विधानसभा में लोकायुक्त चयन संबंधी व्यवस्था में बदलाव का विधेयक पेश 

लखनऊ। प्रदेश सरकार ने लोकायुक्त के चयन की प्रक्रिया में अब प्रदेश के मुख्य नयायाधीश की भूमिका ही समाप्त कर दी है। सरकार ने लोकायुक्त चयन संबंधी व्यवस्था में बदलाव का विधेयक आज अचानक विधानसभा में पेश किया है। प्रस्तावित विधेयक के कानून बनने की दशा में लोकायुक्त के चयन में अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका खत्म हो जाएगी। विधेयक में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति प्रस्तावित की गई है जिसमें विधानसभा अध्यक्ष, नेता विरोधी दल तथा समिति के अध्यक्ष द्वारा हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का नामित रिटायर्ड जज होगा। गौरतलब है कि मौजूदा व्यवस्था में लोकायुक्त का चयन करने के लिए मुख्यमंत्री के साथ ही नेता विरोधी दल और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की समिति है। सरकार के हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस रविन्द्र सिंह को लोकायुक्त बनाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की आपत्ति के कारण राज्यपाल राम नाईक ने बीते दिनों न्यायमूर्ति रविन्द्र सिंह को लोकायुक्त बनाने के प्रस्ताव को पिछले दिनों नामंजूर कर दिया था।

राज्यपाल राम नाईक का साफ-तौर पर कहना है कि तय चयन प्रक्रिया का पालन करते हुए ही उनके पास नया नाम भेजा जाए। चूंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ लोकायुक्त पद पर रविन्द्र सिंह के नाम पर असहमत थे इसलिए सरकार चाहकर भी राजभवन के रुख को देखते हुए रविन्द्र सिंह को लोकायुक्त नहीं बना पा रही थी। ऐसे में अब चयन प्रक्रिया में ही बदलाव कर सरकार जस्टिस रविन्द्र सिंह को लोकायुक्त बनाने का रास्ता साफ करना चाहती है।

राज्यपाल राम नाईक पर अभी तक के कार्यकाल में कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त न करने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी आपा खो दिया। उन्होंने कल रात एक चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि राज्यपाल राम नाईक व हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश महाराष्ट्र से हैं, इसलिए इनको लोकायुक्त के नये नाम पर आपत्ति हो रही है। इनको लोकायुक्त चयन के लिए प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या मैनपुरी का कोई व्यक्ति लोकायुक्त नहीं बन सकता। क्या दो बड़े पद महाराष्ट्र वालों के लिए हैं। यह लोग समझते हैं कि उत्तर प्रदेश का सीएम कम  उम्र का है। इसको दब लो, लेकिन ऐसा नहीं है कि मैं किसी के भी दबाव में काम करूंगा।