डाक्टर मोहम्मद नजीब कासमी सम्भली

मस्जिदे हराम व मस्जिदे नबवी इंतिजामिया के प्रधान शैख अब्दुर रहमान अस्सुदैस के एलान के अनुसार कोरोना वाइरस बीमारी से बचाव के लिए इस वर्ष रमजान महीने में मस्जिदे नबवी व मस्जिदे के सम्बन्ध में कुछ बदलाव किए जा रहे हैं। दूसरे खलीफा हजरत ऊमर फारूक रजी० के जमाने में सहाबाए कराम की सर्वसम्मति से बाकायदा आरम्भ हुई बाजमाअत 20 रिकअत नमाजे तरावीह और तीन रिकअत वित्र के बजाय इस वर्ष 10 रिकअत नमाजे तरावीह और तीन रिकअत वित्र अदा किये जायेंगे। पहले इमाम तरावीह के छः रिकअत और दूसरे इमाम चार रिकअत और तीन वित्र अदा करेंगे। वित्र की तीसरी रिकअत में कुनूत यानी दुआ संक्षिप्त होगी। अलबत्ता रमजान के आखिरी अशरा यानी 21वीं शब से आधी रात के बाद तहज्जुद की नमाज जमाअत के साथ अदा की जाएगी, और खतमे कुरआन तरावीह और तहज्जुद में मिलाकर 29वीं शब की नमाजे तहज्जुद में होगा।

इस वर्ष मस्जिदे हराम व मस्जिदे नबवी में इफ्तार की व्यवस्था नहीं की जाएगी, दोनों मस्जिदों में प्रत्येक वर्ष लाखों अल्लाह के मेहमान इफ्तार किया करते थे। और यह भी कि मस्जिदे हराम व मस्जिदे नबवी में हुजूरे अकरम स० की एक महत्वपूर्ण सुन्नत एतकाफ अदा नहीं किया जाएगा। और रमजान में भी ऊमरा की अदायगी पर पाबंदी जारी रहेगी।

मस्जिदे हराम व मस्जिदे नबवी में, इसी तरह इस्लाम की पहली मस्जिद "मस्जिदे कुबा" में पाबन्दी के साथ 20 रिकअत नमाजे तरावीह होती चली आ रही हैं। सऊदी हुकूमत ने भी दूसरे खलीफा के समय से जारी सिलसिला को बाकी रखा और उसकी शकल यह होती थी कि नमाजे ईशा के बाद पहले इमाम दो दो रिकअत करके 10 रिकअत नमाजे तरावीह पढ़ाते थे, फिर दूसरे इमाम दो दो रिकअत करके 10 रिकअत नमाजे तरावीह और 3 रिकअत वित्र पढ़ाते थे। कभी कभी एक ही इमाम मुकम्मल 20 रिकअत भी पढ़ाते थे। प्रत्येक वर्ष एहतमाम के साथ 29 वीं शब को नमाजे तरावीह में खत्मे कुरआन होता था। वित्र की तीसरी रिकअत में अरबी भाषा में लम्बी दुआएं भी होती थीं। रमजान के आखिरी अशरा यानी 21 वीं शब से नमाजे तरावीह की तो 20 रिकअत वैसे ही अदा होती थीं, अलबत्ता आधी रात के बाद नमाजे तहुज्जुद की दो दो रिकअत करके 10 रिकअत जमाअत के साथ अदा की जाती थीं। नमाजे तहुज्जुद के बाद जमाअत के साथ तीन रिकअत वित्र अदा किए जाते थे। अर्थात आखरी अशरा में 33 रिकअत बाजमाअत अदा होती थीं। नमाजे तरावीह की 20 रिकअत में 29 वीं शब में कुरआन खत्म होता था जबकि नमाजे तहुज्जुद में पढ़ा जाने वाला कुरआन नमाजे तरावीह से अलग होता था जिसमें मजमूई तौर पर कमोबेश 15 पारे पढ़े जाते थे।

सऊदी अरब के नामवर आलिम, मस्जिदे नबवी के प्रसिद्ध शिक्षक और मदीना मनौवरा के (पुर्व) काजी शैख अतीया मोहम्मद सालिम रह०. (मृत्यु 1999) ने नमाजे तरावीह के चौदह सौ वर्ष के इतिहास पर अरबी भाषा में एक प्रसिद्ध पुस्तक (التراويح أكثر من ألف عام في المسجد النبوي)) लिखी है, जिस में उन्होंने ऐतिहासिक साक्षों की रौशनी में लिखा है कि मस्जिदे नबवी में सम्पूर्ण 1400 वर्षों की अवधि में 20 रिकअत से कम तरावीह अदा नहीं की गईं। मस्जिदे हराम में भी 20 रिकअत नमाजे तरावीह ही होती चली आ रही हैं। तरावीह पढ़ने की यद्यपि कि बहुत फजीलत हदीसों में वर्णित हुई है परंतु फर्ज ना होने के कारण तरावीह की रिकआतों की संख्या में तब्दीली की यकीनन गुंजाइश है, अर्थात् 20 रिकअत पढ़ना आवश्यक नहीं है।

