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फिर बोलता दिखाई दे रहा है अखिलेश का काम

ज़ीनत शम्स

बृहस्पतिवार को नीति आयोग ने अपने आंकड़े पेश किए जिनका आधार स्वास्थ्य शिक्षा अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, जेंडर, क्लाइमेट चेंज और इंस्टिट्यूशन आदि था जिसमें केरल राज्य टॉप पर रहा जबकि हमारे प्रदेश की डबल इंजन सरकार 25 में स्थान पर विराजमान है. अपने ‘मुख करे प्रशंसा, प्रशंसा ना होय’ यह बात नीति आयोग के आंकड़ों से साबित हो गयी है. झूठा प्रचार करके, झूठे आंकड़े पेश करके आप भोली भाली जनता को मूर्ख बनाकर सरकार तो चला सकते हैं लेकिन भले ही बंदिशों में करती हों लेकिन संस्थाएं अपना काम तो करती ही रहती हैं और उनके जारी आंकड़े झूठ का पर्दाफाश करते रहते हैं.

प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं कैसी हैं यह तो अब प्रदेश का बच्चा-बच्चा जानता है, कोरोना महामारी ने झूठ की चादर उतार फेंकी है, बिना दवा और इलाज के हजारों लोगों की मौत, जिन को बचाया जा सकता था अगर हमारी व्यवस्था इतनी लचर ना होती। शिक्षा की दशा बड़ी शोचनीय है, प्राइमरी स्कूल के अध्यापक पढ़ाने के सिवा बाक़ी सारे काम करते हैं, चाहे मिड डे मील बनवाना हो, इंसानों की गिनती करनी हो, सरकारी योजनाओं का प्रचार करना हो या फिर चुनावों में ड्यूटी करनी हो. कहने का मतलब यह कि उनके पास बच्चों को पढ़ाने के लिए समय ही नहीं।

प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी को महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की कितनी चिंता है यह तो यहां के बलात्कारी विधायकों की गिनती देख कर ही पता चलता है. सरकारी नियुक्तियों का हाल यह है कि एलान होता है, फॉर्म भरे जाते हैं जिनसे एक भारी भरकम रकम इकठ्ठा होती है, फिर किन्ही कारणों से परीक्षा स्थगित हो जाती है और बेरोजगार छात्र ठगे से एक दूसरे का मुंह ताकते रह जाते हैं. हाई स्टडी करने के बाद भी उनके लिए कहीं भी नौकरी नहीं है, उच्च शिक्षा से छात्रों का मोहभंग हो रहा है और तनाव में छात्र आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं.

पर्यावरण के नाम पर एक दिन में पांच करोड़ पेड़ लगाकर भले ही विश्व कीर्तिमान स्थापित कर दिया हो, पर वह पेड़ आज ज़िंदा भी हैं किसी को नहीं पता. यही हाल पॉलिथीन पर पाबन्दी का है, आये दिन शोर उठता है, कुछ घोषणाएं होती हैं, कुछ कार्रवाइयां होती हैं और फिर वही सबकुछ। तो डबल इंजन की इस सरकार का नीति आयोग ने यह परिणाम घोषित किया है.

अब बात करते हैं पूर्व की अखिलेश सरकार की, जिनका काम अभी तक बोल रहा है, भले ही उन कामों पर मौजूदा सरकार ने अपने नाम का ठप्पा लगा दिया हो मगर काम तो बोल ही रहा है. लखनऊ वासियों के लिए मेट्रो की सौग़ात हो, प्रदेशवासियों के लिए आगरा एक्सप्रेस हो जिसपर हवाई जहाज भी लैंड कर सकता है, विश्वस्तरीय जनेश्वर मिश्र पार्क हो , हज हाउस हो, एम्स हों, यूनिवर्सिटीज हों, आईटी सिटी हो, डायल 100 पुलिस सेवा हो, 108 की स्वास्थ्य सेवा हो या महिलाओं की सुरक्षा के लिए शुरू की गयी 1090 सर्विस। इनमें से बहुत सी सेवाओं का नया नामकरण हो चूका है, पर ओरिजिनल तो ओरिजिनल ही रहता है भले उसपर कितने ही आवरण चढ़ा दिए जाएँ। अखिलेश के शासन काल में कन्या विद्याधन, बेरोज़गारी भत्ता, लैपटॉप, साइकिल वितरण, साइकिल ट्रैक, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन आदि तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं का जनता ने खूब लाभ उठाया, जिनको जनता अब भी याद करती है. प्रदेश में फिर से चुनाव होने वाले हैं सभी लोगों ने मौजूदा सरकार का चाल-चरित्र, कथनी और करनी में फ़र्क़ अच्छी तरह से देख लिया है. कोरोना महामारी, मंहगाई और बेरोज़गारी से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है. केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से हताश और निराश है और एकबार फिर अखिलेश की ओर आशाभरी नज़रों से देख रही है. पंचायत चुनावों के नतीजों से इस बात का अंदाज़ा भी हो गया कि लोगों का मोह कमल के फूल से भंग हो रहा है. राज्य की जनता एकबार फिर साइकिल पर सवार होने का संकेत दे रही है, उसे फिर अखिलेश का काम फिर बोलता हुआ दिखाई दे रहा है.

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