नई दिल्ली: चुनावों में उम्मीदवार ना सिर्फ बेहिसाब खर्च कर रहे हैं, बल्कि इसके लिए तय सीमा का भी धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है। दिल्ली में चुनाव और पॉलिटिकल फंडिंग पर एक नेशनल कन्सलटेशन में मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों की मिसाल देते हुए दावा किया है कि वहां एक उम्मीदवार औसतन 15 करोड़ तक खर्च करता है।

मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने कहा, “आंध्र प्रदेश में एमएलए के चुनाव के लिए औसतन एक उम्मीदवार 15 करोड़ खर्च करता है तो अंदाज़ा लगाइए कि लोकसभा चुनाव में कितना खर्च होता होगा। अगर कोई 15 करोड़ खर्च करने के बाद चुनाव जीतता है तो वो 15 करोड़ से पांच गुना ज़्यादा 75 करोड़ तक कमाने की कोशिश करेगा। ये पैसा आएगा कहां से?”

खास बात ये है कि आयोग की तरफ से विधानसभा चुनावों में अधिकतम खर्च की सीमा 28 लाख रुपये तय की गई है। नेशनल कन्सलटेशन में शामिल लॉ कमिशन के चेयरमेन ए.पी. शाह ने मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा के दावे का समर्थन करते हुए कहा, “चुनावों में खर्च की सीमा का अब कोई मतलब नहीं रह गया है। इसका खुलेआम उल्लंघन हो रहा है।”

चुनावों में बढ़ते खर्च को लेकर हुई एक बैठक में ये सवाल भी उठा कि पैसे की बढ़ती ताकत को रोकने में आखिर राजनीतिक पार्टियां क्यों नाकाम रही हैं।

बैठक में मौजूद कांग्रेस के नेता और मुख्य प्रवक्ता, रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “चाहे वो सीलिंग का मुद्दा हो. चाहे वो अकाउंट ऑडिट करने का मुद्दा हो, एक व्यापक सहमति के साथ पहल होनी चाहिए। इसकी निगरानी निष्पक्ष चुनाव आयोग जैसी एजेंसी द्वारा करवाई जाए।” जबकि तृणमूल कांग्रेस के नेता कल्याण बनर्जी ने कहा, “मुझे ये नहीं पता कि किस आधार पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने औसतन हर विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवारों द्वारा 15 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही है। मुझे इसकी जानकारी नहीं है। हमने पश्चिम बंगाल में ऐसा कभी कुछ नहीं देखा है। हमारी पार्टी चाहती है कि चुनाव स्टेट फंडिंग से हों।”

मुख्य चुनाव आयुक्त के बयान से चुनावों में बेलगाम खर्च और वोटरों को लुभाने के लिए ब्लैक मनी के बढ़ते इस्तेमाल पर फिर एक राजनीतिक बहस ज़रूर छिड़ गई है। लेकिन जब तक राजनीतिक दल खुद अपने उम्मीदवारों पर नकेल नहीं कसते, इस समस्या से निपटना एक मुश्किल चुनौती बना रहेगा।