देवी शेट्टी, चेयरमैन और फाउंडर नारायना हेल्थ

इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है। दुनिया भर में 6,500 से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं और करीब 1.70 लाख लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं। कोरोना वायरस से जूझने के इस दौर में नारायना हेल्थ के चेयरमैन और फाउंडर देवी शेट्टी ने बताने की कोशिश की है कि कैसे भारत के लोग अपने परिवार को कोरोना वायरस से बचा सकते हैं।

देवी शेट्टी बताते हैं, बोस्टन की एक बायोटेक कंपनी बायोजेन ने फरवरी के आखिरी सप्ताह में कॉन्फ्रेंस की थी। इसमें दुनिया भर के 175 सीनियर मैनेजर्स शामिल हुए, जिनमें दो इटली से भी थे। करीब सप्ताह भर के अंदर ही उनमें से 70 लोग कोविड-19 से संक्रमित हो गए, जो मैसेचुसेट्स में एक बार में संक्रमण का सबसे बड़ा आंकड़ा बन गया। मेरा बेटा MIT में पढ़ता है और बायोजेन के हेड ऑफिस से महज 5 मिनट की दूरी पर रहता है। अब वह मैसेचुसेट्स में अपने घर में कैद होकर रह गया है, क्योंकि वहां आपातकाल घोषित कर दिया है, जिसके चलते सभी शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए हैं।

ये जरूरी है कि पुरानी महामारियों से सबक सीखा जाए। जब अमेरिका में 1918 में स्पैनिश फ्लू आया था, तब सैंट लुईस में फिलाडेल्फिया के मुकाबले मौतों की संख्या आधी थी। इसकी वजह ये थी कि उस दौरान फिलाडेल्फिया ने प्रथम विश्व युद्ध का समर्थन करने के लिए खूब सारी रैलियां की थीं, जबकि सैंट लुईस ने सभी स्कूल, चर्च, फैक्ट्रियां और सार्वजनिक जगहों पर बहुत सारे लोगों के जमा होने पर रोक लगा दी थी। उन्होंने तुरंत एक्शन लिया था, जिसकी वजह से हजारों लोगों की जान बच गई।

मेरा दूसरा बेटा स्टैनफोर्ड में है और उसके एक डेटा साइंटिस्ट क्लासमेट ने चीन के बाहर कोरोना वायरस की वजह से फैले संक्रमण का तुलनात्मक अध्ययन किया है। सिंगापुर, ताइवान, हॉन्ग कॉन्ग, थाईलैंड और जापान चीन के सबसे नजदीक हैं, लेकिन किसी भी देश में इंफेक्शन तेजी से नहीं फैला है। ये इसलिए हुआ क्योंकि इन सभी पर 2003 में SARS वायरस की मार पड़ी थी। ऐसे में इन देशों को ये सबक मिल चुका है कि वायरल इंफेक्शन कितनी तेजी से फैल सकता है और उन्होंने सोशल डिस्टैंसिंग पर पूरा ध्यान दिया।

ईरान, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन ने एक्शन लेने में देर की, इसलिए वहां संक्रमण काफी बढ़ गया है। सौभाग्य से भारत ने विदेशी यात्रियों पर काफी जल्दी कंट्रोल कर लिया, जिसकी वजह से भारत अभी बचा हुआ है। बहुत से लोग कोरोना वायरस से मरने की 3 फीसदी की दर को देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि ये काफी कम है। हालांकि, भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है और कोविड-19 बहुत ही तेजी से फैल रहा है। कोरोना वायरस का हर मरीन करीब 3 अन्य लोगों को संक्रमित कर रहा है और उनमें से संक्रमण करीब 2 हफ्तों तक रह रहा है। भारत में अब तक करीब 115 लोगों में ये संक्रमण फैल चुका है और 2 लोगों की मौत भी हो गई है। संक्रमित लोगों में से 5 फीसदी को ICU में रखने की जरूरत है और 1 फीसदी काफी गंभीर होते हैं, जिन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत होती है।

जिन लोगों को पहले से ही कोई बीमारी है, जैसे हाई बीपी, इम्यून सिस्टम की दिक्कत, कैंसर है या फिर उनकी उम्र 70 साल से अधिक है, उनके लिए यह वायरस अधिक जानलेवा है। अधिकतर अस्पताल के आईसीयू पहले से ही फुल हैं। हम पहले ही महामारी में हैं और इस समय हम सिर्फ एक ही काम कर सकते हैं कि इंफेक्शन को कम करें, ताकि अस्पताल की जरूरत सिर्फ गंभीर मामलों में ही पड़े।

चलिए मान लेते हैं कि भारत में गर्मी लोगों को कोरोना वायरस से नहीं बचा पाएगी और ना ही भारतीयों में ऐसी कोई स्पेशल इम्युनिटी है, जो इस वायरल बीमारी से आपको बचा सकेगी। क्या होगा अगर हम बाकी लोगों की तरह ही हुए? भारत में तेजी से कोरोना वायरस बेकाबू हुआ तो ये एक बम की तरह फटेगा, क्योंकि यहां की आबादी बहुत ही अधिक है। महामारी के बड़े-बड़े विशेषज्ञ और यहां तक के एंजेला मार्केल जैसी वर्ल्ड लीडर का भी यही मानना है कि 20-60 फीसदी लोग कोरोना वायरस से प्रभावित होंगे।

