नई दिल्ली: राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले की सीबीआई जांच की आंच अब उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की चौखट तक पहुंच गई है। एजेंसी इस मामले में उनसे बहुत जल्द पूछताछ करने वाली है।

इस मामले में 74 प्राथमिकियां और 48 आरोप पत्र दायर किए जाने के बाद सीबीआई ने ‘घोटाले में बड़ी साजिश का खुलासा करने’ के लिए मायावती से पूछताछ का फैसला किया है।

सीबीआई सूत्रों ने दावा किया कि कुछ नए सबूत हाथ लगे हैं जो दो मुद्दों पर पूर्व मुख्यमंत्री की भूमिका की जांच करने को जरूरी बताते हैं। इनमें एक मुद्दा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को बांटने और दूसरा जिला परियोजना अधिकारियों के 100 से अधिक पद तैयार करने से जुड़ा है। इन अधिकारियों को ही कथित भ्रष्टाचार में कथित तौर पर मददगार माना जाता है।

मायावती उस वक्त मुख्यमंत्री थीं जब स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को अलग अलग किया गया। आरोप है कि इस विभाग को बांटा गया ताकि एनआरएचएम के धन को सीधे तौर पर परिवार कल्याण विभाग के अधीन लाया जा सके। इस विभाग के मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा थे, जिनके खिलाफ सीबीआई पहले ही आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है।

सीबीआई की प्राथमिकी में कहा गया है, ‘जिला परियोजना अधिकारी (डीपीओ) सिर्फ उन्हीं लोगों को बनाया गया है, जिन्होंने चुने हुए आपूतिकर्ताओं को अनुबंध दिलाने में कथित तौर पर भूमिका निभाई तथा बदले में आरोपी नौकरशाहों ने बड़े पैमाने पर अवैध लाभ लिए।’ प्राथमिकी में आरोप लगाया गया, ‘कथित अपराधिक साजिश के क्रम में स्वास्थ्य विभाग के बंटवारे का प्रस्ताव दिया गया और भारत सरकार की ओर से तय एनआरएचएम के नियमों के खिलाफ इजाजत दी गई।’ सीबीआई सूत्रों ने कहा कि डीपीओ के 100 पदों को अनियमित ढंग से तैयार किया गया।

केंद्र ने 2005-06 के दौरान उत्तर प्रदेश को एनआरएचएम के क्रियान्वयन के लिए 11,080 करोड़ रुपये दिए, जिसमें से 9,133 करोड़ रुपये उपयोग के लिए जारी किए गए। राज्य सरकार ने केंद्र की ओर से जारी 8,658 करोड़ रुपये खर्च किए।

सीबीआई इस मामले में कुशवाहा और तत्कालीन प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) प्रदीप शुक्ला के खिलाफ आरोप पत्र दायर कर चुकी है बीएसपी सरकार के समय उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा को तीन मार्च, 2012 को गिरफ्तार किया गया था और वह अब भी जेल में हैं।