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तलाक की व्यवस्था में परिवर्तन पर विचार करें उलेमा : सुन्नी उलेमा काउंसिल

कानपुर: मुस्लिम समाज में मात्र एक बार में तीन बार तलाक कहने से परिवारों के टूटने के कारण समाज में आ रही परेशानियों को दूर करने के लिए सुन्नी उलेमा काउंसिल ने इस मुद्दे पर मुस्लिम उलेमाओं से विचार करने और इस प्रक्रिया को तीन माह में संपन्न कराने की व्यवस्था पर आम सहमति बनाए जाने को कहा है।

सुन्नी उलेमा काउंसिल ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और देवबंद तथा बरेलवी समुदाय के उलेमाओं को लिखे पत्र में दावा किया है कि पाकिस्तान, मिस्र, सूडान, इराक, जार्डेन जैसे सात देशों ने अपने यहां कानून बनाया है कि पति द्वारा पत्नी को तलाक देने में तीन मासिक धर्म का अंतर होना चाहिए।

काउंसिल का कहना है कि पति अपनी पत्नी को एक ही बार में तीन बार तलाक कहकर तलाक न दे बल्कि पहली बार तलाक कहने और दूसरी बार तलाक कहने में महिला के एक मासिक धर्म अवधि का अंतर होना चाहिए। इसी तरह दूसरी से तीसरी बार तलाक कहने के बीच एक और मासिक धर्म का अंतर होना चाहिए। मतलब यह कि तीन बार तलाक कहने में करीब तीन माह का अंतर होना चाहिए। काउंसिल का कहना है कि इससे मुस्लिम समाज को फायदा यह होगा कि परिवारों को टूटने से बचाया जा सकेगा।

सुन्नी उलेमा काउंसिल ने इस सिलसिले में हस्तक्षेप करने और अपनी सलाह देने के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, देवबंद और बरेली के उलेमाओ को एक एक पत्र भी लिखा है।

ऑल इंडिया सुन्नी उलेमा काउंसिल के महामंत्री हाजी मोहम्मद सलीस एक बार में तीन तलाक देने के मुद्दे के खिलाफ जागरुकता अभियान चला रहे हैं। उन्होंने आज बातचीत में कहा कि कानपुर में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां एक बार में तीन तलाक देने के कुछ दिन के बाद पुरुष और स्त्री दोनों शहर काजी के पास आते है और कहते है कि उन्होंने गुस्से में या झगड़े के बाद अपनी पत्नी को तलाक दे दिया था। अब वह साथ रहने चाहते है, लेकिन तब कुछ करना मुश्किल होता है।

 हाजी सलीस दावा करते हैं कि इस प्रकार तलाक लेने वाले नब्बे प्रतिशत पुरुष अपने फैसले पर दुखी होते हैं और अपनी पत्नी और बच्चों को फिर से पाना चाहते हैं, लेकिन हमारे मजहब ने ऐसी बंदिशे लगा रखी हैं कि उन दोनों की दोबारा शादी से पहले कई बड़े मसले खड़े हो जाते हैं। इसलिए शहर काजी और सुन्नी उलेमा काउंसिल के मुस्लिम उलेमाओं ने इस बाबत एक प्रस्ताव बनाया है कि एक बार में तीन बार तलाक कहने पर तलाक न हो। उन्होंने कहा कि तीन महीने की अवधि में दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने की गुंजाइश बाकी रहती है और एक परिवार को टूटने से बचाया जा सकता है।

सलीस ने कहा कि अपने देश में भी सुन्नी उलेमा काउंसिल ऐसी ही एक मुहिम चला रही है और सारे उलेमाओं से राय मश्विरा कर रही है। इसी सिलसिले में आज सुन्नी उलेमा काउंसिल और शहर काजी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और देवबंद तथा बरेली के मौलनाओं को पत्र लिख रही है कि जब सात देशों में मुसलमानों को तीन महीने का वक्त तलाक के लिए दिया जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं।

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