नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सरकारी विज्ञापनों में तस्वीरों के इस्तेमाल से संबंधित अपने पूर्व के आदेश में आज संशोधन करते हुए राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों एवं कैबिनेट मंत्रियों को भी शामिल करने की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई एवं न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद पंत की पीठ ने कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु एवं कुछ अन्य राज्य सरकारों की पुनर्विचार याचिकाएं स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया। न्यायालय ने इन विज्ञापनों में राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों एवं कैबिनेट मंत्रियों को भी शामिल करने का आदेश दिया।

इससे पहले उसने सरकारी विज्ञापनों में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की तस्वीर प्रकाशित करने का आदेश दिया था, वह भी उनकी अनुमति लेकर ही। पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम और ओडिशा की सरकारें भी शामिल थी।

गौरतलब है कि एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि देश में कई लोग हैं जो सरकारी विज्ञापन में लिखी बात पढ़ नहीं सकते या उन पर ध्यान नहीं देते। उन्होंने कहा कि केंद्र के मंत्रियों या राज्य के मुख्यमंत्री की तस्वीर लोगों का ध्यान विज्ञापन की तरफ खींचती है। साथ ही विभाग में अच्छा काम कर रहे मंत्रियों या कल्याणकारी योजना को चला रहे मुख्यमंत्री की तस्वीर का विज्ञापन में न होना लोकतंत्र के लिहाज से उचित नहीं है। कोर्ट ने राज्यों और याचिककर्ता रहे एक एनजीओ की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। राज्यों की अर्जी का विरोध करते हुए एनजीओ के वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि सरकारी पैसे का इस्तेमाल नेताओं की छवि चमकाने के लिए किया जाना गलत है।