नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) मार्कन्डेय काटजू ने रविवार को कहा कि याकूब के मामले में न्याय का भद्दा मजाक बना है। काटजू ने कहा कि अदालत के फैसले को ध्यान से पढ़ने के बाद उन्होंने पाया कि जिस सबूत के आधार पर मेमन को दोषी ठहराया गया वह ‘बहुत कमजोर’ है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह सबूत सह-आरोपी का वापस लिया हुआ बयान और कथित बरामदगी है।’’ वापस लिए हुए बयानों के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘‘हर कोई जानता है कि हमारे देश में पुलिस किसी तरह से यातना देकर बयान लेती है।’’ काटजू ने आगे कहा कि यातना ऐसी खतरनाक चीज है जिस कारण कोई कुछ भी कुबूल कर लेगा। उन्होंने बरामदगी के बारे में कहा, ‘‘याकूब मेमन के मामले में बयान को वापस ले लिया गया।’’
मुंबई में हुए 1993 के बम धमाकों के मामले में दोषी याकूब मेमन को 30 जुलाई को फांसी दी जानी है। उसी दिन उसका जन्मदिन भी है। मेमन नागपुर सेंट्रल जेल में बंद है। उसे विशेष टाडा अदालत ने मौत की सजा सुनाई जिसके खिलाफ उसकी सुधारात्मक याचिका को इस हफ्ते के शुरू में उच्चतम न्यायालय ने ठुकरा दिया।
मुंबई में 12 मार्च 1993 को हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों में कम से कम 257 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे। इस मामले में मेमन एकमात्र दोषी है जिसकी मौत की सजा को उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखा। सुधारात्मक याचिका खारिज होने के बाद मेमन ने महाराष्ट्र के राज्यपाल को एक दया याचिका भेजी। राष्ट्रपति उसकी दया याचिका पहले ही खारिज कर चुके हैं।
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