देश में रहनें वालें करोड़ों गरीब गरीबी का दंश झेल कर भी अमीरों की शान बढ़ानें में कारगर साबित होतें है भलें ही गरीब व्यक्ति अपनी इज़्ज़त को बचानें के लिए अपनी गरीबी को छुपातें है लेकिन इन्ही गरीबों को देश में रहनें वालें कुछ अमीर मात्र दो सौ0 रूपए खर्च कर गरीब को ही नही बल्कि समाज को भी बता देतें है कि ये व्यक्ति गरीब है और इसकी गरीबी को देखतें हुए इसें ठंड सें बचानें के लिए मेरी या मेरी संस्था की तरफ़ सें कम्बल मुफ्त देकर इस गरीब की मदद की जा रही है। ऐसें तमाम उदाहरण ठंड के मौसम में जगह जगह देखनें को मिलतें है जब सड़क के किनारें या किसी पार्क में बनें मंच के पीछे बैनर लगा कर सैक्ड़ों गरीबों को कम्बल बाट कर न सिर्फ उनकी गरीबी का मज़ाक उड़ाया जाता है बल्कि कम्बल बाट कर गरीबों की हमदर्दी का नाटक करनें वालें राजनितिक रोटियां भी सेकतें है । जबकि यही काम सरकार भी करती है लेकिन सरकार की कारगुज़ारी में बड़ा अन्तर है । सरकार अगर किसी योजना के तहत देश या प्रदेश में रहनें वाले गरीबों को लाभान्वित करनें के लिए मंच सें उनकी मदद करती है तों सरकार की इस मदद के बाद वो गरीब भलें ही अमीर न बनें लेकिन गरीबी की रेखा सें ऊपर ज़रूर पहुच जाता है। उदाहरण के तौर पर प्रदेश सरकार नें प्रदेश के सैकड़ों गरीबों को उनकी गरीबी को देखतें हुए मुफ्त ई रिक्षा वितरित किया था मुख्यमंत्री द्वारा बाकायदा मंच पर बुला कर सैकड़ों गरीबों को ई रिक्षा बाटे गए गरीब की पहचान तों यहॅा भी सार्वजनिक हुई लेकिन एक बार पहचान सार्वजनिक होनें के बाद वो गरीब गरीब नही रह गया बल्कि सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए रोज़गार के साधन सें उसकी गरीबी दूर हो गई और वो अपनें व अपनें परिवार के भरण पोशण के लिए पूरी तरह सें मुतमईन हो गया इसी तरह से तमाम गरीबों को सरकार की तरफ सें मुफ्त आवास योजना के तहत मंच पर बुला कर उन्हें मकान सें सम्बन्धित काग़ज़ात वितरीत किए गए यहॅा भी गरीब की पहचान सार्वजनिक हुई लेकिन एक बार पहचान सार्वजनिक होनें के बाद बेघर गरीब को कम सें कम मकान तों मिल गया। लेकिन सरकार सें हट कर अगर बात करें तों प्रदेश में ऐसें कई संगठन और अपनें आपको समाज सेवी कहनें वालें लोग है जों ठंड का मौसम आतें ही नाम कमानें के लिए सक्रीय हो जातें है। ठंड बढ़ने ंके बाद गरीबों की गरीबी का मज़ाक उड़ानें वालें ऐसें लोग गरीबों को पहलें चिन्हित करतें है फिर उनके घर पर अपनें नाम की पर्ची भेजतें है उसके बाद गरीबों की लिस्ट तैयार करनें के बाद बाकायदा सावर्जनिक स्थान पर मंच सजाया जाता है और गरीबों को कम्बल वितरित किए जानें के लिए आयोजित कार्यक्रम में बाकायदा किसी बड़े ही सम्मानित व्यक्ति को बुलाया जाता है भीड़ एकत्र होनें के बाद मुख्य अतिथि का मालयार्पण किया जाता है इस दौरान कम्बल पानें की लालसा रखनें वालें गरीब बेसब्री सें अपनी बारी आनें का इन्तिाज़ार करतें है। माल्यार्पण के बाद कुछ देर भाषण बाज़ी होती है फिर शुरू होता