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कोरोना बनाम चिंता

ज़ीनत शम्स

मौजूदा वक़्त में कोरोना नाम के वायरस से दुनिया के 193 देश लड़ रहे हैं | WHO के अनुसार इस वायरस का अभी कोई टीका नहीं बना है और अभी तक यह इंसान से इंसान के संपर्क से फैल रहा है | इससे बचने का अभी तक जो सबसे अच्छा तरीका सामने आया है वह है अपने को दूसरे के संपर्क से जितना दूर रखा जा सके रखे और इसीलिए दुनिया भर के देश लॉकडाउन का तरीक़ा अपना रहे हैं| लेकिन सबसे बड़ा सवाल इस समय यह है कि गतिमान दुनिया की गति को आखिर कब तक थामा जा सकता है और यही इस समय लोगों की सबसे बड़ी चिंता है|

कोरोना की महामारी ने हमें आर्थिक नुक्सान के साथ साथ मानसिक और सामाजिक चोट भी पहुंचाई है| लॉकडाउन के कारण लोग घरों में क़ैद हैं जिससे उनमें मानसिक विकृतियां बढ़ रही हैं | नींद न आना, मूड का बनना बिगड़ना, आर्थिक चिंता, रोज़गार की चिंता, पढ़ाई की चिंता| सिर्फ चिंता ही चिंता| लोगों को बुरे बुरे सपने आ रहे हैं | कोरोना संक्रमित को आइसोलेशन में भेज दिया जाता है, जहाँ वह ठीक होगा या नहीं, ज़िंदा रहेगा या नहीं, इस चिंता में अकेला अपनी बीमारी से लड़ता है| उसके संपर्क में आये हुए लोगों को quarantine कर दिया जाता है|

कोरोना के कारण समाज में फ़ैल रही अवधारणाओं से लोग सामाजिक रूप से कोरोना पीड़ित उसके परिवार और कोरोना संक्रमित का इलाज करने वालों का बहिष्कार कर रहे हैं | मकान मालिक किरायेदारों से मकान खाली करवा रहे हैं| अवसाद में कोरोना संक्रमित आत्महत्या जैसे क़दम उठा रहे हैं| कोरोना संक्रमित से उसके रिश्तेदार दूरी बना रहे हैं| लोग कोरोना संक्रमित व्यक्ति की शवयात्रा में नहीं जा रहे हैं | बेटा अपने पिता के शव को लेने से इंकार कर रहा है| शवों को क़ब्रिस्तान में दफनाने से मना किया जा रहा है |

WHO की गाइडलाइंस के अनुसार–सुरक्षा मानकों के साथ लाश को दफनाने या जलाने से कोरोना नहीं फैलता है| इस काम में सरकार भी पूरी मदद कर रही है , इसके बावजूद भी बहुत से लोगों ने अंत्येष्टि की ज़िम्मेदारी सरकार पर मढ़ दी|

कोई भी आपदा आती है तो जाती भी है| इस समय कोरोना की इस आपदा से मिलकर मुकाबला करने की ज़रुरत है न कि उससे भागने की | अगर कोई कोरोना के संक्रमण का शिकार बन जाय तो भी उसका हौसला बनाये रखने की ज़रुरत है क्योंकि सारे संक्रमित लोगों की जान नहीं जा रही है| कोरोना से मरने वालों में अधिकाँश रूप से बुज़ुर्ग लोग ही हैं या फिर वह जिन्हें पहले से कोई क्रोनिक बीमारी रही है | इसलिए ऐसे लोगों को कोरोना से बचाने की ज़िम्मेदारी ज़्यादा है

कहते हैं चिंता चिता सामान होती है इसलिए चिंता को पास न आने दीजिए| घरों में अपने को व्यस्त रखें, किताबों का अध्यन करें, ध्यान करें, योग करें, अपने अंदर छिपी हुई प्रतिभा को बाहर आने का अवसर दें| शारीरिक दूरी ज़रूर रखें पर सामजिक दूरी न बनाएं| हमारा समाज, हमारी संस्कृति सदैव साथ चलने वाली रही है | परिवार , मित्र सभी आपस में मिलजुलकर रहते हैं| कोरोना के कारण पनप रही आपसी वैमनस्यता, दुराव का सामाजिक ताने बाने पर बहुत बुरा असर पड़ेगा| इससे बचने के लिए नातेदारों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, मित्रों से फ़ोन करके, वीडियो काल करके उनका हाल चाल पूछते रहें ताकि उन्हें घरों में क़ैद रहते हुए भी क़ैद होने का एहसास न हो|

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