नई दिल्ली: भारत-चीन विवाद के बाद से ही देश में चीनी कंपनियों के बहिष्कार की मांग भले ही तेज हो गई हो लेकिन मनी माइंडेड भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड चीनी कंपनी वीवो से करार खत्म नहीं करना चाहता। इंडियन प्रीमियर लीग की स्पॉन्सर VIVO से BCCI को हर साल 440 करोड़ रुपए मिलते हैं।
वीवो से बोर्ड का करार 2022 तक
बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष (ट्रेजरार) अरुण धूमल ने गुरुवार को स्पष्ट कर दिया कि वीवो से बोर्ड का करार 2022 तक है। इसके बाद ही स्पॉन्सरशिप का रिव्यू होगा। अरुण धूमल का यह बयान ऐसे समय आया है, जब गलवान में भारत और चीन की सेनाओं के बीच झड़प के बाद इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन (आईओए) भी चीनी कंपनी ली निंग से करार खत्म करने की राह पर है। आईओए महासचिव राजीव मेहता ने कहा, हम इस वक्त देश के साथ हैं। आईओए ने इस कंपनी से मई 2018 में करार किया था। इसके तहत कंपनी भारतीय एथलीट्स को करीब 5 से 6 करोड़ रुपए के स्पोर्ट्स किट देती है।
पैसा भारत में आ रहा है, न कि वहां जा रहा है
धूमल ने कहा कि वीवो से स्पॉन्सरशिप करार के जरिए पैसा भारत में आ रहा है, न कि वहां जा रहा है। हमें यह समझना होगा कि चीनी कंपनी के फायदे का ध्यान रखने और चीनी कंपनी के जरिए देश का हित साधने में बड़ा फर्क है।
VIVO से क़रार चीन के नहीं, भारत के फायदे में है
धूमल ने कहा कि चीनी कंपनियां भारत में अपने प्रोडक्ट बेचकर जो पैसा कमाती हैं, उसका बड़ा हिस्सा ब्रांड प्रमोशन के नाम पर बीसीसीआई को मिलता है। बोर्ड उस कमाई पर केंद्र सरकार को 42% टैक्स देता है। ऐसे में यह करार चीन के नहीं, बल्कि भारत के फायदे में है।
BCCI को कोई दिक्कत नहीं
धूमल के मुताबिक, अगर चीन का पैसा भारतीय क्रिकेट की मदद कर रहा है, तो हमें इससे कोई दिक्कत नहीं। हम गैर-चीनी या भारतीय कंपनियों से भी स्पॉन्सरशिप का पैसा हासिल कर सकते हैं। सोच यही है कि जब चीनी कंपनियों को भारत में उनके उत्पाद बेचने की इजाजत दी जा रही है, तो बेहतर यही होगा कि वह पैसा भारतीय इकॉनमी में लौटे।
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