कोविड महामारी की दूसरी लहर में म्यूकरमायकोसिस (ब्लैक फंगस या काली फफूंद) एक जानलेवा बीमारी बनकर उभर रही है. देश के कई राज्यों में इस बीमारी का हमला तेज़ी से बढ़ा है. कोविड की पहली लहर के दौरान ऐसे मरीजों की संख्या बहुत कम थी. मगर दूसरी लहर में यह बीमारी जानलेवा बनती जा रही है, विशेषकर महाराष्ट्र और गुजरात में.

क्या है ब्लैक फंगस
ब्लैक फंगस या म्यूकरमायकोसिस म्यूकर फंगस की वजह से होने वाला दुर्लभ संक्रमण है. मिट्टी, फल-सब्जियों के सड़ने की जगह, खाद बनने वाली जगह ये म्यूकर फंगस पनपता है. इसकी मौजदूगी मिट्टी और हवा दोनों जगह हो सकती है. इंसान की नाक और बलगम में भी ये पाया जाता है. इससे साइनस, दिमाग, फेफड़े प्रभावित होते हैं.

मृत्यु दर 50 से 60 प्रतिशत तक
ये डायबिटीज के मरीजों या कम इम्युनिटी वाले लोगों, कैंसर या एड्स के मरीजों के लिए घातक भी हो सकता है. ब्लैक फंगस में मृत्यु दर 50 से 60 प्रतिशत तक होती है. कोविड 19 के गंभीर मरीजों के इलाज में स्टीरॉयड्स के इस्तेमाल की वजह से ब्लैक फंगस के केस बढ़ रहे हैं.

लक्षण?
इस बीमारी में मरीज में नाक का बहना, चेहरे का सूजना, आंखों के पीछे वाले हिस्से में दर्द, खासी, मुंह के न भरने वाले छाले, दातों का हिलना और मसूड़ों में पस पड़ना आदि लक्षण दिखते हैं. ब्लैक फंगस को अक्सर कोविड के इलाज के दौरान दी गई दवाओं का साइड इफेक्ट माना जाता है.

कम इम्युनिटी वाले मरीज़ बनते हैं शिकार
डॉक्टरों के मुताबिक कम इम्युनिटी वाले मरीजों में ही फंगल संक्रमण देखने को मिलता है. ऐसे मरीज जो स्टीरॉयड्स पर हैं या जिन्हें डायबिटीज है या जो ऑर्गन ट्रांसप्लांट से गुजरे हों. ये फंगस नमी में रासायनिक बदलाव करता है, जब इम्युनिटी कम होती है और खून की सप्लाई कम होती है. इस संक्रमण का प्रसार बहुत तेजी से होता है. कोविड की पहली लहर में रिकवरी के बाद कम से कम साढ़े तीन हफ्ते का समय म्यूकरमायकोसिस के लक्षण उभरने में लगा. डॉक्टर्स का कहना है कि अब ये ढ़ाई हफ्ते में ही सामने आ रहा है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
पूणे हॉस्पिटल में कंस्लटेंट फिजिशियन डॉ. दत्तात्रेय पटकी के मुताबिक जिन कोरोना मरीजों को पहले से डायबिटीज होती है, उन्हें म्यूकरमायकोसिस होने का खतरा अधिक होता है. शुगर लेवल का अधिक होना और स्टीरॉयड्स का ज्यादा इस्तेमाल ब्लैक फंगस संक्रमण को न्योता देने जैसा है. डॉ. पटकी कहते हैं उन्होंने पिछले छह महीने में इस तरह के 50 मरीजों का इलाज किया है, जबकि इससे पहले औसतन हर साल दो-तीन ही ऐसे मरीज उनके पास इलाज के लिए आते थे.

इस तरह पा सकते हैं काबू
रूबी हॉल क्लिनिक में फिजिशियन डॉ. अभिजीत लोढ़ा का कहना है कि म्युकरमायकोसिस के इलाज के लिए जरूरी है, इसकी जल्दी पहचान हो. एंटी फंगल दवाएं पर्याप्त और सही मात्रा में ठीक समय से दी जाएं तो ये फंगस काबू में आ सकता है. डॉ. लोढ़ा ने बीते एक साल में 70 ऐसे मरीजों का इलाज किया है. इसमें इलाज शुरू होने में जितनी देर होती है उतना ही मरीज को खतरा बढ़ जाता है. डॉ. अमित गरजे का कहना है कि ये संक्रमण सभी आयुवर्गों में पाया जा सकता है. कभी-कभी ऊपरी या नीचे जबड़े के लिए तो कभी आंख के पीछे इस म्यूकरमायकोसिस के लक्षण दिखते हैं. ये बीमारी कम इम्यूनिटी की वजह से होती है.