मो. आरिफ़ नगरामी

कोराना वायरस के हालिया और खतरनाक दौर में जिस तरह मुअम्मिर अफराद के साथ साथ इल्म व दानिश के चिरागों का बुझ जाना बेहद तकलीफ देह है जिससे इस समाज में एक खला पैदा हो चुका है और इसके नतीजे में एक बडे जेहनी जजबाती और नफसियाती बोहरान का शिकार हो सकते हैं । वाजे रहे कि दुनिया में नेजामें कुदरत की अताकरदा बेशकीमत नेअमतों की कद्र अफजाई का सलीका हमने अपने बुजुर्गों से सीखा हे और हमारे बुजुर्गों ने अपने बुजुर्गों से सदहा साल से नस्ल दर नस्ल सीखने और सिखाने और जिन्दिगी को बेहतर बनाने का यह अमल जारी और सारी है। हमारे बुजुर्ग हमारी जिन्दिगी के हर मरहले मेें हमारी रहनुमाई और सरपरस्ती करते रहते है। इसके पसेेपुश्त उनका एक ही मकसद होता है कि नई नस्ल उन परेशानियों और मुशकिलात से न दो चार हों जिनसे हमारा साब्का पडा। हमारे बुजुर्ग हमारी रहनुमाई और सरपरस्ती के साथ साथ जेहनी फिक्री और अखलाकी तरबियत भी करते है। इस तरबियत पर हमारे मुस्तकबिल की जिन्दिगी की कामयाबी या नाकामी का बहुत इन्हेसार होता है।

हमारे बुजुर्ग हमारे लिये कुदरत की अताकरदा अजीम नेअमत है। मुजुर्गों की ताजीम और उनका अदब व एहतेराम हम पर फ़र्ज़ है। कोरोना वायरस के हालिया बेहद तश्वीशनाक दौर मेें बडी तादाद में बुजुर्गों का साया हमारे सरों से उठ रहा है। कोरोना की पहली और दूसरी लहेर ने तो जैसे बुुजुूर्गों के लिये झाडू चल गयी है। बुजुर्ग इस वायरस का बडी तादाद में शिकार हो रहे है।

