डॉ. सागर भट्टाचार्य, जनरल फिजिशियन, बिहार
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में यह अहम बात सामने आई है कि कोविड-19 के मरीजों को सक्रिय और असक्रिय या सुप्त टीबी का बेहद ज्यादा खतरा होता है। इस अध्ययन को आधार मानते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल में अधिकारियों को यह निर्देश दिया है कि वे टीबी के तमाम रोगियों की कोविड-19 के लिए जांच करें और कोविड-19 के रोगियों में टीबी की जांच करें। दुनियाभर में टीबी के 27% मामले भारत में होते हैं। वर्तमान में यहां कोविड-19 के 50 हजार से ज्यादा मामले रोजाना सामने आ रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, विभिन्न अध्ययनों में कोविड-19 के मरीजों में टीबी की मौजूदगी 0.37%-4.47% पाया गया है। अगर इनकी जांच न की जाए, तो टीबी की वजह से कोविड-19 का संक्रमण बढ़ सकता है और कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के सरकार के प्रयासों को झटका लग सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने तमाम सरकारों और स्वास्थ्यकर्मियों से अनुरोध किया है कि टीबी से ग्रस्त रोगियों के लिए सेवा बरकरार रखें। अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी ने कहा है कि टीबी और कोविड-19 दोनों ही बीमारी से ग्रस्त लोगों के इलाज का कोई फायदा नहीं हो सकता है, खासकर तब जब टीबी का इलाज न किया जाए। टीबी के रोगियों को कोविड-19 बचने के लिए चिकित्सकों द्वारा दी गई सलाह का पालन करना चाहिए और टीबी का इलाज जारी रखना चाहिए।
कोरोना वायरस और टीबी दोनों ही रोगियों को सामाजिक अलगाव से गुजरना पड़ता है और ऐसे में लोग इलाज कराने से हिचकिचाते हैं। दोनों ही बीमारियों से लोग बेहद उलझन की स्थिति में हैं और डरे हुए भी। डब्ल्यूएचओ की सलाह के मुताबिक, नागरिकों, मीडिया, समुदायों और सरकार के मिले-जुले प्रयासों से, खासकर टीबी से जुड़े सामाजिक लांछन से निपटने में मदद मिल सकती है।
टीबी के बारे में इन 5 बातों का जानना जरूरी है:
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