एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट
हाल में एनसीआरबी द्वारा वर्ष 2020 के अपराध से संबंधित आँकड़े यह दर्शाते हैं कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार के मामलों की दर राष्ट्रीय स्तर पर अपराध की दर से काफी ऊंची है। यह ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी प्रदेश की कुल आबादी का 21% है जबकि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार का घटित अपराध 12714 राष्ट्रीय दर (1 लाख आबादी पर) 25.4 की अपेक्षा 30.7 है। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में दलितों पर कुल घटित अपराध राष्ट्रीय स्तर पर दलितों पर घटित कुल अपराध का 25.3% है अर्थात देश में दलितों पर घटित अपराध का एक चौथाई है। यह स्थिति योगी सरकार के उत्तर प्रदेश में अपराध के नियंत्रण के दावे को पूरी तरह से झुठलाती है। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में दलित अत्याचार का बराबर शिकार हो रहे हैं जैसा कि अपराध के आंकड़ों के निम्नलिखित विवेचन से स्पष्ट है:-
दलितों के विरुद्ध अत्याचार/अपराध के उपरोक्त आंकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलित एवं दलित महिलाओं के विरुद्ध अपराध का प्रतिशत एवं दर राष्ट्रीय स्तर पर दलितों पर होने वाले अपराध तथा दर से बहुत अधिक है। इससे योगी सरकार का अपराध पर नियंत्रण का दावा एक दम झूठा सिद्ध हो जाता है। यह भी ज्ञातव्य है कि सरकारी आँकड़े सही तस्वीर पेश नहीं करते हैं क्योंकि बहुत सारे अपराध का शिकार लोग या तो थाने तक जाते ही नहीं, जाते भी हैं तो अपराध दर्ज नहीं होते। इसमें पुलिस का दलित विरोधी नजरिया भी काफी आड़े आता है। पर इसके बावजूद भी जो आँकड़े सरकारी तौर पर छपे हैं वे उत्तर प्रदेश में दलितों की दयनीय स्थिति दर्शाते हैं और योगी सरकार के दलित विरोधी होने का प्रमाण है।
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