कोरोनाा वायरस की पहली लहेर में बहुत से अहले इल्म और माहिरीने फन दागे मुफारकत दे गये थे और अब दूसरी लहेर में एक एक दिन कई कई बेमिसाल लोग दुनिया को छोड रहे है। आम लोगों की गिनती नहीं कि उनकी तादाद हर रोज दसियों हजार है मगर वह लोग जो लाखों में एक थे जिनकी औकात कौम व मिल्लत व मुल्क के लिये नाकाबिले तलामी नुकसान में शामिल की गयी। उनकी तादाद का भी अब शुमार मुमकिन नहीं है इसमें कोई शक नहीं कि एक दिन सब को चले जाना है लेकिन किसी वेबाई बीमारी में एक साथ बुजुर्गों के साथ साथ इल्म व दानिश के चिरोगों का बुझ जाना कोई नेक शुगून नहीं है । इससे समाज में अंधेरा पड जाने का अन्देशा है। अगर वक्त रहते नये चिरागों में लहू नहीं डाला गया तो मुस्तकबिल ही अंधेरे में डूब जायेगा। कोरोना की दूसरी और खतरनाकतरीन लहर मेें यूनिवर्सिटियों के बेशुूमार असातजा इस वेबा का शिकार हो रहे है। अलीगढ मुस्लिम यूनिर्सिटी के कई दर्जन वह असातजा भी रूख्सत हो गये जो अभी डयूटियां अन्जाम दे रहे है। एक इत्तेला के मुताबिक अब तक अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के 78 अफराद जां बहक हो चुके है। कमो बेश यही हाल दूसरे अदारों और शोबों का है। पूरे मुल्क मेे सरकारी रेकार्ड के मतताबिक 500 से ज्यादा डाॅक्टर दूसरों की मसीहाई करते करते खुद इस वबा का शिकार हो गये । उत्तर प्रदेश की नाआकबत अन्देशी की वजह से 1621 प्राईमरी असतजा जानसे हाथ धो बैठे। मुसलमानाने हिन्द के दरमियान से अचानक ऐसे लोग उठ गये जिनको बनने और संवरने में बरसों लगे थे इस दौरान मुल्क के मशहूर आलमे दीन और मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के फआल जनरल सेक्रेट्री मौलाना वली रहमानी जैसा ज़ीइल्म रूख्सत हो गया। जिसने मुंगेर ही नहीं पूरे मुल्क मेें इल्म की शमा रौशन की थी। मौलाना वहीदुद्दीन खां चले गये जिनकी इल्मी कारनामों का ऐतराफ दुनिया ने किया है। फिका एकेडमी के खामोश मिजाज मगर इल्म के समन्दर अमीन उस्मानी भी खामोंशी के साथ चले गये । जमाअत इस्लामी को एक नया विजन देने वाले सिद्दीक हसन भी अबदी नींद सो गये। इस वेबा ने हमसे शिया सुन्नी इत्तेहाद के सबसे बडे अलम्बरदार मौलाना कल्बे सादिक को भी हमसे छीन लिया। मौलाना कल्बे सादिक उस शख्सियत का नाम है जिसकी नमाजे जनाजा शियों और सुन्नियों ने अपने अपने मसलक के एतेबार से पढी। जमीअत उलमा के मुफती सदर कारी उस्मान कासिमी, मुफती फुजैल उस्मानी ने भी इस वेबा की वजह से दुनिया को अल्विदा कहा। इसके अलावा भी जिन्दिगी के जिस दीगर शोबयेजात में हिन्दुस्तानी मुसलमान अपने नायाब हीरों से महरूम हो गये। उनमेें अलीगढ मुस्ल्मि यूनिवर्सिटी के शोबये कानून के जिन्दादिल सदर प्रो0 शकील समदानी, इरम एजूकेशन सोसायटी के मैनेजर और इरम यूनानी मेडिकल कालेज एण्ड हास्पिटल के जवां साल हर दिल अजीज मैनेजिंग डायरेकटर डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस का नाम काबिले जिक्र है। पहली लहेर में उर्दू अदब के रौशन माहेताब शम्शुल रहमान फारूकी और काबिले रश्क गैर मुस्लिम शायर गुलजार देहल्वी भी चले गये । जाने वाले चले गये हमारा कुछ लेकर नहीं गये बल्कि हमेें बहुत कुछ दे गये। उनका जाना कौम व मिल्लत का बहुत नुकसान हुआ।

वबा का कहर जारी है रोजाना अपने किसी न किसी अजीज या शनाशा की रेहलत की खबर आ रही है। इस सूरते हाल में बहुत जरूरी हैं कि हम अपने बुजुर्गों ओर दानिशवरों का खास ख्याल रखें और उनकी मौजूदगी को नेमत समझें। उनकी दिलजोई करें। उन्हें किसी किस्म की कमी या महरूमी का एहसास न होने दें। उनके खिदमत पर फख्र करें और उनसे मस्तफीद होंने और रहनुमाई हासिल करने का कोई मौका हाथ से न जाने दें।

यह एक ऐसा वक्त है जब सब को एक जान होकर इस महामारी का मुकाबला करना चाहिये। हर तरह के एख्तेलाफात को भुला देना चाहिये। हर तरह की तफर्रकाबाजी से परहेज करना चाहिये। यह वक्त वतनअजीज हिन्दुस्तान को बचाने का है। इन्सानियत को बचाने का है एक दूसरे की मदद की कोशिश कीजिये और अल्लाह तआला के हुजूर में गिडगिडा कर दुआ कीजिये। कि वह दुनिया को इस वेबा से नेजात दिला दें। हमारी खताओं और गुनाहों को माफ फरमादें।