लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति रद्द की 

इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति रद्द कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि अनिल यादव का चयन वैधानिक नहीं है। इसमें नियुक्ति प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। राज्य सरकार को विधि सम्मत ढंग से अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के निर्देश दिए गए हैं।

मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने बुधवार को सतीश कुमार व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर फैसला लिखाना शुरू किया। दोपहर के पहले ही अदालत ने आदेश कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चयन में जल्दबाजी की गई। आगरा से आपराधिक इतिहास का ब्योरा लिए बिना ही चयन किया गया। इससे पहले कल याचिका पर अधिवक्ता सतीश चतुर्वेदी व ज्ञानेन्द्र श्रीवास्तव ने बहस की। उनका कहना था कि अध्यक्ष की नियुक्ति प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ तथा आपराधिक केस लंबित होने की रिपोर्ट मंगाये बगैर एक दिन में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर ली। इस पद पर 83 बायोडाटा आये थे जिनपर विचार नहीं किया गया। सरकार की तरफ से महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह व एएसजीआई पटवालिया ने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की थी और कहा था कि सरकार को नियुक्ति का अधिकार है। स्थापित दिशा निर्देशों के तहत मुख्य सचिव की सर्च कमेटी ने विचार कर नियुक्ति कार्यवाही की गयी। अध्यक्ष के खिलाफ ऐसे कोई साक्ष्य नहीं है जिससे कहा जाय कि वह पद के अयोग्य है। ऐसे में याचिकाएं खारिज की जाय।

अनिल यादव के उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के पद पर तैनाती को लेकर तीन जनहित याचिका दायर की गई थीं। तीनों पीआइएल की सुनवाई एक साथ की गई। सरकार के जवाब में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आगरा ने स्वीकार किया है कि आयोग अध्यक्ष अनिल यादव पर गुंडा एक्ट के तहत जिला बदर की कार्रवाई की गई है, लेकिन अथक प्रयास के बावजूद संबंधित कोर्ट से अभिलेख की प्रतियां प्राप्त नहीं हो सकी हैं। एसएसपी की रिपोर्ट में आयोग अध्यक्ष पर कई मुकदमे दर्ज होने का जिक्र है। साथ ही कुछ में अध्यक्ष को क्लीन चिट मिलने का भी हवाला दिया गया है।

प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अवनीश पांडेय ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि वह आयोग अध्यक्ष को बचाने का प्रयास कर रही है और कोर्ट को गुमराह कर रही है। उन्होंने सवाल किया कि यह कैसे संभव है कि पुलिस आयोग अध्यक्ष का आपराधिक रिकॉर्ड खोज नहीं पा रही है। इसके पहले भी अवनीश ने आरटीआइ के माध्यम से आयोग अध्यक्ष का आपराधिक इतिहास जानने का प्रयास आइजी आगरा से किया था, लेकिन आइजी ने आरटीआइ में गलत जानकारी दी थी। इसके बाद प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति 10 फरवरी 2014 को जनहित याचिका दाखिल की। उसमें अनिल के अपराधों का पूरा उल्लेख किया है।