नई दिल्ली। विभिन्न धर्मो में कानूनी प्रावधानों को लेकर “पूरी तरह” भ्रम की स्थिति को रेखांकित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या वह देश में समान नागरिक संहिता लाने को इच्छुक है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिस्टिर जनरल से कहा कि वे तीन हफ्ते के भीतर अगली सुनवाई के समय यह बताएं कि समान नागरिक संहिता को लेकर सरकार का क्या रूख है। शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्सनल कानूनों को लेकर भ्रम की स्थिति है।

न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि वह समान नागरिक संहिता बनाने की दिशा में क्या कर रही है, जिससे कि विभिन्न धर्मो के कानूनी प्रावधान एक समान हों। पीठ ने कहा कि हमें समान नागरिक संहिता पर काम करना चाहिए। पीठ ने कहा कि आखिर हो क्या रहा है। यदि आप (सरकार) ऎसा करना चाहते हैं तो अब तक क्यों नहीं नियम बनाया गया और क्यों नहीं इसका क्रियान्वयन हुआ।

सोमवार को केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने पीठ को बताया कि सरकार अधिनियम में संशोधन का प्रयास कर रही है। पीठ ने कड़ी नाराजगी जताई कि पिछले करीब तीन महीने से सरकार ऎसा कह रही है।

उल्लेखनीय है कि अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें उस प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसके तहत ईसाई दम्पत्ति को आपसी सहमति से तलाक लेने से पहले कम से कम दो वर्ष तक अलग रहने की अनिवार्यता है जबकि दूसरे धर्म के लिए एक वर्ष की अनिवार्यता है। पिछली सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने कहा था कि वह तलाक अधिनियम की धारा-10 ए (1) में संशोधन करने के लिए तैयार है।