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राजनीति ने कलाम को दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनने दिया

नई दिल्ली। डॉ. अब्दुल कलाम 25 जुलाई 2002 को देश के 11वें राष्ट्रपति चुने गए थे। वे निर्विवाद रूप से देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के बाद दूसरे सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति हैं। 2007 तक पांच साल के अपने कार्यकाल में कलाम ने आम राय से अलग हटकर फैसला किया, इससे उनकी ख्याति और बढ़ी। उनके राष्ट्रपति बनने से पहले लोग उन्हें रबर स्टैंप राष्ट्रपति बनने की आशंका जता रहे थे। लेकिन कलाम ने दंगों के बाद गुजरात दौरा, लाभ के पद से जुड़े विधेयक को वापिस लौटाकर इन सब आशंकाओं को परे कर दिया। इसके चलते वे पीपल्स प्रेसीडेंट कहलाए।

2007 में कार्यकाल पूरा होने के बाद कलाम ने एक बार फिर से राष्ट्रपति पद लेने में दिलचस्पी दिखाई थी। लेकिन उस समय केन्द्र में सत्ताधारी यूपीए और लेफ्ट पार्टियों ने उनके नाम का समर्थन नहीं किया। सर्वसम्मति न होने के चलते कलाम ने अपना नाम वापिस ले लिया। इसके बाद यूपीए ने प्रतिभा पाटील को और एनडीए ने भैंरो सिंह शेखावत को अपना प्रत्याशी बनाया, चुनाव में पाटील विजयी रही और देश की पहली महिला राष्ट्रपति चुनी गई।

2012 में भी डॉ. कलाम का नाम राष्ट्रपति चुनाव के लिए आया था। उनकी उम्मीदवारी पर भाजपा ने कहा था कि अगर तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस समर्थन करे तो वे कलाम के नाम का समर्थन करेंगे। लेकिन बाद में सब पलट गए और उनके नाम का केवल तृणमूल कांग्रेस ने समर्थन किया। इसे देखते हुए कलाम ने राष्ट्रपति पद की दौड़ से खुद को अलग कर दिया।

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