परन्तु मैं इमामे हिरम मक्की शैख अब्दुर रहमान अस्सुदैस का पूर्ण सम्मान करते हुए नमाजे तरावीह की 10 रिकअत की निर्धारण पर आपत्ती दर्ज करता हूं क्योंकि हरमैन में तरावीह की 10 रिकअतों के निर्धारण के लिए शरई दलील अपेक्षित है जो उपलब्ध नहीं है। कोरोना वाइरस वबाई मर्ज से बचाव के लिये ऊमरा पर पाबंदी और पंजवक्ता नमाज के साथ नमाजे तरावीह में सर्वसाधारण को अनुमति ना देकर मात्र कुछ लोगों को मस्जिदे हराम व मस्जिदे नबवी में नमाज पढ़ने की अनुमति देने की गुंजाइश मिल सकती है लेकिन नमाजे तरावीह के लिए 10 रिकअत को चुनने की बात समझ से परे है। हालांकि जरूरत थी कि अंतिम अशरा में नमाजे तहुज्जत की जमाअत के एहतमाम के बजाय 1400 वर्षों से जारी हरमैन में नमाजे तरावीह की 20 रिकअत का एहतमाम किया जाता क्योंकि आखिरी अशरा में नमाजे तहुज्जुद की जमाअत का एहतमाम आले सऊद की हुकूमत के दौरान शुरू हुआ है। खोलोफाये राशेदीन, खिलाफते बनू उमैया, खिलाफते बनू अब्बासी और खिलाफते उस्मानिया में एक बार भी रमजान के आखिरी अशरा की प्रत्येक रात को नमाजे तहुज्जुद की जमाअत का एहतमाम नहीं किया गया। हुजूरे अकरम स० के कौल व अमल और सहाबाए कराम के अमल से यह बात रोजे रौशन की तरह स्पष्ट है कि सम्पूर्ण वर्ष पढ़ी जाने वाली नमाजे तहुज्जुद असल में इंफरादी नमाज है, लेकिन नफल होने के कारण नमाजे तहुज्जुद को जमाअत के साथ अदा करने की गुंजाइश तो है लेकिन वक्त की निर्धारण के साथ जमाअत के साथ नमाजे तहुज्जुद का एहतमाम करना सहाबाए कराम, ताबेईन और तबे'ताबेईन के अमल के खिलाफ है। हुजूरे अकरम स० और सहाबाए कराम के नक्शे कदम पर चल कर नमाजे तहुज्जुद का घर में इंफरादी तौर पर ही पढ़ना ज्यादा अफजल है।

यदि 10 रिकअत तरावीह के बजाय 8 रिकअत तरावीह का फैसला किया जाता तो फिर भी बात समझ में आती कि उम्मते मुस्लिमा की एक जमाअत की राय को सामने रखकर फैसला किया गया है, अगरचे जमहूर उलेमा व फोकहा व चारों अइम्मा ने 20 रिकअत तरावीह की राय को एख्तियार किया है। इसलिए मैं मस्जिदे हराम व मस्जिदे नबवी प्रबंधन के प्रधान डाक्टर अब्दुर्रहमान अस्सुदैस और सऊदी हुकूमत से दरख्वास्त करता हूं कि अपने फैसले पर विचार कर के दोनों हरम में सहाबाए कराम के मशविरा से हजरत ऊमर फारूक रजी० के समय से चली आ रही 20 रिकअत तरावीह का ही पूरे रमजान में एहतिमाम किया जाय और आखिरी अशरा की नमाजे तहज्जुद की जमाअत को समाप्त कर दिया जाये, क्योंकि दुनिया में कोरोना वबाई मर्ज की मौजूदगी के दौरान जब हरमैन में चंद अफराद 10 रिकअत नमाज अदा कर सकते हैं तो 20 रिकअत क्यों नहीं? दूसरी बात अर्ज है कि नमाजे तरावीह और नमाजे तहज्जुद दोनों नमाजें अलग अलग समय में पढ़ने पर कोरोना वाइरस फैलने की शंकाएं अधिक हैं। इसलिए नमाजे ईशा के फौरन बाद 20 रिकअत नमाजे तरावीह पढ़ी जाये, आखिरी अशरा में नमाजे तहज्जुद अदा ना की जाये। दूसरी दरख्वास्त है कि हुजूरे अकरम स० दो हिजरी में रोजा की फरजियत के बाद से मृत्यु तक सदैव रमजान में एतकाफ फरमाया करते थे। सहाबाए कराम, ताबेईन और तबे'ताबेईन और बड़े बड़े मोहद्दिसीन, मोफस्सिरीन और फोकहा भी हुजूरे अकरम स० की इस सुन्नत पर एहतिमाम से अमल करते थे, लिहाजा हरमैन में एतकाफ को बिल्कुल समाप्त ना किया जाय बल्कि जिस तरह गिंती के चंद अफराद नमाजें पंजवक्ता और नमाजे तरावीह पढ़ेंगे उसी प्रकार चंद अफराद समाजी फैसले को बाकी रखते हुये एतकाफ भी करें ताकि हरमैन में हुजूरे अकरम स० की यह अहम सुन्नत फौत ना हो। अंत में अर्ज है कि 1400 वर्षों की इस्लामी इतिहास में कई बार वबाई अमराज फैले, हत्ताकि हेजाजे मुकद्दस में कुछ बीमारियों से हजारों लोग इंतकाल फरमा गये, लेकिन कभी भी इस प्रकार के फैसले नहीं हुए क्योंकि हमें वबाई मर्ज से बचाव के लिए तदाबीर तो एख्तियार करनी है, लेकिन प्रत्येक मुसलमान का यह ईमान व अकीदा है कि मशीयते ईलाही के बगैर ना मर्ज आ सकता है, और ना मौत। हसबुनिल्लाहु व नेआमुल वकील!