नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव चाहता है। सुप्रीम की एक पीठ ने प्रधान न्यायाधीश से एक उचित पीठ गठित करने अनुरोध किया है जो इस सवाल पर गौर करे कि क्या तलाक के मामलों या उनके पतियों द्वारा दूसरी शादी करने के कारण मुस्लिम महिलाओं के साथ लिंग आधारित भेदभाव हो रहा है।

जस्टिस एआर दवे और एके गोयल की बेंच ने चीफ़ जस्टिस से कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ कि वजह से महिलाओं का एकतरफ़ा तलाक हो रहा है और मर्द एक से ज़्यादा शादियां कर रहे हैं। विरासत और उत्तराधिकार में भी उनसे भेदभाव हो रहा है। चूंकि शादी और तलाक का मज़हब से कोई रिश्ता नहीं है लिहाज़ा गुज़ारिश है कि अदालत इसे ठीक करे।

बेंच ने कहा कि यह सही समय है, जब इस मामले पर विचार करने की जरूरत है। सरकार और विधायिका को इस बारे में विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ नीतिगत मसला नहीं है, बल्कि संविधान में वर्णित मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकारों और सुरक्षा का है।

सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व के फैसलों का उदाहरण देते हुए जजों ने कहा कि बहुविवाह की प्रथा सार्वजनिक नैतिकता के लिए घातक है। बेच ने पूर्व के एक फैसले का उदाहरण देते हुए कहा, ‘जावेद बनाम हरियाणा सरकार के मामले में तीन जजों की पीठ ने कहा था कि बहुविवाह सार्वजनिक नैतिकता के लिए घातक है। इसे भी सरकार की ओर से सती प्रथा की तरह ही खत्म किया जा सकता है। यह पहले भी महसूस किया जा चुका है कि एक विवाह का कानून लागू करना किसी भी धर्म के विपरीत नहीं है और इससे मुस्लिम पर्सनल लॉ पर कोई आंच नहीं आती।’

कोर्ट ने कहा कि इसी मकसद से अलग से जनहित याचिका पंजीकृत की जाएं और इसे प्रधान न्यायाधीश के आदेशानुसार उचित पीठ के समक्ष पेश किया जाए। कोर्ट ने कहा कि अटॉर्नी जनरल और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण को नोटिस जारी किया जाए, जिसका जवाब 23 नवंबर, 2015 तक देना होगा। इस मामले में पहले से ही पेश हो रहे वकीलों को, अगर वे स्वेच्छा से चाहें, मामले के इस पहलू पर न्यायालय की मदद की अनुमति दी जाती है।