हमारे पास सिर्फ सोशल डिस्टैंसिंग का ही विकल्प है, जिसके जरिए हम वायरस के फैलाव को कम कर सकते हैं। हम चीन की तरह पूरी तरह से शहरों को बंद तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन फिर भी कुछ सामान्य से कदम हैं, उन्हें उठाया जा सकता है-

  • सभी यात्राएं टालने की कोशिश करें, भले ही वह अंतराष्ट्रीय हों या घरेलू, बस से हों, ट्रेन से हों या हवाई यात्रा हो। लंबी दूरी की यात्राएं करने से बचें, क्योंकि ये वायरस उनके जरिए ही अधिक तेजी से फैल रहा है।

  • उन सभी जगहों पर जाने से बचें जहां कम जगह पर अधिक लोग हों। इसका मतलब है कि स्कूल, जिम, मॉल, बाजार, पब, थिएटर, मंदिर, अन्य पूजा स्थल, स्वीमिंग पूल आदि।

  • वर्क फ्रॉम होम। भले ही आप ऑफिस में या फैक्ट्री में काम करते हैं, आपको इंफेक्शन का खतरा है और आपके सहकर्मी भी संक्रमित हो सकते हैं या आपको संक्रमित कर सकते हैं।

  • अगर आपको काम पर जाना बहुत ही जरूरी है तो अपने सहकर्मियों से कम से कम 6 फुट का फासला रखें। कैंटीन जाने से बचें। बाहरी लोगों से मीटिंग करने से बचें। 10 से अधिक लोगों के समूह में ना मिलें।

  • हर कॉन्फ्रेंस, स्पोर्ट्स इवेंट, मेले, रैलियां, क्रिकेट मैच आदि से जितना हो सके उतना दूरी बनाए रखें।

मैं कर्नाटक सरकार को बधाई देता हूं कि उसने पहले ही ये सारे कदम उठा लिए हैं और मैं सभी राज्यों से गुहार लगाता हूं कि वह इसे फॉलो करें। राज्य सरकारों को ये मानकर चलना चाहिए कि कम से कम 10 फीसदी आबादी कोविड-19 से संक्रमित हो सकती है। ऐसे में बेंगलुरु जैसे एक शहर को कम से कम 5000 क्रिटिकल केयर बेड चाहिए होंगे, वो भी ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ।

कोविड-19 के मरीज दूसरों को भी संक्रमित कर सकते हैं, इसलिए उनका इलाज सामान्य अस्पताल में नहीं होना चाहिए। हर राज्य सरकार को अलग से कुछ अस्थायी अस्पतालों की व्यवस्था करनी चाहिए, जहां कोविड-19 से संक्रमित मरीजों को इलाज दिया जा सके। कर्नाटक में निजी अस्पतालों ने अपने डॉक्टरों और नर्सों की सेवाएं ऐसे स्पेशल अस्पतालों के लिए देने की पेशकश की है।

इटली में महज दो हफ्तों में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले 300 से बढ़कर 10 हजार तक जा पहुंचे। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि बहुत ही मामूली लक्षणों वाले मरीजों को ये पता भी नहीं होता कि वह बीमार हैं और वायरस को फैलाते रहते हैं। टेस्टिंग का मकसद सिर्फ ये है कि संक्रमित मरीजों को आइसोलेट किया जा सके, ऐसे में NABL से मान्यता प्राप्त सभी लैब्स को टेस्टिंग मुफ्त में करनी चाहिए। दक्षिण कोरिया और इटली में ये महामारी एक साथ फैलनी शुरू हुई थी। दक्षिण कोरिया ने सभी को टेस्ट करना शुरू किया और उसका अच्छा नतीजा देखने को मिला, लेकिन इटली ने ऐसा नहीं किया तो वहां से भयानक नतीजे सामने आ रहे हैं।

एक और भी गंभीर चिंता का विषय ये है कि मेडिकल स्टाफ की रक्षा करने वाले उपकरण की कमी ना हो जाए। अधिकतर देशों ने निर्यात बंद कर दिया है। ऐसे में भारतीय मैन्युफैक्चरर्स को एन95 मास्क बनाने के लिए कुछ इंसेंटिव दिया जाना चाहिए। अगर मेडिकल स्टाफ बीमार पड़ना शुरू हो गया तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।

करीब 50 हजार से भी अधिक भारतीय डॉक्टर विदेशी मेडिकल कॉलेजों से ट्रेनिंग लेकर बैठे हैं और भारत में प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस का इंतजार कर रहे हैं। उन सभी को अस्थाई लाइसेंस दिया जा सकता है, जो किसी वरिष्ठ डॉक्टर की देख-रेख में काम करेंगे। करीब 2 हफ्तों में वह सभी ऐसे असेट बन जाएंगे, जो किसी मुसीबत की घड़ी आने पर काम आ सकेंगे।