राजेश सचान

आज देश में बेकारी की भयावह स्थिति है और यह ज्वलंत मुद्दा बन रहा है। उत्तर प्रदेश में भी इससे भिन्न स्थिति नहीं है। प्रदेश में भी बेरोजगारी चरम पर है। लेकिन रोजगार सृजन व सरकारी नौकरी मुहैया कराने में उत्तर प्रदेश को नंबर वन बताने के प्रोपैगैंडा में अरबों रुपये पानी की तरह बहाया जा रहा है। सरकारी प्रचार के कुछ मामलों पर गौर करने पर इन दावों की सच्चाई स्वतः उजागर हो जायेगी। सरकार का दावा है कि इन 4.5 सालों में रिकॉर्ड 4.5 लाख नौकरियां दी गई। जबकि आंकड़े बता रहे हैं कि प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की संख्या में पिछली सरकार के सापेक्ष कमी आयी है और बैकलॉग(रिक्त पद) कोटा बढ़ गया है। बेसिक शिक्षा के कायाकल्प का दावा करते हुए सबसे ज्यादा प्रचार बेसिक शिक्षा विभाग में रिकॉर्ड शिक्षकों की नियुक्ति में मामले में किया जाता है। जबकि हाल में 5 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को द्वारा जारी रिपोर्ट में बेसिक शिक्षा में सबसे बदतर हालत वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश शीर्ष में है। देश भर में 11.6 लाख शिक्षकों के रिक्त पदों में से उत्तर प्रदेश में 3.3 लाख हैं। इसी तरह संविदा/आउटसोर्सिंग के तहत 3 लाख युवाओं को नौकरी देने का दावा किया जा रहा है जबकि इसमें कोई नया रिक्रूटमेंट हुआ ही नहीं है, बल्कि जिन 3 लाख नौकरी मुहैया कराने का दावा किया जा रहा है, वह सभी दसियों साल से कार्यरत संविदा/आउटसोर्सिंग कर्मचारी हैं।

इसी तरह रोजगार सृजन के मामले में दावा किया जा रहा है कि प्रदेश में कोरोना जैसी विकट आपदा के बाद भी योगी सरकार ने तकरीबन 4.5 करोड़ रोजगार सृजन कर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। इसमें प्रमुख तौर पर सूक्ष्म, लघु व मध्यम ईकाईयों(एमएसएमई सेक्टर) में 2 करोड़ रोजगार सृजन, मनरेगा में 1.5 करोड़, स्किल मैपिंग में 40 लाख युवाओं को रोजगार आदि शामिल है। जिस एमएसएमई सेक्टर में 2 करोड़ नये रोजगार सृजन का दावा किया जा रहा है, उस सेक्टर के लाक डाउन के बाद उबरने के संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं। चाहें पूर्वांचल का बुनकरी कारोबार हो या फिर आगरा में लेदर काटेज का कारोबार सब कुछ चौपट है, यही हाल इसी तरह का हाल अन्य कारोबार का है लेकिन महज लोन पैकेज देकर सरकार का दावा है कि न सिर्फ इस सेक्टर का पुनर्जीवन किया गया बल्कि 2 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया। कोरोना आपदा में जहां जरूरी था कि कम से कम मनरेगा में सभी जरुरतमंदों को रोजगार मुहैया कराया जाता लेकिन 1.5 करोड़ लोगों को रोजगार देने की शेखी बघारी जा रही है लेकिन उसकी सच्चाई यह है कि इन्हें औसतन साल में एक महीने का भी काम सरकार ने मुहैया नहीं कराया। स्किल मैपिंग प्रोजेक्ट का प्रचार किया जा रहा है इसमें सिर्फ रोजगार के लिए युवाओं का पंजीकरण हुआ है अपवाद स्वरूप ही रोजगार किसी को मिला हो लेकिन आम तौर पर पंजीकृत युवाओं को रोजगार नहीं दिया गया।

औद्योगिक हब बनाने का दावा किया जा रहा है। निवेशकों से लाखों करोड़ निवेश के अनगिनत समझौते हुए हैं, लेकिन प्रदेश में महज 1.88 लाख करोड़ रुपये का औद्योगिक निवेश हुआ है। जो भी समझौते हुए हैं उसमें ज्यादातर परियोजनाएं अधूरी पड़ी हुई हैं जबकि जमीन मुहैया कराने से लेकर तमाम सुविधाएं व रियायतें सरकार द्वारा प्रदान की गई।

इसी तरह स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर दावे किए जा रहे हैं। जबकि प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की ओर कोरोना आपदा में भी ध्यान नहीं दिया गया। इन हालतों में प्रदेश का युवा भाजपा और योगी सरकार से 5 सालों से लड़ रहा है। प्रदेश में 5 लाख से ज्यादा बैकलॉग को भरने, हर युवा को गरिमापूर्ण रोजगार और रोजगार न मिलने पर बेकारी भत्ता देने जैसी मांगो को लेकर इलाहाबाद में 70 दिनों से ज्यादा से युवा रोजगार आंदोलन चला रहे हैं। प्रदेश में चरम बेरोजगारी के साथ ही शिक्षा-स्वास्थ्य का अधिकार भी मुद्दा बन रहा है और युवा प्रदेशव्यापी आंदोलन की तैयारी में लगे हैं।

प्रदेश में शिक्षा-स्वास्थ्य सवाल हो, रोजगार का सवाल हो या फिर लोकतांत्रिक अधिकारों का सवाल हो योगी सरकार में पूरी तरह से क्षत-विक्षत हो गए हैं। इन मुद्दों पर विपक्ष खासतौर पर अखिलेश यादव को अपनी नीति घोषित करना चाहिए।

राजेश सचान, संयोजक युवा मंच
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