लखनऊ

डॉ. वजाहत हुसैन रिज़वी एक संपादक ही नहीं बल्कि उर्दू के सेनानी हैं : आरिफ़ नकवी

हमें जन आंदोलन चलाने की जरूरत है, तभी उर्दू बचेगी। : डॉ. वज़ाहत हुसैन रिज़वी
उर्दू विभाग में “एक मुलाक़ात सैयद वजाहत हुसैन रिज़वी से” विषय पर ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

मेरठ:
डॉ. वजाहत हुसैन रिज़वी न केवल एक संपादक हैं बल्कि उर्दू के उस्ताद भी हैं। वजाहत साहब की व्याख्या सुनकर और नॉवेलेट युक्त कृतियाँ देखकर हमें आश्चर्य होता है। उर्दू साहित्य के संबंध में उनकी प्रेरणा सुनकर हमें बहुत खुशी हुई। अगर हमने सही समय पर मेहनत की होती तो हम उर्दू के लिए इतना नहीं रोते, जितना आज महसूस कर रहे हैं। हम हिंदी और अन्य भाषाओं से बहुत कुछ सीख सकते हैं।” ये शब्द थे जर्मनी के मशहूर लेखक और शायर आरिफ नकवी के, जो उर्दू विभाग और एयूएसए द्वारा ”सैयद वजाहत अली रिज़वी से एक मुलाकात” विषय पर आयोजित साप्ताहिक ऑनलाइन संगोष्ठी अदब नुमा के 88वें सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान कह रहे थे।

कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से की। हादिया नात एम.ए. द्वितीय वर्ष की छात्रा फरहत अख्तर द्वारा प्रस्तुत की गयी। कार्यक्रम का आयोजन उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. असलम जमशेदपुरी ने किया। डॉ.सैयद ख्वाज़ा हुसैन रिज़वी, पूर्व उपनिदेशक, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, लखनऊ, ने मुख्य अतिथि के रूप में ऑनलाइन भाग लिया। डॉ. रियाज़ तौहीदी, सह-समन्वयक, जम्मू-कश्मीर, आईयूएसए ने सम्मानित अतिथि के रूप में कार्यक्रम में भाग लिया। डॉ. हनीफ़ खान (सहायक प्रोफेसर, उर्दू विभाग, अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ) और डॉ. मूसी रज़ा (रोज़ नामा, अवध नामा, लखनऊ के उप-संपादक) ने शोध प्रपत्र वक्ता के रूप में भाग लिया, जबकि डॉ. रेशमा परवीन, अध्यक्ष आयुसा ने वक्ता के रूप में सहभागिता की । स्वागत भाषण डॉ. इरशाद सयानवी ने, संचालन डॉ. शादाब अलीम ने तथा आभार शोध छात्रा शाहनाज़ परवीन ने किया।
उर्दू विभाग के अध्यक्ष और प्रसिद्ध कथा समीक्षक और कथा लेखक प्रो. असलम जमशेदपुरी ने कहा कि आज हमारे लिए बहुत खुशी का दिन है। उनमें से एक महत्वपूर्ण उर्दू उपन्यास है। उनके अनुसार, डिप्टी नज़ीर अहमद का “अयामी” उर्दू में पहला उपन्यास है। इसके अलावा, आपने मासिक पत्रिका “निया दूर” और उर्दू के लिए निस्वार्थ भावना से जो काम किया है। इसे समय याद रखेगा और आपकी सेवाओं को कभी नहीं भुलाया जाएगा। उर्दू भाषी समुदाय एवं हमारे इस साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए हम आपके आभारी हैं।


डॉ. रियाज़ तौहीदी ने कहा कि हुसैन रिज़वी की लेखनी विषय के अनुसार निरंतरता के साथ आगे बढ़ती है।विषय के अनुसार आप खूबसूरती से लेखन को अंजाम देते हैं। वजाहत हुसैन के लेख और संपादकीय पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हैं। मैं सभी अतिथियों के साथ-साथ भाग लेने वाले पेपर लेखकों और आयुसा के सभी अधिकारियों को धन्यवाद देना चाहता हूं।
डॉ. वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जो लोग उर्दू से प्यार करते हैं उन्हें अपने घरों में अपने बच्चों को भी उर्दू सिखानी चाहिए। उर्दू को जिंदा रखें और यह तभी संभव होगा जब स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों के सभी शिक्षक अपने बच्चों पर विशेष ध्यान देंगे और उन्हें उर्दू सिखाएंगे, तो निश्चित रूप से उर्दू फलेगी-फूलेगी। उपन्यास के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि कई लोग कहते हैं कि उपन्यास ही उपन्यास की संतान है, यह बड़े आश्चर्य की बात है. नॉवेल्‍ट पर काम अच्‍छी तरह चल रहा है। असलम साहब ने नॉवेल का प्रचार भी किया। सभी ने मेरे नॉवेल पर किए गए काम की सराहना की जिससे मुझे प्रेरणा मिली। उपन्यास की पृष्ठभूमि व्यापक है और पात्र भी अधिक हैं लेकिन नॉवेल एक समस्या को उजागर करता है। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि उर्दू को जिंदा रखने के लिए हमें गांव-गांव, नगर-नगर जाकर काम करना होगा, अगर ऐसा नहीं किया गया तो उर्दू काम नहीं आएगी। आज बड़े-बड़े संगठन कुछ थीसिस लेखकों को बुलाकर सेमिनार कराते हैं, इससे भी उर्दू को बढ़ावा नहीं मिलने वाला है। इस समय हमें जन आंदोलन चलाने की जरूरत है तभी उर्दू बचेगी।
इस अवसर पर डॉ. मूसी रज़ा और डॉ. हनीफ़ खान ने शोध प्रपत्र प्रस्तुत किये जिनमें उन्होंने डॉ. वजाहत हुसैन रिज़वी के व्यक्तित्व, उनकी साहित्यिक यात्रा और उनके “नए युग” सहित एक पत्रकार के रूप में उनके प्रयासों का वर्णन किया। सेवाओं की समीक्षा की। .
प्रोफ़ेसर रेशमा परवीन ने कहा कि अगर दज़ाहत हुसैन किसी विश्वविद्यालय में होते तो निश्चित रूप से हम जैसे छात्रों को बहुत कुछ सीखने को मिलता। हमने उनसे उर्दू उपन्यास की आलोचना, सिद्धांतों और शोध के बारे में जो बात की, उससे यह महसूस होता है कि उनकी उपलब्धियाँ हमारे लिए एक प्रकाश स्तंभ हैं।
कार्यक्रम से डॉ. आसिफ अली, डॉ. अलका वशिष्ठ, नूर जमशेदपुरी, डॉ. शबिस्ता आस मुहम्मद, मुहम्मद शमशाद, सैयदा मरियम इलाही, फैजान जफर, नुजहत अख्तर, फरहत अख्तर, माहे आलम सहित अनेक छात्र जुड़े रहे।

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