नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सरकार को सिर्फ निष्ठावान सक्षम वकीलों को ही उसका प्रतिनिधित्व करने के लिये नियुक्त करना चाहिए अन्यथा मामलों में अनर्थ होने की बहुत अधिक संभावना रहती है।

साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार को किसी भी अन्य वादकारी की तरह ही अपनी पसंद का वकील करने का अधिकार है। न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति ए.एम. सप्रे की पीठ ने उत्तर प्रदेश की जिला अदालतों में सरकारी वकीलों की नियुक्ति से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। 

पीठ ने कहा, ‘वकीलों का चयन करते समय सरकार को उनकी न्यायिक क्षमताओं के बारे में ही संतुष्ट नहीं होना चाहिए बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वे किसी भी आपराधिक पृष्ठभूमि से अलग हों।’ 

पीठ ने कहा, ‘हम सोचते हैं कि सही दृष्टिकोण अतिरिक्त जिला सरकारी वकील, सहायक जिला सरकारी वकील, वकीलों के पैनल और उप जिला सरकारी वकीलों के रूप में नियुक्ति के बारे में विचार करते समय वकीलों की क्षमता सुनिश्चित करना होना चाहिए। हम ऐसा लगता है कि मौजूदा सरकारी वकीलों की पुनर्नियुक्ति या उनके कार्यकाल के नवीनीकरण के बारे में विचार करके इस प्रक्रिया को शुरू करना गलत तरीका है क्योंकि ऐसा करने से वकीलों को नियुक्त करने का सरकार का विवेकाधिकार ही खत्म हो जायेगा।’ 

पीठ ने कहा, ‘एकमात्र अपेक्षा यह है कि सरकार द्वारा चुना गया व्यक्ति ऐसा नहीं होना चाहिए जो सभी नागरिकों के साथ न्याय सुनिश्चित करने की महती जिम्मेदारी को ही विफल कर दे।’ शीर्ष अदालत जिला सरकारी वकील की नियुक्ति निरस्त करने का राज्य सरकार का आदेश रद्द करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को इन वकीलों के नवीनीकरण पर विचार करने का निर्देश दिया था।

उच्चतम न्यायालय ने अपने पूर्ववर्ती निर्णय से सहमति व्यक्त की जिसमें कहा गया था कि जिला वकीलों को अपने कार्यकाल के नवीनीकरण का कानूनी अधिकार नहीं है और राज्य सरकार को इस संबंध में विशेषाधिकार प्राप्त है।