है गरीबों की छुपी हुई इज़्ज़त को नीलाम करनें का प्रोग्राम। गरीबों की लिस्ट के अनुसार मंच सें गरीब को नाम लेकर बुलाया जाता है और महज़ एक कम्बल पानें की उम्मीद रखनें वालें गरीब को मंच पर बुला कर मुख्य अतिथि द्वारा कम्बल देतें हुए फोटों खिचवाए जातें है और यही फोटों बाकायदा समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों पर भी दिखाए जातें है। गरीबों को कम्बल वितरित करनें के लिए आयोजित होनें वालें इस तरह के कार्यक्रमों में भलें ही मुख्य अतिथि तय समय सें दों घंटा लेट पहुचें लेकिन कड़ाके की ठंड में महज़ एक कम्बल पानें की उम्मीद रखनें वालें गरीब तय समय सें पहलें पहुच कर कार्यक्रम स्थल की शोभा बढ़ातें है ऐसें कार्यक्रमों में नाम फिल्म का वो गाना बिलकुल सही साबित होता है किसमें कहा गया है कि अमीरों की षाम गरीबों के नाम । इस तरह के कार्यक्रमों में अक्सर देखा गया है कि कम्बल पानें की उम्मीद लेकर आनें वाले गरीब का मंच संचालक बाकायदा गरीबी का पूरा ब्योरा प्रस्तुत करता है । सवाल यें उठता है कि गरीब की पहचान सार्वजनिक होनें के बाद यदि उसकी गरीबी दूर हो जाए तों इस तरह के कार्यक्रमों को कामयाब कहा जाना सही है समाज सेवा का ढ़ोग रच कर गरीबो की गरीबी पर तरस खा कर उनकी लिस्ट तैयार कर सावर्जननिक कार्यक्रमों में गरीबों की गरीबी का मज़ाक उड़ानें वालें अगर सरकार सें ही सीख लेकर बड़ी सख्या में नही बल्कि चन्द गरीबो की लिस्ट बना कर उनकी गरीबी को दूर करनें के लिए इमानदारी सें काम करे ताकि गरीब की गरीबी का मज़ाक अगर उड़े तों एक बार के बाद उसकी गरीबी तों दूर हो जाए। कुछ लोग यें कहेगें कि इस तरह सें गरीबों को कम्बल बाटनें में गरीबों की मदद ही होती है यदि महज़ दो सौ रूपए का कम्बल बाट कर चन्द बड़े लोग पुण्य ही कमाना चाहतें है तों उन्हें दिखावें सें बचना चाहिए जिस तरह सें वों घर घर जाकर गरीबों की लिस्ट तैयार करतें है उसी तरह सें घर घर जाकर गरीबों को कम्बल बाट कर आसानी सें पुण्य कमाया जा सकता है इस तरह सें पुण्य भी मिल जाएगा और समारोह का खर्च भी बच जाएगा। अक्सर देखा गया है कि राजनितिक दलों के कुछ लोग बाकायदा ज्योतिष सें कम्बल वितरण का मुहुर्त निकलवा कर कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार करतें है मुसलिम समाज सें ताल्लुक रखनें वालें लोगों के लिए गुरूवार का दिन और हिन्दू समाज से ताल्लुक रखनें वालें लोग शनिवार या मंगलवार को शुभ मानतें है। ऐसें लोगों का यह  भी मानना होता है कि गरीबों को कम्बल बाट कर न सिर्फ नाम मिलेगा बल्कि उनके उपर आनें वाली मुसीबतें भी टल जाएंगी। कम्बल पानें वालों में कुछ पेशेवर लोग भी शामिल है जो कम्बल लेनें के बाद उसें आधी क़ीमत में बेचतें भी नज़र आतें है। मेरा मक़सद यें नही कि गरीबों को कम्बल न बाटे जाए बल्कि बाट कर गरीबों को रूसवा न करकें उनके घरों पर भेज कर उनकी परेशानी भी हल की जाए और उनकी गरीबी को सरें आम होनें सें भी बचाया जाए।

(ख़ालिद रहमान)