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फिजिटलाइजेशन – ग्रामीण वित्तीय समावेशन का हल

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में ग्रामीण खण्डों में खपत वृद्धि अनुमान है। उदाहरण के लिए, बेन एंड कंपनी – इकाॅनमिक फोरम रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण प्रति व्यक्ति खपत वर्ष 2030 तक बढ़कर 4.3 गुना होने का अनुमान है, जबकि शहरी भारत में इसमें 3.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है। कई प्रौढ़ देशों के विपरीत, भारत युवा राष्ट्र बना रहेगा, जिसकी माध्यक औसत आयु वर्ष 2030 तक 31 होगी। इस युवा आबादी का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों से होगा। रमेश अय्यर, वाइस चेयरमैन व मैनेजिंग डाइरेक्टर, महिंद्रा फाइनेंस, के अनुसार, आज, ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रमुख रूप से अनियमित है, जो असंरचनात्मक नकद प्रवाह के साथ व्यापक रूप से नकदोन्मुख है। ग्रामीण क्षेत्र की अधिकांश कामकाजी जनसंख्या ‘‘अर्न एंड पे’’ (कमाओ और खर्च करो) सेगमेंट की है। वो व्यापक रूप से सुव्यवस्थित रोजगार अवसरों से बाहर हैं और उनका नकद प्रवाह पूर्वानुमेय है। उन्हें उनकी कमाई नकद रूप में मिलती है और इसलिए, वो नकद रूप से खर्च करना और अपनी देनदारियां चुकाना चाहते हैं। यही नहीं, पर्याप्त बैंकिंग सुविधाओं के न होने के चलते, ग्रामीण क्षेत्र में अधिकांश ट्रांजेक्शन नकद पैसे में किये जाते हैं। हालांकि, जमीनी स्तर पर चीजें धीरे-धीरे बदल रही हैं। एक समय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रमुख रूप से कृषि-आधारित हुआ करती थी, लेकिन आज यह अधिक विविधतापूर्ण हो रही है, और पारिवारिक आय में गैर-कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग दो-तिहाई है। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण क्षेत्र के भारतीय अब भारत के शहरी क्षेत्र के लोगों से कटे हुए नहीं हैं, जैसा कि पहले था और इसका श्रेय इंटरनेट के बढ़ते उपयोग को जाता है। मोबाइल-फस्र्ट ग्रामीण भारतीयों की एक समग्र पीढ़ी है, जिन्होंने लंबी छलांग लगाते हुए मोबाइल फोन के जरिए तकनीकों का उपयोग महत्वपूर्ण रूप से शुरू कर दिया है। युवा, संचारी सुविधाओं के व्यापक उपलब्धता, शिक्षा एवं आय सृजन के अनेकानेक अवसरों की मौजूदगी के सम्मिलित प्रभाव के चलते ग्रामीण क्षेत्रों की आकांक्षाएं बढ़ी हैं व बढ़ रही हैं। भौतिक एवं डिजिटल कनेक्टिविटी बाधाओं के बावजूद, यह प्रभाव उपभोग के नये विकल्पों के रूप में देखने को मिल रहा है। जहां भौगोलिक स्थिति, पेशा और आकांक्षाओं के आधार पर खर्च एवं वित्तीय आवश्यकताओं में भिन्नता है, वहीं कुछ साम्यताएं भी हैं, जैसे असंरचित नकद प्रवाह के चलते पैदा होने वाली बाधाएं जिनसे उनके लिए ऋण उपलब्धता सीमित हो गयी है, डिजिटल ट्रांजेक्शंस में स्वाभाविक रूप से विश्वास की कमी, डिजिटल एवं वित्तीय असाक्षरता और आमने-सामने घटित होने वाले स्पर्शजन्य अनुभव के प्रति अत्यधिक झुकाव।भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राहक अभी भी पैसों के लेन-देन के मामलों में डिजिटल साधनों को पूरी तरह से अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं। अभी तक वो इसे लेकर सहज नहीं हैं और वो चाहते हैं कि उनके लगभग सभी ट्रांजेक्शन उनके सामने प्रत्यक्ष रूप से घटित होते हुए दिखें। तकनीक के साथ लोगों की बढ़ती सहजता के साथ ही यह संभव हो सकेगा, लेकिन अच्छी बात यह है कि प्रयास लगातार जारी है। इसलिए, ग्रामीण पारिस्थितिकी-तंत्र का फिजिटलाइजेशन ग्रामीण समावेशन को गति देने के लिए संभावित रूप से आवश्यक समाधान है।

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