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डर, ख़ौफ़ , बुज़दिली और मफादपरस्ती के चलते गांधीवादी आंदोलन से नुमायाँ कयादत ग़ायब

तौसीफ कुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।देशभर में नागरिक संशोधन क़ानून (CAA) के विरोध में पिछले लगभग दो महीने से गांधीवादी तरीक़े से आंदोलन चल रहे हैं इस आंदोलन की सबसे ख़ास बात यह है कि इस आंदोलन से नुमायाँ कयादत ग़ायब है और आंदोलन सफलता पूर्वक चल रहे हैं और अगर नुमायाँ कयादत इस आंदोलन में अपनी एंट्री कराना भी चाह रही है तो उसको बेइज़्ज़ती का सामना करना पड़ रहा है इस लिए नुमायाँ कयादत (सरकारी शख़्सियात बड़ी हैरान और परेशान हैं) सरकार भी कोई काट नहीं तलाश कर पा रही है अगर इस आंदोलन में सरकारी शख़्सियतें शामिल होती तो अब तक इस आंदोलन की हवा निकल गई होती और सरकारी शख़्सियतें कोई राज्यसभा में होती तो कोई कुछ और खिलौना लिए खेलती होती और जनता जाती तेल लेने ऐसा हम नहीं पिछला इतिहास बता रहा है। देश का ऐसा कोई शहर या नगर नहीं जहाँ संविधान को बचाने की लड़ाई न लड़ी जा रही हो ये हो सकता है कि कही ज़्यादा ज़ोरदार तरीक़े से तो कहीं हल्के तरीक़े से आंदोलन चल रहे हैं जहाँ हल्के तरीक़े से आंदोलन चल रहे हैं वहाँ मोदी की भाजपा की सरकारें है जो जनता के मौलिक अधिकार का हनन कर उनकी आवाज़ को दबाने का प्रयास कर रही है लेकिन उसके बाद भी यूपी जैसे राज्य में कई शहरों में CAA, NRC और NPR के विरूद्ध आंदोलन चल रहे जहाँ का मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ये कहते हैं कि विरोध करने वालों की दस नस्लें याद रखेगी ऐसा सबक़ सिखाया जाएगा ऐसी हिटलरी भाषा के बावजूद राज्य की राजधानी लखनऊ के घंटाघर पर लगभग पच्चीस दिनों से महिलाएं धरनारत है हालाँकि यूपी पुलिस उनको परेशान करने के जितने फ़ार्मूले होते हैं सबका प्रयोग कर चुकी हैं लेकिन आंदोलन कारियों की हिम्मत को तोड़ नहीं पायी है और उनका आंदोलन जारी है।वहीं देवबन्द में भी पिछले चौदह दिन से चल रहे आंदोलन को अपनी तमाम कोशिशों से पुलिस प्रशासन नहीं रोक पा रहा है देवबन्द के आंदोलन से बहुत ही रोचक जानकारियाँ मिल रही है हमारे सूत्रों ने बताया कि वहाँ की सियासत में अमल दखल रखने वाले नेता खुलकर आंदोलन कारियों के साथ नहीं दिखाई दे रहे और प्रशासन के दबाव में आकर आंदोलन कारी महिलाओं का दमन कराने का काम कर रहे हैं सहारनपुर जनपद की सियासत में पिछले चालीस सालों से असर रखने वाले परिवार ने तो इस आंदोलन में कोई भूमिका ही नहीं निभाई हालाँकि अब उस परिवार का पहले जैसा असर भी नहीं रहा है पारिवारिक जंग की वजह से जो सियासी रूतबा था वह अब नहीं है।CAA ,NRC और NPR के विरोध में देवबन्द सत्याग्रह की कमान पूर्व विधायक माविया अली व उनके पुत्र हैदर अली और उनकी टीम ने संयुक्त रूप से संभाल रखी है जबसे देवबन्द में सत्याग्रह शुरू हुआ था तब से लेकर आज तक दोनों बाप बेटे व उनकी टीम पूरी तरीक़े से आंदोलन को मज़बूती प्रदान कर रही है पुलिस प्रशासन का पूरा दबाव है कि किसी भी तरह देवबन्द सत्याग्रह ख़त्म करा दिया जाए लेकिन पुलिस के अफ़सरों के सभी दबाव और सियासी विरोधियों की साज़िशों को नाकाम कर आंदोलन को पंद्रह दिन के आसपास ले आए हैं।माविया अली के सियासी विरोधी खुद तो हिम्मत जुटा नहीं पा रहे हैं आंदोलनकारी महिलाओं का साथ देने की और अगर माविया अली उन आंदोलनकारी महिलाओं के साथ खड़े हैं तो यह भी उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा है पुलिस और प्रशासन के साथ मिलकर आंदोलन कारी महिलाओं और माविया अली के विरूद्ध षड्यंत्र रचे जा रहे हैं फ़र्ज़ी मुक़दमे में जेल भी भेजे जा सकते हैं।डर ख़ौफ़ ,बुझ दिली , मफाद परस्ती ने नुमायाँ कयादत (यानी जनता का नेतृत्व करने का ढोंग करने वाले नेता इस गांधीवादी आंदोलन से ग़ायब है या यूँ भी कह सकते हैं कि जनता ने इन्हें दूर रहने को मजबूर कर दिया है और जनता सीधे तौर पर आंदोलन कर रही है इस आंदोलन में नए नारो ने भी अपनी जगह बनाई है जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के मुँह से सुने जा सकते हैं

अरे हम क्या चाहते आज़ादी, है हक़ हमारा आज़ादी, हम लड़के लेंगे आज़ादी, महिलाएं भी माँगे अज़ादी , तो पुरुष भी बोला आज़ादी| जुल्मी जब-जब जुल्म करेगा सत्ता के गलियारों से चप्पा-चप्पा गुंज उठेगा इंक़लाब के नारों से जैसे नारों को लगाने में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं ।लोगों का कहना है कि इस हिटलर सरकार को जनता के सामने झुकना ही पड़ेगा जब तक यह हिटलर सरकार काला क़ानून वापिस नहीं लेती हमारा गांधीवादी आंदोलन चलता रहेगा।

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