह जंरूर उनके लिए अल्लाह के तकर्रूब का जरिया है और अल्लाह तआला जरूर उनको अपनी रहमत में दाखिल फरमाएगा। बिलह शुब्हा वह बड़ा ही बख्शने वाला और बड़ा ही रहम फरमाने वाला है।(अल तौबा-99)

जकात अदा करने पर जिस कदर अज्र का वादा किया गया है उसी तरह जकात अदा न करने पर भी सख्त अजाब की भी खबर सुनाई गई है। अल्लाह तआला का इरशाद है- और जो लोग सोना चांदी जमा करके रखते हैं और उन्हें अल्लाह के रास्ते में खर्च नहीं करते, उन्हें दर्दनाक अजाब की खबर सुना दीजिए एक दिन आएगा कि इसी सोने चांदी पर जहन्नुम की आग दहकाई जाएगी और फिर उसी से उन लोगों की पेशानियों ,पहलुओं और पीठों को दागा जाएगा(और कहा जाएगा)यह है वह खजाना जो तुम ने अपने लिए जमा कर रखा, लो अब अपनी समेटी हुई दौलत का मजा चखो। (अल तौबा-34-35)

जकात के जरिए एक मकसद यह हासिल होता है कि इसके जरिए गरीबों, नादारों, यतीमों, बेवाओं और हाजत मंदों की जरूरियात भी पूरी हो जाती है और उनकी दिलजूई होती है। अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है- और मोमिनीन का मालों में मांगने वालों और नादारों का हक है (अल मआरिज24-25) इसलिए जकात देते वक्त इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि जकात में बेहतरीन माल खर्च किया जाए, ऐसा न हो कि गला-सड़ा माल फकीरों, हाजतमंदों को दे दिया जाए। अल्लाह तआला ऐसा करने से रोकता है। ऐसा न हो कि(अल्लाह के रास्ते में)देने के लिए बुरी चीज छांटने लगो।(अल बकरा-267)

जकात पाक माल की दी जानी चाहिए अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है- ऐ ईमान वालो! अल्लाह के रास्ते में अपनी पाक कमाई खर्च करो।(अल बकरा 267) नबी करीम(सल)न इरशाद फरमाया -अल्लाह पाक है और वह सिर्फ वही सदका कुबूल करता है जो पाक माल से दिया गया हो।(मुस्लिम)

जकात किन लोगों का दी जानी चाहिए। अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया- जकात का माल तो सिर्फ फकीरों के लिए है, मिस्कीनों के लिए है और जो लोग सदकात क काम पर मामूर हैं उनके लिए है और जिनकी तालीफे कल्ब मतलूब हो उनके लिए और गुलामों को आजाद कराने में, कर्जदारों की मदद करने में और अल्लाह के रास्ते में और मुसाफिर नवाजी में, एक फरीजा है अल्लाह की जानिब से और अल्लाह सब कुछ जानने वाला और दाना व बीना है।(तौबा-60)


तमाम साहबे निसाब मुसलमानों को चाहिएकि वह जकात की अदाएगी में जर्रा बराबर भी गफलत से काम न लें जो साहबे निसाब हैं वह खुशी खुशी जकात को अदा करके अज्रे अजीम के मुस्तहक बनें।