मोदी सरकार पर लगाया भारत को ‘हिंदू धार्मिक निरंकुशतंत्र’ में बदलने के प्रयास का आरोप 

हैदराबाद : पद्म भूषण से सम्मानित वैज्ञानिक पीएम भार्गव ने अपना पुरस्कार लौटाने की घोषणा की। जाने-माने वैज्ञानिक पुष्प मित्र भार्गव ने गुरुवार को कहा कि वह अपना पद्म भूषण पुरस्कार लौटा रहे और उन्होंने आरोप लगाया कि राजग सरकार भारत को ‘हिंदू धार्मिक निरंकुशतंत्र’ में बदलने का प्रयास कर रही है।। इस तरह वह भी अन्य वैज्ञानिकों की तरह ‘बढ़ती असहिष्णुता’ के विरोध में शामिल हो गए हैं

हैदराबाद में कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सेंटर फार सेल्युलर एंड मोलिक्यूलर बायोलाजी) की स्थापना करने वाले भार्गव ने कहा 1986 में मिले अपने पुरस्कार को वह लौटाएंगे क्योंकि उन्हें महसूस हो रहा है कि देश में ‘डर का माहौल’ है और यह तर्कवाद, तार्किकता और वैज्ञानिक सोच के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि मैंने पुरस्कार को लौटाने का निर्णय लिया है। इसका कारण यह है कि वर्तमान सरकार लोकतंत्र के रास्ते से दूर जा रही है और देश को पाकिस्तान की तरह हिंदू धार्मिक निरंकुशतंत्र में बदलने की ओर अग्रसर है। यह स्वीकार्य नहीं है, मैं इसे अस्वीकार्य मानता हूं। उन्होंने आरोप लगाया कि कई पदों पर उन लोगों की नियुक्ति की गई जिनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कोई ना कोई संबंध था।

भार्गव ने मोदी सरकार पर वादे पूरे नहीं करने का भी आरोप लगाया और कहा कि एक वैज्ञानिक के तौर पर मैं सिर्फ पुरस्कार ही लौटा सकता हूं। पुष्प मित्र भार्गव ने कहा कि भाजपा संघ का राजनीतिक मुखौटा है, स्वामी संघ ही है। वहां सीएसआईआर के निदेशकों की एक बैठक थी और उसमें संघ के लोग शामिल हुए। सीएसआईआर के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। मैं अपना पुरस्कार अगले हफ्ते लौटाउंगा। भार्गव का निर्णय ऐसे समय में आया है जब वह उन वैज्ञानिकों के दूसरे समूह में शामिल हो गए जिन्होंने देश में विज्ञान और तार्किकता को नष्ट किए जाने के बारे में ऑनलाइन चिंता जताई थी।

भार्गव समेत अन्य पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्त अकादमिक और वैज्ञानिक अशोक सेन एवं पी. बलराम ने कहा कि असहिष्णुता और तर्क के निरादर का माहौल उसी तरह का है जिसकी वजह से दादरी में मोहम्मद अखलाक सैफी को भीड़ ने मार डाला, प्रोफेसर कलबुर्गी, डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर और श्री गोविंद पनसारे की हत्या हुई। मंगलवार को वैज्ञानिकों के एक समूह ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से असहिष्णुता की घटनाओं पर चिंता जताते हुए उस पर उचित कार्रवाई करने की याचना की थी। वैज्ञानिक भी लेखकों और फिल्मकारों के उस विरोध में शामिल हो गए हैं जिसे भाजपा नीत राजग सरकार ने ‘गढ़ा गया विरोध’ कहा था।

इन पर प्रहार करते हुए केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली ने आज कहा कि पुरस्कार लौटाने वालों में अधिकतर ‘कट्टर भाजपा विरोधी तत्व’ हैं। पटना में जेटली ने कहा कि आप उनके ट्वीट और विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों के रूख को देखें । आप उनके भीतर काफी हद तक कट्टर भाजपा विरोधी तत्व पाएंगे। उन्होंने कहा कि मैं पहले ही इसे गढ़ा हुआ विरोध बता चुका हूं। मैं अपनी बात पर कायम हूं। मेरा मानना है कि जिस तरह से यह सब खुलासे हो रहे हैं, यह इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस तरह के विरोध का निर्माण तेज गति से चल रहा है।

भार्गव ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनका कदम राजनीति से प्रेरित नहीं है। उन्होंने कहा कि असहमति, असहमति होती है और एक ऐसा विशेष बिंदु होता है जिससे आप असहमत होते हैं। उन्होंने कहा कि मैं संप्रग सरकार का भी कटु आलोचक रहा हूं। मैंने अपनी किताब ‘ए क्रिटिक एगेंस्ट द नेशन’ में संप्रग सरकार की आलोचना की है लेकिन संप्रग सरकार हमें नहीं बताती थी कि हमें क्या खाना है, कैसे कपड़े पहनना चाहिए और ना ही हमें नैतिकता का पाठ पढ़ाती थी। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार हमें यह सब बता रही है जिसे मैं अस्वीकार्य पाता हूं, इन सभी निर्णयों में हमें तर्कहीनता नजर आती है। भार्गव ने कहा कि देश में भयानक डर का माहौल है और मैं इससे निराश हूं। यह मेरा और मेरे परिवार का निजी निर्णय है और कोई इसमें शामिल नहीं है।

उन्होंने कहा कि भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है और वर्तमान सरकार धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और लोकतंत्र से दूर जा रही है। भार्गव ने केंद्र सरकार पर वादा खिलाफी का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को अपने वादे पूरे करने चाहिए। वह अपने वादे पूरे नहीं कर रहे हैं। विकास और शांति को लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ाना चाहिए। इस समय पर ऐसा लग रहा है कि संघ सरकार चला रहा है ना कि मोदी। कई बार कई अन्य तरीकों से विरोध करने की बात कहते हुए भार्गव ने कहा कि असहमति के लिए अब स्थान घट रहा है। और ‘देश का माहौल उस जगह पहुंच गया है जहां पर कुछ बड़ा करने की जरूरत है।’ वर्ष 1994 में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के पूर्व फेलो ने देश की तीनों विज्ञान अकादमियों से इस्तीफा दे दिया था। इनमें भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी और भारतीय विज्ञान अकादमी शामिल थी।