तौक़ीर सिद्दीक़ी

जैसे जैसे सर्दियों का मौसम धीरे धीरे अंगड़ाइयां ले रहा है वैसे यूपी के चुनावी मौसम की तपिश बढ़ रही है. प्रदेश के नेता तो पहले से ही एक दुसरे पर हमले बोले रहे थे मगर अब केंद्र से नेताओं की आमद ने इस तपिश को और बढ़ाया है. पार्टियां अब एक दूसरे के गढ़ में जाकर चैलेन्ज कर रही हैं. शनिवार 13 नवंबर को जहाँ गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समाजवादी पार्टी के गढ़ आजमगढ़ में ध्रूवीकरण की राजनीति कर रहे थे, आज़मगढ़ का नाम बदलने की बातें कर रहे थे तो वहीँ समाजवादी पार्टी प्रमुख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में गरज रहे थे और बाबा की सरकार की बिदाई के दावे कर रहे थे.

मौका था समाजवादी विजय यात्रा के तीसरे चरण के शुभारंभ का जिसमें एक जनसैलाब उमड़ता हुआ नज़र आया और साथ ही दिखा उमड़ता हुआ अखिलेश यादव का जोश. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि बाबा की सरकार को अब कोई नहीं बचा सकता। ये सरकार जाने वाली है, अब इसकी बिदाई यक़ीनी है क्योंकि प्रदेश की भाजपा सरकार ने जनता को बहुत अपमानित किया है और अब वही जनता चुनाव में बीजेपी का सफाया करने वाली है।

समाजवादी विजय यात्रा के दौरान अपने सम्बोधनों में अखिलेश ने कहा यह चुनाव लोकतंत्र, संविधान को बचाने का है, इस सरकार में आंदोलनकारियों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अखिलेश यादव ने बताया, वह अपनी पार्टी के नेताओं के साथ गोरखपुर के सातों विधानसभा क्षेत्र में रोड शो करेंगे। इसके साथ ही वह सभी जगह पर जनसभा को भी संबोधित करेंगे। विजय रथ यात्रा का अगला पड़ाव कुशीनगर होगा जहाँ रविवार को सपा प्रमुख एकबार फिर भाजपा और योगी सरकार पर हमलावर होंगे।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव और सपा कार्यकर्ताओं का जोश इस समय उफान पर है, ओपिनियन पोल में भी 22 की तरफ बाइसिकल दौड़ती हुई नज़र आ रही है. इन सर्वेक्षणों में दिखाए गए रुझानों में भाजपा और सपा का अंतर लगातार कम होता दिखाई दे रहा है. भाजपा जहाँ भारी बहुमत से सिंपल मेजोरिटी पर पहुँच गयी है वहीँ समाजवादी पार्टी ने दो ओपिनियन पोल्स के अंतराल में 100 से 150 प्लस का सफर तय कर लिया है. अगर यही रफ़्तार रही तो अगले पोल में दोनों पार्टियों का स्थान बदलता हुआ भी दिखाई दे सकता है. वैसे भी नेताओं की भगदड़ इस समय सपा की तरफ है और चुनावी मौसम में दूसरी पार्टियों के नेताओं की इस तरह की भगदड़, मौसमी पार्टियों में गठबंधन करने की होड़ काफी कुछ इशारा दे देती है कि सत्ता किधर खिसक रही है.